एक बात कहन की.....सुनन की..... -- भूली बिसरी यादें

✪  एक बात कहन की.....सुनन की..... 
    "रूहों के सुकून" की.....

युग महापुरुष परम पूज्य परम संत "बाबा जयगुरूदेव जी महाराज".....
दर्शन दया मौज आशिर्वाद की दौलत लुटा रहे.....तभी.....गाड़ी के सामने
एक सतसंगी प्रेमी हाथ जोड़ खड़े हो गये.....दर्शन हो गये दरवाज़ा खुला,

मौज फरमाई....."बोलो बच्चे.....?"

अब प्रेमी भाई असाध्य रोग ग्रसित, न जीने ना मरने में, दर्द से हाल बेहाल,
मरणासन्न तकलीफ़ सुनाते ही रो पड़े..गला रूंध गया अश्रुधारा बांध तोड़
बह चली...वो तो दाता दयाल, दया के महासागर, करूणानिधि करूणाकर

देर क्या थी पल भर में दया फरमा दी....."जाओ दवा ले लो....."

साथ चल रहे सेवादारों ने बतलाया पीछे "तिवारीजी साहेब" से दवा ले लेवें

और गाड़ी आगे चल दी.....

(अब हम सभी अवगत हैं कि उस समय परम आदरणीय "श्री उमाकांत जी तिवारी जी साहेब"
हर समय "मालिक" की गाड़ी के पीछे पीछे परछाईं सदृश्य चलते रहते थे.....)

आगे का वृत्तान्त.....वह सतसंगी प्रेमी भाई पीछे चल रहे परम आदरणीय "तिवारी जी साहेब"
की गाड़ी तक पहुँच व्यथा बतलाते.....उसके पहले ही "साहेब जी"ने एक छोटी सी होम्योपैथी
दवा की शीशी देते हुए कहा....."इसे सुबह शाम ले लेना....."

प्रेमी भाई औचक भौचक्के.....मैंने "मालिक" को दर्द बताया.....इन्हें कैसे पता चला..पल भर में
दवा तैयार कर दी.....खैर.....दवा हाथ में ली और अपनी तमाम बुद्धि का प्रयोग करके प्रश्न पूछा

"साहेब इस दवा का नाम बतला देते.....? तो बाज़ार से और खरीद लेते....."

परम आदरणीय "श्री उमाकांत जी तिवारी जी साहेब" ने जवाब दिया.....
"इस 'दवा' का नाम 'दया' है और यह ऐसे कहीं नहीं मिलती है.....

और गाड़ी आगे चल दी.....

वो "दवा" जिसका नाम "दया" है.....आज भी परम पूज्य "गुरु जी महाराज" के आदेश से उनके जानशीन पूज्य परम संत "बाबा उमाकांत जी महाराज" दे रहे हैं.....

सभी को बतला देवें.....वो "दवा" जिसका नाम "दया" है.....और जो ऐसे कहीं नहीं मिलती है.....

उसे देने के लिये ही परम पूज्य परम संत "बाबा जयगुरुदेव जी महाराज" के जानशीन, धरती के
सरताज.....पूज्य परम संत "बाबा उमाकांत जी महाराज".....

नाम दान की अनमोल दौलत की बरसात सभी पर बिना किसी भेदभाव के प्रेम प्यार के साथ कर रहे हैं 

जयगुरुदेव



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