*जयगुरुदेव सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया घर परिवार दुकान व्यापार का नाश करने वाली शंका को दूर करने का तरीका*

जयगुरुदेव

26.12.2023
प्रेस नोट
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

*जयगुरुदेव सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया घर परिवार दुकान व्यापार का नाश करने वाली शंका को दूर करने का तरीका*

*साधना में गैर हाजरी लगाने की धांधली अब चलने वाली नहीं है, मनमुखता छोड़ो, यही सूत्र पकड़ लो तो इसी से आपका सब काम हो जायेगा*

सब काम बन जाए ऐसा हर किसी के करने योग्य सरल सूत्र बताने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 1 जनवरी 2023 प्रातः उज्जैन (मध्य प्रदेश) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

सपने में पाए राजधन को अपना क्यों कहते हो? गंवार किसको कहते हैं? बार-बार समझाओ-बताओ लेकिन समझ में न आवे, जानते हुए भी न करे, उसको गंवार कहते हैं। गांव में रहने वाले को गंवार नहीं कहते हैं। शहर में भी गंवार होते हैं। कहते हैं, बस मैं जो चाहूं, मेरा ही कहना चले। 

संगत में भी ऐसे भक्त होते हैं जो खूब काम, खूब सेवा करते हैं, गुरु पर विश्वास भी है लेकिन मनमुखता है। मन मुखता यानी मेरे मन के मुताबिक, मेरे मन के हिसाब से होना चाहिए। जैसा मैं चाहूं वैसा ही हो। जैसा मैं कहूं वैसा ही करे। मन में अगर किसी के प्रति दुर्व्यवहार आ गया कि उन्होंने मुझे कुछ कहा था, उन्होंने मेरे लिए कुछ ऐसा किया था तो यह तो समझ नहीं पाते हैं कि इसमें भी कुछ मालिक कि ही मौज थी। इसमें भी कुछ लेना-देना था, इसमें भी एक-दूसरे के पिछले जन्मों के कर्जे की अदाई थी। इस चीज को नहीं समझ पाते हैं। परमार्थ में भी लाभ और मान क्यों चाहे, फिर पड़ेगा तुझे देना। इसको एक दिन देना पड़ता है। लेकिन वह चीज दिमाग से नहीं निकलती है। इसको मन मुखता कहा जाता है। 

मोटी बात यह है आपके मन में जो यह बात है और दिमाग से जो बात निकल नहीं रही है, इसको निकालने की जरूरत है। पिछले कितने सालों से दिमाग में यह बात रही है तो इसको निकाल दो। राग, द्वेष, मनमुटाव, वैमनस्यता को छोड़ जाओ, अपनत्व की भावना आज सब लोग ग्रहण करो। और इस मनुष्य शरीर को कागज की नाव समझो। 

कागज की नाव में कोई गारंटी रहती है कि यह हमारी यात्रा को पूरी कर देगी? अरे लकड़ी की नाव या लोहे का जहाज हो तो फिर भी थोड़ी उम्मीद है कि वह डूबेगा नहीं, पानी इस तरह (तुरंत) असर नहीं करेगा लेकिन कागज की नाव, जो पानी से ही घुल जाता है, आप उस पर सवारी किए हुए हो। कैसे उम्मीद की जाए कि आप मंजिल तक पहुंच जाओगे? 

इसलिए हमेशा अपने को देखते, याद करते रहो। यह का कांच शीशा घरों में क्यों लगा दिया जाता है? कि देखते रहो आज सिर के कितने बाल पके, आज कितनी झुर्रियां पड़ी, यह घड़ी क्यों लगा दी जाती है? कि इसको देखते रहो कि एक समय आएगा दोनों सुईयां एक जगह इकट्ठा हो जाएगी, 12 बजा देगी, ऐसे जीवन का भी 12 बज जाएगा। यह जिंदगी हाथ जोड़ देगी, अब आगे नहीं। इसलिए हमेशा अपने को देखते, याद करते रहो।

*ये धांधली चलने वाली नहीं है*

महाराज जी ने 31 जुलाई 2021 सांय जयपुर (राजस्थान) में बताया कि देखो रीति नीति बनाओ। संगत की मर्यादा रखो। भजन, ध्यान, सुमिरन करो, हाजिरी लगाओगे तभी तो मन रुकेगा। (रोज साधना में) हाजिरी नहीं लगाते हो। जो हाजिरी घर पर लगाते हैं, रोज आते हैं, बैठते हैं, (साधना से) नहीं उठे, उनका मन उधर (ऊपर की तरफ) लगा हुआ है। और मन तो एक ही है, जिधर ले जाओगे, उधर ही चला जाएगा, जिधर लगाओगे उधर ही लगेगा। उधो मन नाही दस बीस। 

यह समझ लो कि यह धांधली चलने वाली नहीं है। कितना भी उछलो, कूदो लेकिन बगैर भजन ध्यान लगाए, सुमिरन करे, इन धनियों को खुश किए बिना काम बनने वाला नहीं है। समझ लो, जीवन का यह समय आपका बेकार जा रहा है। सूत्र पकड लो, एके साधे सब सधे, तो एक काम अगर यह हो गया तो इसी से आपका सब काम हो जाएगा।

