*परम पिता परम धाम को पा लेना परमार्थ कहलाता है*
जयगुरुदेव
19.09.2023
प्रेस नोट
सूरत (गुजरात)
*सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया आंख बंद करने पर अंदर में उजाला प्रकट करने का उपाय*
*परम पिता परम धाम को पा लेना परमार्थ कहलाता है*
भाव से प्रार्थना करने पर खुश होकर गलतियों को माफ़ करके अंतर में उजाला करने वाले, अंतर में जिनकी ताकत की असली पहचान होती है, परमात्मा के द्वारा भेजे गए, उपरी लोकों के निजी अनुभव का इशारों में वर्णन करने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 8 जनवरी 2023 प्रातः सूरत (गुजरात) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
भजन ध्यान सुमिरन के साथ ही कुछ अंदर में दिखाई, सुनाई पड़े, इस शरीर को छोड़कर के जीवात्मा ऊपरी लोको में जाने लग जाए। अभी आंख बंद करते हैं, अंधेरा हो जाता है, अंधेरे की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते लेकिन आंख बंद करने पर अंदर में उजाला हो जाए और आगे बढ़ते चले जाएं इसके लिए गुरु को खुश करना पड़ता है। जिन्होंने यह (आध्यात्मिक साधना का) रास्ता बताया है। तो गुरु प्रार्थना करने से खुश होते हैं।
कोई आदमी नाराज हो और बार-बार उससे कहो कि माफ करो, सतगुरु माफ करो, तकसीर माफ कर दो, हमारी प्रार्थना है, इस बात को आप मान जाओ तो बार-बार कहने पर आदमी भी मान लेता है। ऐसे ही प्रार्थना की जाती है, गलतीयों को क्षमा, माफ़ कराया जाता है और उनको याद किया जाता है। अब यह जरूर है प्रार्थना जब किया जाए तब जिनकी प्रार्थना किया जाए, उन्हीं का ध्यान किया जाए। आप प्रार्थना करो और ध्यान दूसरी जगह रहा तो आप समझो कि आपने उसकी प्रार्थना किया या जिनकी प्रार्थना बोल रहे हो उनकी किया? जिसका ध्यान करो, वही तो ध्यान में रहेगा, वही तो आएगा।
*अंतर में सबकी पहचान हो जाती है*
महाराज जी ने 6 जनवरी 2023 दोपहर सूरत (गुजरात) में बताया कि तस्वीर क्यों लगाई जाती है? क्योंकि गुरु का चेहरा भूल जाता है। ध्यान जब लगाया जाता है तो सबसे पहले गुरु का ही ध्यान लगाया जाता है। गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छुटना। तो चेहरा भूल जाता है तो (याद के लिए) तस्वीर लगा दी जाती है जिससे एक बार देख लिया जाए तो ध्यान उसी तरह से लगाया जाए।
अंदर में जब गुरु का दर्शन होने लगता है तब तस्वीर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है और तब पहचान करने-कराने की जरुरत रह ही नहीं जाती है। गुरु सब की पहचान करा देते हैं। जिनकी-जिनकी पहचान करना चाहो, सबकी पहचान करा देते हैं। अपनी भी पहचान करा देते हैं। पूछना चाहो, देखना जाओ, पिछले जन्म में हम कहां थे, नरक-चौरासी की यातनाएं क्या है, यह सब दिखा देते हैं, जब अंदर में मिल जाते हैं तब।
अब आप जो गुरु महाराज के नामदानी हो, अंदर में उनको खोजने की जरूरत है। खोज री पिया निज घट में। इस घट में उनको खोजो। जो युक्ति (साधना) उन्होंने बताया उस युक्ति के द्वारा खोजो। सुमिरन के द्वारा खोजो, ध्यान लगा कर के देखो, भजन करके उनको याद करके देखो। गुरु महाराज आपको अंदर में मिलेंगे। तब आपका सब भ्रम और भूल खत्म हो जाएगा। नहीं तो साथ के अनुसार वैसा आदमी बन जाता है।
*परम पिता परम धाम को पा लेना परमार्थ कहलाता है*
महाराज जी ने 6 जनवरी 2023 प्रातः नवसारी (गुजरात) में बताया कि मदद करने को परोपकार कहते है। और परमपिता को, परमधाम को प्राप्त कर लेना परमार्थ कहलाता है। परमार्थ के कारणे, सन्तन धरा शरीर। तो दूसरों के लिए ऊपर से (सन्त) भेजे जाते हैं। उनको परमात्मा भेजता है। वो मां के पेट में ही बनते, पलते, बाहर निकलते हैं। लेकिन पहले अपना काम बनाते हैं। अपनी आत्मा को उस परमात्मा तक पहुंचाते हैं। जब परमात्मा की ताकत उनमें आ जाती है तो वह दूसरों के लिए मदद करने लगते हैं। जीवों के लिए, जिनकी सुख शांति के लिए आते हैं, उस काम में लग जाते हैं, मदद करने लगते हैं।
*ऊपरी लोकों में खुशबू की लहर ही चलती रहती है*
महाराज जी ने 1 जनवरी 2023 प्रातः उज्जैन (म.प्र.) में बताया कि दो नाक बाहर और एक नाक अंदर जीवात्मा में। उससे ऊपरी लोकों की खुशबू मिलती है। ऊपर तो खुशबू ही खुशबू है। खुशबू की लहर ही चलती है। जैसे एयर कंडीशन बंगला होता है जिसमें कहीं भी चले जाओ, गैलरी, लेट्रिन, कमरे, सब जगह ठंडी रहती है, ऐसे ही वहां उपर में लोक हैं। वहां सब एक ही जैसा है। यहां इच्छा करते हुए भी जल्दी कोई चीज नहीं मिलती है लेकिन वहां तो जो इच्छा करो, वही मिल जाएगा। वही चीज देख लो, सुन लो, सूंघ लो, जो चाहो। अमूमन तो इच्छा खत्म ही हो जाती है। दुनिया की चीजों की इच्छा रह नहीं जाती है। जैसे साधक जब साधना करता है तब कोई इच्छा नहीं रह जाती है, हर तरफ से मन हट जाता है। वहां पहुच जाने के बाद कुछ (इच्छा) नहीं। तो खुशबू अंदर (जीवात्मा) की नाक से आती है।
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