*महापुरुषों का काम संकल्प मात्र से हो जाता है -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*

जयगुरुदेव

26.02.2024
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.) 

*महापुरुषों का काम संकल्प मात्र से हो जाता है -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज* 

*गुरु हिसाब, सिस्टम से काम करते हैं, छोटी सेवा से बचोगे तो कैसे कर्म कटेंगे, कैसे तकलीफ दूर होगी*


शरणागत रक्षक, त्रिकालदर्शी, कर्मों को आसानी से कटवाने का उपाय बताने वाले, पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

महापुरुष धन, तन के भूखे नहीं होते हैं, क्योंकि महापुरुषों का काम संकल्प मात्र से होता है। जो वो सोचते हैं, वो हो ही जाता है। अब ये जरूर है कि जितने भी महात्मा, सन्त, अवतारी शक्तियां होती हैं, वो सब दूरदर्शी होती हैं। दूरदर्शी यानी जो दूर का देखतीं हैं और वो शक्तियां, महात्मा जो बोल देते हैं, वो चीज लोगों को अचरज लगता है। पुराने शिष्य याद करो, 1970, 72, 73, उससे भी पहले के सतसंग। 

उसमें गुरु महाराज बोला करते थे कि पुलिस के सिपाहियों, स्कूल के मास्टरों की तनख्वा ₹300 महीना हो जाएगी। अब आप देखो, तीन-तीन लाख रूपए पढ़ाने वाले मास्टर लेते हैं। उस वक़्त ₹300 बहुत भारी लग रहा था लोगों को कि ₹300 कहां से हो जाएगा। जब नया पैसा चला था उस समय 40 पैसे प्रति लीटर पेट्रोल था। गुरु महाराज उस समय कहते थे कि ₹3 लीटर पेट्रोल हो जाएगा तो वही भारी लगता था। कहते थे ₹10 सेर चाय बिक जाएगी। 

अब देखो क्या भाव है। आप को समझने की जरूरत है कि दूर की बातें बताते थे तो वो लोगों को अचरज लगता था। लेकिन जो वो सोच लेते हैं, जो वो दूर का बता देते है, वो सब हो जाता है। संकल्प से काम होता है। लेकिन वो श्रेय अपने भक्तों को दिया करते हैं। उनको नाम कमाने का मौका दिया करते हैं कि तुम्हारा भी नाम इसमें जुड़ जाए। परिवर्तन करने के लिए इस धरती पर आते हैं और परिवर्तन करके, बदलाव करके, सुख शांति का रास्ता निकाल कर के आम लोगों के लिए, और जो भी उस समय में अधिकारी, कर्मचारी व्यापारी होते हैं उनके लिए और उन्ही के लिए ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी के लिए भी सुख-शांति का रास्ता निकाल देते हैं। 

अभी कोई बधिक न रह जाए, जानवरों को न कोई मारे तो जानवर आजाद हो जाएंगे या नहीं? अभी कौआ भी मस्त बैठे खाते रहें नहीं तो पक्षियों में कौआ भी होशियार होता है। बराबर ध्यान से देखता रहता है, फिर चोंच मारता है। तो वो भी फ्री हो जाएगा। तो सन्त सब के लिए सुगम रास्ता निकाल देते हैं फिर अच्छाई और धर्म की स्थापना करके चले जाते हैं।

*गुरु हिसाब सिस्टम से काम करते हैं*

देखो प्रेमियों, गुरु हिसाब, सिस्टम से काम करते हैं। सिस्टम किसको कहते हैं? जैसे बच्चियों, रोटी बनाना होता है वहां साफ सफाई करती हो कि कीड़े भोजन में न आ जाएं, सभी सामान इकट्ठा कर देती हो, साग सब्जी सब पहले साफ करके रख लिया, मसाला तैयार ताकि तेल ही न जलने लग जाए तब बनाती हो। रोटी बनाने से पहले आप चूल्हा जलाती हो, तवा गरम करती हो लेकिन उससे भी पहले आप आटा गूंथ करके रख लेती हो, एक-आध रोटी बेल करके रख लेती हो कि जैसे ही तवा गरम हो उस पर हम डाल दें। 

