मुक्ति-मोक्ष गंगा में स्नान करने से नहीं होता, वो तो अंदर के मानसरोवर में स्नान से होगा, जानकार ही उसका रास्ता बताते हैं

जयगुरुदेव

11.08.2024
प्रेस नोट
इंदौर (म.प्र.)

मुक्ति-मोक्ष गंगा में स्नान करने से नहीं होता, वो तो अंदर के मानसरोवर में स्नान से होगा, जानकार ही उसका रास्ता बताते हैं

विश्वास के साथ बताये उपाय को नहीं करते इसलिए तकलीफ बनी रहती है, केवल रट लगाने से नहीं, करने से होगा
 

अंदर के मानसरोवर में जीवात्मा को स्नान कराने वाले, जीते जी मुक्ति-मोक्ष देने वाले, थोड़ी सी भक्ति से ही खुश होकर अपार दया लुटाने वाले, सभी तरह की समस्याओं का आसान उपाय बताने वाले, इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दीन बंधु दीनानाथ, गरीब परवर दीगार, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

मुक्ति मोक्ष (बाहर की) गंगा में स्नान करने से नहीं होता है। वो तो जो अंदर में गंगा है, उसमें स्नान करने से मुक्ति मोक्ष मिलता है। वो मानसरोवर जिसको कहा गया, वहां जब स्नान हो जाता है तब मुक्ति हो जाती है। तो जो सन्त हुए, जानकार हुए, उनको तो मालूम है। नहीं जानकार तो गंगा में आज भी बहुत से लोग स्नान करते हैं लेकिन जिनको जानकारी हो गई, कबीर दास जैसे को, तो उन्होंने तो कहा- संध्या तर्पण न करू, गंगा कबहूँ न नहाऊ, हरि हीरा अंतर बसे, वाहे के नीचे छांव। 

कुछ न कुछ भक्ति करते रहोगे तो दीनबंधु एक न एक दिन दया कर ही देगा

सुमिरन ध्यान भजन करते रहोगे तो एक न एक दिन तो वो प्रभु दया कर ही देगा। अरे दया कर देगा!! दीन बंधु दीनानाथ, गरीब परवर है वो, दया करता है इसलिए भक्ति जरूरी है। गुरु भक्ति ही कर लिया जाए कि सतसंग सुनो, ध्यान, भजन, सेवा करो, शरीर से जो भी हो सके, करते रहो, लगे रहो। यही है भक्ति। भक्ति अगर करे तो देखो भक्ति करने में जब दया मिलती है तो इस दुनिया के काम में भी कामयाबी मिलती है। 

थोड़ी मेहनत में आदमी ज्यादा कमा लेता है। और नहीं तो रात-दिन लगा रहता है फिर भी रुपया-पैसा नहीं कमा पाता है। थोड़ी ही मेहनत में आदमी का नाम, कीर्ति हो जाती है। थोड़े में ही ज्यादा फायदा हो जाता है। कब? जब कहते हो प्रभु की दया कृपा हो गयी। ऐसे भी कृपा करते हैं और अंदर में भी दया देते हैं जिससे यह जीवात्मा निकल करके ऊपरी लोकों में आने-जाने लग जाए, मन को शांति मिल जाए। 

मन यह जो तप रहा है, इसकी तपन खत्म हो जाए। जीवात्मा जो यह परेशान है कि हम बंद हो गए, निकल नहीं पा रहे हैं, यह निकलने लग जाए, ऊपर सैर करने लग जाए, इसे ऊपर की आवाज मिलने लग जाए तो यह काम होगा गुरु भक्ति से। और अगर गुरु भक्ति नहीं आएगी तो बिन गुरु भक्ति शब्द में पचते, सो प्राणी तू मूरख जान, शब्द खुलेगा गुरु मेहर से, खींचे सुरत गुरु बलवान। गुरु खींचते हैं, गुरु दया करते हैं। गुरु की दया लेना जरूरी होता है। दया के घाट पर प्रेमियो! बैठना जरूरी होता है। तो आप लोग सुमरिन ध्यान भजन बराबर करते रहो। 

आपकी तकलीफ को सुन-सुन करके हम तो ऊब गए

(बिना आदत के व्यक्ति) नामी का नाम ही भूल जाता है जो अंदर में और बाहर भी मददगार होते हैं, उनका नाम ही मुंह से नहीं निकलता। लेकिन जब कोई चीज रट जाती है तो बार-बार वही चीज मुंह से निकलती रहती है। अंदर में भी वही आता रहता है। जैसे दो घंटा बैठ कर के नाम ध्वनि आप मुंह से बोलो तो अंदर में भी फिर वही ध्वनि आती रहती है। इसलिए आदत डालो। अगर घरों में तकलीफ है तो करोगे तब तो फायदा होगा। रोने से नहीं होता है। हम तो ऊब गए आपकी तकलीफ को सुन-सुन कर के। 

आपकी तकलीफ को सुन कर के हमको भी तकलीफ होती है। किस बात की तकलीफ? कि आपको जो (उपाय) बताया जाता है, आपको उस पर विश्वास नहीं होता है। उसको आप कर नहीं पाते हो। बस (रट लगाए रहते हो कि) दया कर दो, दया कर दो। अरे दया का कोई स्रोत होता है, दया भी सीमित होती है। हर बात में दया होती है, हर जगह दया होती है? इस तरह की दया अगर होने लग जाए तो फिर किसी को कुछ करना ही न पड़े। तो कुछ काम तो गुरु की दया करती है और कुछ अपने को भी करना पड़ता है। इसलिए चाहे नए हो, चाहे पुराने हो, जयगुरुदेव नाम बोलते रहने की आदत बराबर डालो और नाम ध्वनि बराबर होना चाहिए।







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