जयगुरुदेव
15.09.2023
प्रेस नोट
मुंबई
*यह सन्तमत की परंपरा हमेशा रही है कि सन्त जाने से पहले किसी न किसी को अपना काम सौंप कर जाते हैं*
*परमेश्वर से गुरु बड़े, गावत वेद पुराण*
*गुरु धरा शीश पर हाथ, सोचे मन काहे को करे*
निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, संकट में किसी के भी द्वारा श्रद्धा भक्ति विश्वास से जयगुरुदेव बोलने पर मदद करने वाले, सदैव अपने गुरु की ओट में, उनके आदेश में रहने वाले, सारी दुनिया के धन से भी जो न खरीदा जा सके वो नामदान फ्री में लुटाने वाले, और शेर का बच्चा शेर ही होता है यानी स्वयं समझने की बात है, तो ऐसे इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 8 मार्च 2020 उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
गुरु महाराज ने गुरु का ऐसा नाम जगाया, ऐसे नाम के आगे जय लगाया जो सतयुग में था, सतयुग में उद्धार होता था, गुरु की पूजा होती थी, गुरु को ही सब कुछ मानते थे, उस गुरु नाम को जगाया। और गुरु के आगे देव लगाया, देव यानी जो देने वाला होता है। तो गुरु सबको देते हैं। परमेश्वर से गुरु बड़े, जिसको लोगों ने परमेश्वर कहा, उससे भी गुरु के बड़े होने का महत्व बताया, दिया गया है।
तो यह नाम उन्होंने जगाया। क्यों जगाया? यह नाम कुछ दिन रहेगा। यह नहीं कि वह (बाबा जयगुरुदेव जी इस दुनिया से) चले गए तो (यह जयगुरुदेव नाम) खत्म हो गया, यह नाम अभी कुछ दिन रहेगा। इस समय पर कलयुग है। कलयुग में सतयुग आने की बात मिलती है। सतयुग में भी यह नाम रहेगा। जब तक ऊपर से कोई आदेश नहीं होता है तब तक कोई भी महापुरुष रहे, अपनी तरफ से कोई भी नाम जगा, जारी नहीं कर सकता है। इसीलिए जब गुरु ही जगा कर चले गए तो अब किसी को दूसरा नाम जगाने, लाने की जरूरत ही नहीं है। उसी से कल्याण हो रहा है। तो यह जयगुरुदेव नाम गुरु का नाम है। यह जगाया हुआ भगवान का नाम है। परमात्मा की पूरी शक्ति जयगुरुदेव नाम में भरी हुई है। विश्वास करो, यकीन करो।
*गुरु नानक देव जी ने 27 साल की उम्र में नाम दान लिया था*
महाराज जी ने 31 दिसंबर 2020 दोपहर उज्जैन में बताया कि कबीर साहब जो सन्त के रूप में आए उन्होंने सतनाम सत साहब जगाया। उस नाम में शक्ति रही। उनके नामदानी, उनके चेला, नानक देव हुए। रावी नदी के किनारे नानक देव ने 27 साल की उम्र में नाम दान लिया था। उन्होंने वाहेगुरु नाम जगाया। वाहेगुरु करताल उन्होंने कहा।
तो वह चलता रहा। फिर उसके बाद में वह धार तो उसमें उतरती रही लेकिन (कोई नया) नाम को जगाने की जरूरत नहीं पड़ी। उसी नाम के सहारे चलते रहे। लेकिन जब उस नाम को, उनकी समाधि को, उनके स्थान को जब लोगों ने पंथ बना लिया तब शिव दयाल जी महाराज द्वारा राधा स्वामी नाम को जगाना पड़ा। राधा यानी सुरत, शब्द मानी स्वामी। राधास्वामी नाम चलता रहा। तीन-चार पुश्तों तक तो वह नाम चला। उनके बाद गरीब साहब, विष्णु दयाल जी महाराज, घूरेलाल जी महाराज। तब तक यह नाम चलता रहा। गुरु महाराज ने जयगुरुदेव नाम को जगाया। तो वर्णनात्मक नाम हमेशा एक रहता है। और हर नाम में शक्ति होती है।