तो यह सब क्या होता है? यह एक सिस्टम, तैयारी होती है। ऐसे ही, आपका मन भजन में लग जाए, दुनिया की तरफ से हट जाए, उसके लिए गुरु भी दुनिया की चीजों की तरफ से ध्यान को हटाते हैं, तभी तो इधर मन लगेगा और नहीं तो मन जहां लगा रहता है, वहीं काम कराता है। जब कोई सतसंग कार्यक्रम होने को होता है तो काफी कुछ प्रेमी तैयारी के लिए पहले से आ जाते हैं। कुछ प्रेमी तो सेवा के लिए बराबर आते रहते हैं और आते रहना भी चाहिए। जो लोग सेवा करने के लिए नहीं आते हो, जो सेवा नहीं करते हो, वह समझ लो एक तरह से चूक कर रहे हो। जो आते हैं, सेवा-भजन करते हैं उनके तकलीफ दूर होते हैं। तमाम लोगों के रोग ठीक हो गए। 

अब यह जरूर है कि आप तो आओगे सेवा करने के लिए और ये सोचोगे कि हमको दफ्तर में काम मिल जाए, हमको कोई कुर्सी मिल जाए जिस पर बैठकर हम लिखा-पढ़ी कर लें, क्यों? पढ़े-लिखे हो आप, योग्य आदमी हो आप, कोई अफसर या व्यापारी आदमी हो, आपके पास कोई कमी नहीं है, पैसे वाले हो तो आप तो यही सोचोगे कि हम जाएंगे, हम सेवा करेंगे तो हमारे कर्म कटेंगे, हमारा मन स्थिर होगा। 

लेकिन मर्ज बड़ा है, कर्म बड़े हैं और दफ्तर में कोई काम है नहीं और चार आदमी वहीं कुर्सी पर बैठ गए तो कुर्सी ही तो तोड़ोगे, बेकार की बात ही तो करोगे। जैसे खाली समय में दफ्तर में बैठे फ़ालतू बात करते रहते थे तो वही काम तो यहां भी करोगे तो उससे आपके कर्म कटेंगे? नहीं कटेंगे। तो जिसकी जैसी गठरी, जैसा वजन होता है, उसको उसी तरह का काम मिलता है, बताया जाता है। 

अब देखो, किसी को बहुत तकलीफ कष्ट रहता है, कर्मों की सजा भोग रहा है, लेकिन शरणागत हो गया, अब कोई और रास्ता नहीं है, बहुत दवा कराया, बहुत जगह घूमे लेकिन तकलीफ नहीं जा रही है, अब तो त्राहिमाम-त्राहिमाम, शरणागतम, गुरु जी अब केवल आपके ही शरण में हैं तब हमारे गुरु जी क्या कहते थे? जाओ, वहां गौशाला में सेवा करो और हवन में बैठ जाना। तो हम लोग भी तो वही काम कर रहे हैं। गुरु महाराज के रास्ते पर ही चल रहे हैं। बहुत लोगों को गुरु महाराज ने ऐसे पहले ही सिखा दिया था। तो हम लोग भी तो वही बता देते हैं। 

जाओ गौशाला में सेवा करो। आप कहोगे हमारा कपड़ा गंदा हो गया और अब हम गोबर उठावे? हमारे गांव से लोग और रिश्तेदार आएंगे, कहेंगे यहां (आश्रम पर) गोबर उठाने, मिट्टी ढोने, फावड़ा चलाने, झाड़ू लगाने के लिए यहां आए हो? वहां नौकर तुम्हारे कपड़े धोता है और तुम यहां दूसरों के कपड़े धोने के लिए आए हो? तो आप शर्म खा जाओगे तब कहां से (सेवा) कर पाओगे? और फिर आपका कष्ट तकलीफ कहां से जाएगी? लेकिन जो दो करोड़ की गाड़ी पर चलता है और वह यहां पर सेवा के हिसाब से आया और वह ट्रैक्टर चला रहा, जुताई कर रहा, जिसकी गाड़ी वहां ड्राइवर चलाता है, और वहां यहां पर आश्रम की गाड़ी चलाता है तो उससे कर्म कटेगा। अगर वह यहां भी गाड़ी पर बैठेगा और कहेगा कि हमको गाड़ी पर बैठकर ही जाने का कोई काम दीजिए तो कहां से मिलेगा? तो जो भी सेवा मिले, अगर उसको कर लिया जाए तो उससे कर्म कटते हैं। और महात्माओं को पता होता है कि कैसे लेना-देना अदा किया जायेगा, कैसे कर्म कटेंगे।




परम पूज्य परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज 



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