*स्वभाव आदमी का जल्दी नहीं छूटता है*

महाराज जी ने 30 जनवरी 2021 दोपहर अमरेली (गुजरात) में बताया कि आदमी का स्वभाव जल्दी नहीं छूटता है। जैसे कोई बकरी योनि की (से आई) जीवात्मा, औरत बन गई तो जैसे बकरी दिन भर चिल्लाती रहती है, ऐसे औरत भी दिन भर बोलती रहती है। भैंसा योनी से आई जीवात्मा, आदमी बन गया तो जैसे भैंसा रगड़ता, सींग मारता, गुर्राता चलता है, ऐसे आदमी भी चलता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी की पत्नी का, किसी के पति का स्वभाव बड़ा तेज होता है तो यह बेचारी उब जाती है। 

एक लड़की तो ऊब गई कि हमारी सास बहुत तेज है। उस घर में हम रहना, जाना नहीं चाहते। सतसंगियों की लड़की थी। तो हमने कहा, तू उनकी बातों को सुनती क्यों है? बोली ऐसी (कड़क) बात बोलती है कि अंदर घाव बन जाता है। हम तो सुन नहीं पाते हैं। हम उस घर में जाना नहीं चाहते हैं। तो हमने कहा, बच्ची! तू सुनती क्यों है? बोली, तो घर छोड़कर कहां चले जाए? हमने कहा, तुझको तरीका बताया गया, कान में उंगली लगा और ऊपर से कपड़ा डाल ले। तू देखेगी नहीं कि वो कैसे इशारा करती है, आंख से कैसे देखती है, वह बोलेगी तो तू सुनेगी नहीं उसकी बात तो तेरे को क्रोध नहीं आएगा। तो तू सुनती क्यों है? भजन पर बैठ जाया कर। 

सबसे बढ़िया तरीका जो पुराने लोगों को मालूम है और नए लोगों को आज बता दिया जाएगा। सबसे बढ़िया तरीका कपड़ा डालो और आंख बंद कर लो, कान में उंगली लगाओ तो गुस्सा करने वाला थोड़ी देर बाद अपने आप चुप हो जाएगा। क्योंकि क्रोध क्या है? अग्नि है। मांसाहार जब से बढ़ा तब से लोगों में क्रोध बहुत बढ़ गया है। खून जल्दी गर्म होता, खौल जाता है। दो बैल, दो गाय आमने-सामने रहेंगे तो लड़ेंगे नहीं, इकट्ठा रहेंगे। लेकिन दो कुत्ते, दो कुत्तिया एक जगह जल्दी इकट्ठा नहीं होते हैं। एक दुसरे को देखकर गुर्राएंगे, लड़ेंगे, अगर कमरे में बंद कर दो तो रातभर एक दूसरे को नोचेंगे। और गाय-बैल के लिए चारा डाल दो तो साथ रहेगे भी, लड़ेंगे भी नहीं। लेकिन (मांसाहार से) खून खौल जाता है, उसमें अग्नि गर्म होती है। अग्नि ही तो जलती है। अग्नि का यह विधान है, जलेगी तो बुझेगी। 

तो थोड़ी देर बाद भूल जाते, पछताते हैं। क्रोध खत्म हो गया तो सास, बहू खुद पछताती है कि हम क्या बोल गए। यह तो कुछ बोली ही नहीं। सबसे बढ़िया तरीका- कोई हो आग तो आप हो पानी। एकदम से चुप हो जाओ। गुस्सा किसी को आवे तो दूसरा चुप हो जाए तो झगड़ा-झंझट टल जाएगा। कोई तलाक के, दहेज के मुकदमे नहीं चलेंगे, शांति रहेगी। कोर्ट कचहरी में जाते-जाते जूतियाँ नहीं घिसेगी। तो गम खा लो, बर्दाश्त कर लो।

*शंका से घर का नाश हो जाता है*

महाराज जी ने 14 फरवरी 2021 प्रातः दुर्ग (छत्तीसगढ़) में बताया कि देखो प्रेमियों! शंका नहीं करना चाहिए। संगत में, दफ्तर में, दुकान, बिजनेस, व्यापार में भी शंका से नुकसान होता है। घर का तो शंका में नाश ही हो जाता है। 

इसीलिए किसी के प्रति शंका हो तो उसका समाधान तुरंत करना चाहिए। कह दोगे कि हमने ऐसा सुना हैं, ये बात कहां तक सत्य है? यह कहने वाला गलत है या आपके मन में कोई ऐसी बात आ गई है? या मन खुराफाती हो गया? या मेरे लिए ऐसा कह दिया, मेरी बात को काट दिया तो स्पष्ट हो जाएगा। 

नहीं तो अंदर ही अंदर गांठ बनी रहती है। और फिर वही अंदर की गांठ, व्ही अंदर की आग द्वेष की यह सुलगती रहती है और किसी ना किसी दिन जल कर, विस्फोट हो जाती है। चाहे संगत हो, घर बिजनेस व्यापार का हो तो उसी समय शंका का समाधान कर लेना चाहिए। प्रेमियों! किसी भी तरह की शंका मन में आवे तो बच्चियों उसका समाधान कर देना चाहिए। नहीं तो बहू शंका में ही सास को मरघट पहुंचाने की सोच लेती है और सास, बहू को शंका में ही घर से बाहर निकाल देने की सोच लेती है। इस चीज का ध्यान रखना चाहिए।








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