*गुरु धरा शीश पर हाथ सोचे मन काहे को करे*
महाराज जी ने 21 फरवरी 2020 प्रातः लखनऊ (उ.प्र.) में बताया कि सबसे खराब काम नाम दान देना है। (मेरी) हिम्मत तो नहीं हो रही थी लेकिन गुरु का आदेश दोबारा हुआ, फिर हुक्म हो गया कि नाम दान देना शुरू कर दो। बड़े प्रेम से समझा करके कहा नाम दान दे दोगे, यह (लोग) भजन करने लगेंगे और (यदि) इनका शरीर भी छूट गया तो (भी) इनको मनुष्य शरीर मिल जाएगा। तो मैंने नामदान देना शुरू कर दिया। गुरु धरा शीश पर हाथ, सोच मन काहे को करे। जब गुरु का आदेश हो गया तो वो ही संभाल करेंगे, वो ही देखेंगे।
जितना बोझा ढो पाऊगा, ढोऊंगा नहीं तो वह धोयेंगे। अरे गिरने थोड़ी न देंगे, घुटने थोड़े टूटने देंगे। हमने कहा, जाएगी लाज तुम्हारी, हमारा क्या बिगड़ेगा। तो एक तरफ से चाहे दस हजार हो, चाहे बीस हजार हो, चाहे लाख-दो लाख हो, सब को नाम दान दे देता हूं। आदेश का पालन करता हूं। (मैं जितना) संभाल पाऊंगा, संभाल लूंगा नहीं तो वह तो संभाल (ही) लेंगे।
*यह सन्तमत की परंपरा हमेशा रही है*
महाराज जी ने 4 जनवरी 2023 दोपहर मुंबई (महाराष्ट्र )में बताया कि यह परंपरा हमेशा रही है कि (सन्त) जाने से पहले किसी न किसी को अपना काम सौंप कर जाते हैं। तो गुरु महाराज के पास जब (मैं) आया था तब कुछ नहीं जानता था। एकदम गांव का आदमी था। पढ़ करके वही कॉलेज छोड़ा ही था कि गुरु महाराज मिल गए और गुरु महाराज ने सब सिखाया, बताया, दया किया। मैंने भी केवल गुरु भक्ति करने का एक निशाना बनाया।
गुरु भक्ति, गुरु के आदेश का पालन, इस शरीर से ज्यादा से ज्यादा कर सकूं इसीलिए गृहस्थी का कोई जंजाल नहीं पाला। न कोई शादी किया, न कोई बच्चे पैदा किए, ना कोई कल-कारखाना खोला, न कोई जमीन-जायदाद खरीदा, कुछ नहीं किया। आप को समझने की जरूरत है प्रेमियों अभी जो कुछ कर रहा हूं, जमीन-जायदाद, आश्रम या गुरु महाराज का जो मंदिर (बावल में) बनाया जा रहा है, आप लोगों के लिए ही, आपके बच्चों के भविष्य के लिए ही कर रहा हूं।
गुरु महाराज भी कहा करते थे कि मेरे अपना कोई बच्चा नहीं है लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से तुम सब लोग मेरे बच्चे हो। तुम्हारे ही बच्चे, मेरे बच्चे की तरह से हैं। यह कहा करते थे। तो उन्ही का चेला तो मैं भी हूं। जैसे कोई शेर है तो शेर का बच्चा कोई गीदड़ थोड़ी पैदा होता है, शेर जैसा होगा। अब यह है अपने को तो दीन हीन समझे। हमेशा अपने को दीन हीन ही समझता हूं तो मैं तो गुरु महाराज के चरणों का धूल (रज) भी नहीं हूं।
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