जयगुरुदेव
23.08.2023
प्रेस नोट
नई दिल्ली
*सन्त सतगुरु न मिलने पर जान-अनजान में बने बुरे कर्मों की वजह से जीव नरकों में चला जाता है*
*सन्त उमाकान्त जी ने बताया कैसे चौरासी लाख योनियों में जीवात्मा को सजा भोगनी पड़ती है*
जीवात्मा को नरकों की भयंकर पीड़ा से, चौरासी लाख योनियों के लम्बे चक्कर से बचा कर मुक्ति मोक्ष का रास्ता नाम दान देने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 23 अप्रैल 2023 प्रातः बुराड़ी (नई दिल्ली) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
व्यक्ति शरीर को सुख पहुंचाने के लिए, अच्छा खाने, कपड़े इंतजाम करता रहता है। घर मकान बनाता, एक के चार कपडा, एक का दस मकान हो जाए, जब इस तरह की इच्छा रखता है तो मेहनत तो इतना कर नहीं सकता तो इन्हीं कामों के लिए लूटपाट, खसोट करता है। हाथ, पैर, मुंह, आंख, नभ्या, जिभ्या से अपराध कर डालता है तो उसकी सजा मिलती है। जैसे कर्म वैसी सजा मिलती है। जैसे थप्पड़ मारने, गाली गलौज करने की सजा अलग है। जान से मारने की सजा अलग। जैसे जेल में बंद कर देते हैं, ज्यादा अपराध किया तो बेडी हथकड़ी पड़ जाती है, और ज्यादा तो फांसी की सजा होती है। ऐसे ही शरीर से बने पापों की सजा के लिए नरकों में भेजा जाता है।
जैसे यहां का नियम वैसे ही वहां का नियम। उसके अंतर्गत सजा मिलती है। जैसे जेलों में बैरक होती है, लड़कों की, औरतों की, आदमियों की बैरक अलग होती है। ज्यादा अपराधी को एक तरफ और साधारण अपराधी को अलग रखते हैं। इसी तरह से वहां पर भी बहुत सारे नरक हैं जिनमें जीवों को रहना पड़ता है। जब मनुष्य के कर्म खराब हो जाते हैं, मनुष्य शरीर पाने का मतलब नहीं समझ पाते हैं, अच्छे-बुरे का ज्ञान जब नहीं रह जाता है, जब सतसंग व सन्त नहीं मिलते हैं तब जीव भटक जाता है। तो नरकों में रहना पड़ता है। वहां से जब छुटकारा मिलता है तो चौरासी लाख योनियों में इसी जीवात्मा को भटकना पड़ता है।
*84 लाख योनियों कौन-कौन सी है*
जमीन पर चलने वाले जानवर, आसमान में उड़ने वाले पक्षी, जल में रहने वाले, जमीन के नीचे रहने वाले जीव है। ये 84 लाख योनियों है जिसको अंडज, पिंडज, उष्मज, स्थावर कहा गया है। स्थावर- पेड़-पौधे। पौधा-पेड़ बनाकर खड़ा कर दिए गए। 100 वर्ष तक खड़े रहो। एक-जगह से दूसरी जगह जा नहीं सकते हो। जानवर पत्तों को नोच करके खाएगा, कोई डाल तोड़ देगा, कोई पेड़ को ही काट देगा।
भले ही मारे गए पत्थर के बदले में बढ़िया फल देने वाला हो तब भी उस पेड़ पर कोई दया करता है? जब जी चाहा फल तोड़ लेते हैं, कच्चा ही तोड़ लेते, पत्ते भी टूट जाते हैं। जैसे किसी का बाल पकड़कर खींचो तो तकलीफ होती है, ऐसे ही उनको भी तकलीफ होती है। तो जीवात्मा उसमें भी रहती है। उनमें तत्वों की कमी रहती है। उनमें एक तत्व होता है। मनुष्य शरीर में पांच तत्व होते हैं। पांच तत्वों से ही मां के पेट में शरीर बनता, पलता, बाहर निकलता है। और बाहर भी शरीर को चलाने के लिए पांच तत्वों की जरूरत होती है। उसके लिए भी प्रकृति ने भगवान ने हवा, पानी, आसमान, जमीन आग यही पांच तत्व बनाये हैं।
