जयगुरुदेव
14.05.2024
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*लड़के के अपहरण की घटनाओं से समझाया सच्चे सन्त के हाथ के इशारे में भी दया होती है*
*अंत में तो धोखा ही धोखा है, अपना आत्म कल्याण का असला काम जल्दी कर लो*
निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
गुरु महाराज के समय की बात है। एक लड़के का अपहरण हो गया था। आगरा का था। गुरु महाराज के पास आये, बताये कि किताब खरीदने गया था, कोई पकड़ ले गया, पकड़ हो गई लड़के की। पकड़ करके दिल्ली पहुंचा दिया उसको। अब गुरु महाराज से फरियाद किया, आया, रोया, गुरु महाराज हाथ हिला दिए। फिर क्या होता है, देखो। उन (अपहरण किये) बच्चों की रखवाली के लिए एक दाई थी।
वह उस लड़के के चेहरे को देखी, बोली कितना मासूम लड़का है यह, इसके माता-पिता परेशान हो रहे, रो रहे होंगे। धीरे से पूछी, तू जाएगा? (लड़का बोला) जाउंगा। बस, किसी तरह से खिड़की खोल करके नीचे उतार दिया उसको। अब वह भाग करके आया, किसी तरह से पहुंचा आगरा। उसके बाद गुरु महाराज के पास लड़के को लाए थे। बताये कि लड़का मिल गया। लड़के ने सब बात बताइए। ऐसी दया होती है।
यही आपके मध्य प्रदेश की बात है। एक लड़के का भी पकड़ हो गया था और फिरौती का (सन्देश भी) आ गया कि इतना रुपया दो। गुरु महाराज से जाकर कहा कि ऐसा बोल रहा है। गुरु महाराज कुछ नहीं बोले। हमारे सामने की बात है। थोड़ी दूर गाड़ी पर गए, फिर बुलाया, कहा, देख पैसा मत देना।
उस (आदमी) के समझ में नहीं आवे। कहा पैसा नहीं देंगे तो (मेरे लड़के को) मार देगा। जो सतसंगी उसको लेकर आए थे, उनको बुलाया। कहा, इससे कह दो, रुपया नहीं देगा। ऐसे दया हुई, लड़के को मारने के लिए ले जा रहे थे, रास्ते में बदमाशों की जीप खराब हो गई। अब वो जीप ठीक करने लग गए। लड़के को भूख लगी थी तो सूखी रोटी दे देते। थोड़ा सा तो रखे रहता था, वही खाता था। तो वह जीप में बैठा रोटी खा रहा था।
पुलिस की गश्त की गाड़ी निकली थी। जब उधर पहुंची, देखा, पूछा क्या बात हो गई? बोले साहब, गाड़ी खराब हो गई। पूछा कहां जा रहे हो? बोला, यह लड़का मरीज है, इसको अस्पताल ले जा रहे हैं दिखाने के लिए। पुलिस वाले आगे बढ़ गए। इस पुलिस वालों में से एक ने कहा, साहब यह तो हमको जिसकी रिपोर्ट लिखी गई है, वही लड़का दिख रहा है। पूछे कि कैसे, नहीं होना चाहिए।
बोला लड़का अगर मरीज होता तो सूखी रोटी बैठ कर नहीं खाता। तो आप चलो देखो। गये, देखा, शंका हुई तो (सबको) पकड़ कर ले गए। कबूल किया और लड़का मिल गया। अब पता चला, नौकर का ही काम था। वही बंद कर दिया था। झीने सीढियों के नीचे के दरवाजा में ही बंद कर दिया था।
तो कहने का मतलब, जाको राखे साइयां, मार सके न कोय, बाल न बाका कर सके, जो जग बैरी होय। अब यह दया, प्रेरणा कैसे होती है? यह सब ऊपर से होती है। जिस नाम में ताकत होती है, उस नाम का भी असर हो जाता है क्योंकि यह जगाया हुआ नाम रहता है।
*मन की बैठक कहां होती है*
मन की बैठक, जहां जीवात्मा की बैठक है, वहां होती है। और यह मन काल का अंश है। और काल कभी भी यह नहीं चाहता है कि यह जीव हमारे लोक से ऊपर जा पावे। क्योंकि अगर यह ऊपर चले जाएंगे तो फिर नीचे आएंगे नहीं। तो हमारे बादशाहीयत खत्म हो जाएगी। प्रजा ही नहीं रहेगी तो राजा किस बात के रहेंगे। इसलिए मन को लगा रखा है। और मन की डोर माया के हाथ में दे रखी है। माया का ही यह पूरा पसारा है।
पूरी दुनिया माया और काल की ही बनाई हुई है। माया का ही इस पर असर है, गो गोचर जहां मन लग जाए, सो सब माया जानो भाई। जहां तक नजर जाती है, वहां तक माया का ही पसरा है। रुपया-पैसा और औरतों को माया कहते हैं। इस समय दोनों का ही जोर चल रहा है। कारण कलयुग का असर है। और कलयुग में ही सतयुग आने की बात मिलती है। तो कलयुग जाएगा और सतयुग आएगा। तो कलयुग जाना नहीं चाहेगा, संघर्ष होगा, लड़ाई होगी जिसको महात्मा कबीर पहले ही कह कर गए- दो पाटन के बीच में साबूत बचा न कोये, चलती चक्की देख कर दिया कबीरा रोय। कबीर साहब रो पड़े थे कि दो पाटों के बीच में, कलयुग और सतयुग के संघर्ष में लोग पिस जाएंगे।
*अंत में तो धोखा ही धोखा है*
यही काम जो आदमी करता है, भोजन खाता, टट्टी-पेशाब करता, बाल-बच्चों को पैदा करता यही काम पशु-पक्षी भी करते हैं। तो मनुष्य का यही काम नहीं है। मनुष्य शरीर किस लिए मिला है- इसके बारे में हमेशा सोचते रहना चाहिए। जो नहीं सोचते हैं वह अपनी जिंदगी जीवन के साथ धोखा कर रहे हैं। धोखा खा जाएंगे। अंत में तो धोखा ही धोखा है। जब बुढ़ापा आता है तब आदमी सोचता है, देखो हमारा समय सब निकल गया।
जब तक शरीर में बल है तब तक आदमी सोचता है कि धन, इज्जत कमा लो, घर-मकान बना लो और इसी काम में लगा रहता है। जब यह देखता है कि इन पुत्र, परिवार, रिश्तेदार, मित्र के लिए हम दिन-रात दौड़ते रहे और इस उम्र में यह लोग बात करना नहीं चाहते हैं, मुख मोड़ रहे हैं तो पश्चाताप होता है। और देखो धीरे-धीरे समय बदलता चला जा रहा है। दुनिया स्वार्थी होती चली जा रही है।
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