तुमने ऐसी कौन सी साधना कर रखी है, जिसके कारण भगवान तुम पर इतने दयालु हैं ?

◊ जयगुरुदेव - आध्यात्मिक संदेश 


साध्वी कर्माबाई की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। बहुत से साधु उनसे मिलने के लिए आते थे।  ऐसे ही एक रोज़ एक महापुरुष आकर कहने लगे," कर्माबाई ! हर रोज़ भगवान्‌ आपके घर भोजन करने के लिए आते हैं। आप भगवान् के लिए कैसे भोजन तैयार करती हो?" 

कर्माबाई ने अपने सीधे स्वभाव के अनुसार कहा," मैं प्रभु का स्मरण करते-करते ही भोजन ( खिचड़ी ) बनाती हूँ। जिस समय भोजन तैयार हो जाता है, परोसकर रख देती हूँ। भगवान्‌ आकर भोजन कर जाते हैं।" 

महापुरुष कहने लगे," आपको भोजन बनाने से पहले स्नान करना चाहिए, चौके में लिपाई करनी चाहिए। जिन लकड़ियों पर भोजन बनाती हो, उनको धोकर और सुखा कर ही जलाना चाहिए।" 
यह बात सुनकर कर्माबाई चिंतित हो गई कि मैंने तो कभी ऐसा सोचा ही नहीं।

दूसरे दिन कर्माबाई ने लकड़ियों को धोकर सूखने के लिए रख दिया, चौके में लेपन किया और स्नान करके भोजन बनाने लगी। भगवान्‌ हर रोज़ की तरह नियत समय पर ही आए और देखा कि कर्माबाई का भोजन अभी तैयार नहीं है, इसलिए वे वापस चले गए। 

कुछ देर बाद कर्माबाई ने भोजन तैयार कर परोस दिया। भगवान्‌ आए और भोजन करने लगे। उनके हाथ और मुँह पर खिचड़ी लगी हुई थी कि उसी समय स्वामी रामानन्द जी के दरबार में भी भोग लगाने हेतु भोजन रख दिया गया।  अक्सर भोजन की थाली को कपड़े से ढक कर भगवान का आह्वान किया जाता था। भगवान आए तो रामानन्द ने देखा कि भगवान के हाथ और मुँह पर खिचड़ी लगी हुई है। रामानन्द ने पूछा," प्रभु ! आप यह खिचड़ी कहाँ से खाकर आए हैं और आज आप इस रूप में कैसे आ गए?" 


भगवान ने कहा," मैं रोज़ कर्माबाई के यहाँ खिचड़ी खाने जाता हूँ। आज किसी ने उसे बहका दिया जिस कारण उसे खिचड़ी बनाने में देरी हो गई। उसने अभी हाथ धुलाए भी नहीं थे कि आपने याद कर लिया। मुझे उसी तरह उठकर आना पड़ा, हाथ-मुँह धोने का समय नहीं मिला।"

यह सुनकर स्वामी रामानन्द दंग रह गए कि कर्माबाई के घर हर रोज़ भगवान खिचड़ी खाने जाते हैं। स्वामी रामानन्द कर्माबाई के घर गए और कहा," तुम हर रोज़ भगवान के लिए खिचड़ी बनाती हो और भगवान हर रोज़ खिचड़ी खाने तुम्हारे घर आते हैं। तुमने ऐसी कौन सी साधना कर रखी है, जिसके कारण भगवान तुम पर इतने दयालु हैं?"

कर्माबाई ने कहा," मैंने तो ऐसी कोई साधना नहीं की है, मैं सन्त रविदास की बताई हुई मर्यादा के अनुसार भगवान का स्मरण करते हुए भोजन तैयार करती हूँ।"
यानी सन्तों का रास्ता बाहरी आडम्बर के बजाय भीतरी कमाई करने का है जिससे अपनी मंज़िल आसानी से मिल जाती है।

मक्का की बात है। एक नाई एक व्यक्ति के बाल बना रहा था। उसी समय फ़क़ीर जुन्नैद वहाँ आ पहुँचे और कहा, "ख़ुदा की ख़ातिर मेरी भी हज़ामत बना दो।"
ख़ुदा का नाम सुनते ही नाई ने अपने ग्राहक से माफ़ी माँगते हुए कहा," दोस्त ! अब मैं आपकी हज़ामत थोड़ी देर नहीं बना सकूँगा। ख़ुदा की ख़ातिर उस फ़क़ीर की ख़िदमत मुझे पहले करनी होगी क्योंकि ख़ुदा का काम सबसे पहले होना चाहिए।" 

इसके बाद उसने फ़क़ीर जुन्नैद की हज़ामत बड़े प्रेम और श्रद्धा- भक्ति से बनाने के बाद नमस्कार करके उन्हें विदा कर दिया।
कुछ दिन बीत गये। एक रोज़ जुन्नैद को किसी ने कुछ पैसे भेंट किये तो वह उन्हें नाई को देने आये। पर नाई ने पैसे लेने से इन्कार करते हुए कहा, "आपको शर्म नहीं आती ? आपने तो ख़ुदा की ख़ातिर हज़ामत बनाने को कहा था, पैसों की ख़ातिर नहीं।" 

फिर तो जीवन-भर फ़क़ीर जुन्नैद को वह बात याद रही और वह अपनी मण्डली में अक्सर कहा करते थे," मैंने निष्काम ईश्वर-भक्ति एक हज्जाम से सीखी है।"

तात्पर्य यह है कि छोटे से छोटे व्यक्ति में या छोटी से छोटी बात में भी बड़े से बड़े संदेश छिपे होते हैं, जो उन्हें खोज सकता है, वही सच्चा ज्ञान प्राप्त कर पाता है। जीवन में सजग होकर चलने से प्रत्येक अनुभव प्रज्ञा बन जाती है। जो अनमने से बने रहते हैं, वे दरवाजे पर आये आलोक को भी लौटा देते हैं।

पूज्य उमाकांत जी महाराज ने देश की जनता को कोरोना वायरस जैसी तमाम भयंकर बीमारियों और मुसीबतों से बचने के लिए "जयगुरुदेव" नाम की एक संजीवनी बूटी दी है। 
पूज्य महाराज जी ने कहा कि इस "नाम" को हमारे गुरु महाराज निजधाम वासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने सन् 1960 में जगाया और सिद्ध किया था, जो  प्रभु, ख़ुदा, गाड का ही नाम है और अभी भी पूर्ण पावरफुल है। 

शाकाहारी व नशामुक्त रह कर "जयगुरुदेव" की नामध्वनि करने से सभी तरह की मुसीबत-तक़लीफ़ में सुकून-राहत मिलेगी। नामध्वनि ऐसे करनी है-
   "जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव"
"नामध्वनि" बोले बिना बचत की कोई आशा मत रखना।
सभी सत्संगी भाई-बहन आलस्य त्याग कर सुबह-शाम नियमित रूप से सुमिरन, ध्यान, भजन और नामध्वनि ज़रूर करें। इस समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग करें।

जयगुरुदेव, जयगुरुदेव, जयगुरुदेव, जय जयगुरुदेव 

विशेष--साधना टीवी चैनल पर सुबह 8.40 से 9.20 तक पूज्य संत बाबा उमाकांत जी महाराज का सत्संग प्रसारित होता है।

जयगुरुदेव



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