*उष्मज किसको कहते हैं*
उष्मज जो मनुष्य के पसीने से पैदा होते हैं। जैसे खून चूसने वाले खटमल, जूं आदि। इन पर कोई रहम करता है? कोई किसी को गाली दे, दो थप्पड़ मारे और जो खून चूसेगा, उस पर कोई रहम करेगा? इधर-उधर जहां कहीं भी दिखाई पड़ता है, अपने आप हाथ पड़ जाता है। कोई न भी मारना चाहे तो भी अपने आप हाथ पड़ जाएगा। कहीं जूं ने काट लिया तो रगड़ देते हैं।
खटमल ने काट लिया तो उसके ऊपर रहम नहीं करते हैं कि सोने नहीं देता है। ऐसे ही अकाल मृत्यु में मारे जाते हैं। इन योनियों में बंद किया जाता है। जल के जीव पानी में ही पड़े रहते हैं। जमीन देखते ही नहीं है। उसी में पैदा होते, पलते और उसी में मर जाते हैं। तो ऐसे उन योनियों में बंद किया जाता है।
*पत्थर में कीड़े कैसे बनते हैं*
पत्थर के अंदर बंद हो जाते हैं। पत्थर में भी कीड़े होते हैं। यह धरती, आसमान, हवा, पानी, आग, यह सब एक-दूसरे से बने हैं। प्रलय के समय एक-दूसरे में खींच कर सिमट जाते हैं। मिट्टी जब कड़ी हो जाती है तब कंकड़ बन जाता है। ज्यादा दिन तक कोई चला नहीं, दबी नहीं, जुताई, गुडाई नहीं हुई तो वही कंकड़ बन जाता है। धरती पर पड़े-पड़े वही कंकड़ और कड़ा होता, बढ़ता चला जाता है। जमीन के अंदर का कोई कीड़ा यदि उसी में रह गया तो उसी मिट्टी को खाता, धरती के अंदर के पानी के स्रोत से पानी लेता, उसी में वह बच्चे भी पैदा कर लेता है।
और ऐसे वह बंद हो जाते हैं और पत्थर बड़े-बड़े बन जाते हैं। उनके अंदर भी कीड़े होते हैं। जीवात्मा उनके अंदर भी होती है। पूछोगे जीवात्मा कैसे उनमें आई? मादा कीड़े के पेट में बच्चे कैसे आते हैं? यह आपके समझ में नहीं आ सकता है, यह किसी भी विद्या के ज्ञान से, कोई भी साइंटिस्ट, वैज्ञानिक इस चीज को बता नहीं सकता है। यह एक अलग विषय है। यही उस प्रभु की लीला है कि वह (जीवात्मा को) सबके अंदर प्रवेश करा देता और सबके अंदर से निकाल लेता है। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने पता लगाने की कोशिश किया कि मरते समय कौन सी ऐसी चीज निकल जाती है कि इस शरीर में सड़न, गलन, बदबू पैदा हो जाती है, काम करना बंद हो जाता है। खून एकदम से पानी जैसा होकर सूख जाता है, हड्डियों में जान नहीं रह जाती है। जो शरीर दौड़ता, चलता-फिरता, जो दिल दिमाग काम करता, बड़ा-बड़ा काम कर डाला, अब वह काम नहीं करता है।
आज तक परेशान, पता नहीं लगा पाए। वहीं पर इनकी विद्या बुद्धि फेल हो जाती है। जहां पर इस दुनिया की विद्या, धन खत्म होता है वहां से आध्यात्मिक विद्या, धन की शुरुआत होती है। तो यह परा विद्या, परा ज्ञान, परा यानी ऊपरी, बढा हुआ, इससे भी ज्यादा ऊंचा, बड़ा।
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