जयगुरुदेव
22.08.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया जयगुरुदेव मानने वालों को दुनिया वाले कैसे पहचानते, कैसे व्यवहार करते हैं*
*गुरु को तड़प से याद करोगे तो गुरु दर्शन देने स्वयं आते हैं*
जयगुरुदेव नाम की अलौकिक शक्ति का इजहार अपने सब भक्तों में कराने वाले, दुनिया में जयगुरुदेव नाम का लोहा मनवाने वाले, मौज के धनी, प्रेम और तड़प से याद करो तो दर्शन दे देने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 31 जुलाई 2023 सांय उज्जैन में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
निर्मल मन जन सो मोहि पावा। निर्मलता जिसके अंदर है, तन मन से जो सच्चा है, अच्छा काम करता है, देश के नियम कानून का पालन करता है, अधिकारियों, कर्मचारियों का सम्मान करता है, मेहनत ईमानदारी की कमाई करता है, उस पर लोगों को विश्वास हो गया। अब वो अगर जयगुरुदेव बोला और कहीं दूसरे रास्ते पर भी चला गया तो लोग उसको (सही) रास्ता बता देते हैं कि ये गलत आदमी नहीं होगा। एक बार बहुत भीड़-भाड़ थी और मैं तब टाट पहनता था। उस भीड़-भाड़ में पहुंच गया। अब वहीं पर एक सिपाही खड़ा था, कहा तुम जयगुरुदेव यहां कहां आ गए? और उसी ने आगे निकाल (जाने) दिया और नहीं तो वहां घंटों खड़े रहते। ऐसे लोगों को विश्वास हो गया की ये (जयगुरुदेव वाले) अच्छे लोग हैं, अच्छा काम करते, अच्छी बात बताते हैं।
एक बार स्कूटर से जा रहा था। वहीं पर रोका। तो वो किसी को छोड़ता नहीं था। कौन? चोर बैरियर वाला। तो उसने जब देखा कि (मेरी) गाड़ी पर जयगुरुदेव का झंडा लगा है। दूसरा आदमी जो बैठा था, उसने कहा देश के असली सेवक ये हैं, इनको जाने दो, इनसे पैसा मत लेना। मैं तो रुका था, देख सोच ही रहा था कि खुल्ला पैसा दे दूँ। तब तक उसने इशारा कर दिया, जाओ, जाओ। तो इस तरह से सब मददगार हो जाते हैं। लेकिन लोगों को मालूम तो पड़े की ये जयगुरुदेव वाले हैं।
लेकिन ये भी देख लेते हैं कि यहां अंडा, मांस बिक रहा है और ये यहीं बैठ के खा रहा है और गुलाबी कपड़ा पहने हुए हैं, जयगुरुदेव लिखा हुआ टोपी लगाए हुए है तब वो कहेगा कि ये नकली है, ये असली नहीं है। झूठ बोलने लग गया, झूठा भाषण देने लग गया, झूठी बात बताने लग गया, छल कपट वाली बात करने लग गया तब लोग समझ जाते हैं कि यह नकली है। ये है तो गीदड़ लेकिन शेर की खाल ऊपर से लगा दिया है। इससे हमेशा धोखा होगा। इसलिए वो समझ जाते हैं।
*सन्त मौज के धनी होते हैं*
परमार्थ के लिए ही सन्त आते हैं। परमार्थ के कारने, सन्तन धरा शरीर। वह तो इसी काम के लिए मृत्युलोक में रहते हैं। वह तो अपनी अंदर की दृष्टि से सब देखते रहते हैं। शरीर में रहते हुए भी ऊपरी लोकों में आते-जाते रहते हैं। जहां जरूरत होती है, वहीं अपना दरबार लगा देते हैं वहीं अपना सतसंग लोगों को सुनाने लगते हैं। क्योंकि सन्तों को जिस भी लोक से आना-जाना होता है, वहां के जीव को ज्ञान, जानकारी रहती है कि इनका आना-जाना उस प्रभु सतपुरुष के पास है।
यह अगर चाहें तो हमको भी वहां पहुंचा सकते हैं, यह हमारी ये योनि छुड़ा सकते हैं। ये अलग-अलग लोक हैं जैसे यह मृत्युलोक है। इसके ऊपर अंडलोक, ब्रह्मांड लोक आदि और भी कई लोक हैं। उन लोकों से सन्तों का आना-जाना होता है। कहते हैं सन्त सैलानी होते हैं। सैलानी यानी एक जगह नहीं रुकते हैं। और सन्त मौज के धनी होते हैं। किसी भी तरफ चल दिए तो चले जाते हैं। जहां समझते हैं कि जीवों की पुकार हो रही है, वहीं पर वह चले जाते हैं।
*गुरु को तडप से याद करोगे तो गुरु दर्शन देने स्वयं आते हैं*
एक साधक बड़ी चिंता में था। गुरु का दर्शन नहीं मिला। सतसंग में सुना था कि गुरु का दर्शन हो सके तो रोज करो, नहीं तो हर दूसरे दिन करो, नहीं तो तीसरे दिन, हफ्ते में एक बार, 15 दिन, महीने, 3 महीने, 6 महीने में, नहीं तो साल में कम से कम एक बार दर्शन जरूरी होता है। बरस दिनों में दरश न कीन्हा, ताकौ लागे दोष, कह कबीर वाकौ कभी न होय मोक्ष। तो बराबर दर्शन करते रहना चाहिए।
वह बेचारा नहीं आ पा रहा था। जो भी परिस्थिति रही हो। लेकिन अंदर से बराबर तड़प बनी रहती थी। कब दर्शन मिले, कब दर्शन मिले। एक दिन सुबह उठा तो गुरुजी से ही मांगा कि आज हमको दर्शन हो जाएं। गुरुजी सुबह उठे, उन्हें कहीं दूसरी तरफ जाना था। उस समय मोटरकार नहीं थी। तो घोड़ा, हाथी, ऊंट यही सबकी सवारी लोग करते थे।
तो गुरु जी ने घोड़े पर सवारी किया एक दिशा में जाने के लिए लेकिन घोड़ा मुड़ गया दूसरी तरफ। बहुत कोशिश किया नहीं मुड़ा, सोचे क्या बात है। आंख बंद करके देखा तो भगत बैठा हुआ है। और सुबह-सुबह उसने मांगा था आज गुरु का दर्शन हो जाए तो घोड़े के अंदर प्रेरणा हो गई। गुरु जी ने जब देखा तो घोड़े (लगाम को) को बिल्कुल ढीला कर दिया और ठीक वही पहुंच गए।
अब जब देखा (साधक ने), पकड़ा पैर, रोया, चिल्लाया (कि आज तो दया से दर्शन हो गए)। तो सन्त कब किधर चले जाए, कब कहां जाना पड़ जाए, कब किसके अंदर प्रेरणा हो जाए, कौन सा जीव तड़प रहा है। (उनकी गति अगम है।)
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