स्वामी जी ने कहाः
1. अरुचि में दवा खाओगे तो वह फायदा नहीं करेगा। जब चित्त प्रसन्न हो और कोई चीज लोगे तब उसका आनन्द भी आयेगा और लाभ भी करेगी।
2. शरीर का समय हर रोज घट रहा है। बचे हुए दिनों के अन्दर अपना काम बना लो। अगर बीमारी लग जाये तो साधन भजन भी नहीं हो सकेगा।
3. यह परदेश है। इस देश में हमेशा कमी रहेगी। यह रहने का स्थान नहीं । कर्म फल चाहे अच्छा हो या बुरा हो मिलना ही है। दया जीवों के प्रति रहेगी तो जल्दी यहां से निकल जाओगे और यदि दया नहीं रही तो यहां से निकल नहीं सकते। किसी भी जीव को मारना काटना नहीं।
4. सत्संग सुन लोगे तो डर नहीं लगेगा। इन्सान को अपना कर्म डराता है। कर्म खराब होते हैं तब डर लगता है। कर्म तुम्हारा साथ नही दे रहा इसीलिए डर लग रहा। जब ऐसा वक्त आवे तब तुरन्त आना चाहिए वर्ना कर्म तुम्हें खींच ले जायेंगे।
5. जब तक काम, क्रोध, तृष्णा बनी रहेगी, तब तक गुरु भक्ति नहीं हो सकती। पहले जो मोटे मोटे शारिरिक बन्धन हैं उन्हें गुरु आदेश का पालन करके काटो।
6. समझ कर बात करो, झगड़ा मत करो। कयामत आयेगी। फकीरों महात्माओं ने कहा है तो आयेगी ही। तुम उन बातों को समझ नही सकते हो। कर्मों का जो खेल है, जब अन्तर में जीवात्मा की आंख खुलती है तब दिखाई देता है। जब साधक अन्तर में देखेगा तब गुरु की महिमा करेगा।
एक संस्मरण- बाबा जयगुरुदेव
एक दिन गुरु महाराज से मैने पूछा कि स्वामी जी किसी जंगल में जाकर भजन करुं। स्वामी जी महाराज बोले कि नहीं। तुम भजन कहीं भी करो। गांव में जाकर रोटी मांग लाओ और खाकर भजन करो। मैं एक गांव में गया। एक दरवाजे पर गया रोटी के लिए तो वहां एक आदमी बैठा था। मुझे देखकर गालियां देने लगा कि देखने में तो इतना हट्टा कट्टा है और मेहनत नहीं कर सकता, रोटी मांगता है।
मैने चुपचाप उसकी बात सुनली और आगे बढ़ने वाला ही था कि उसकी स्त्री आ गयी और अपने पति से कहने लगी कि तुम साधु को गाली क्यों देते हो। वह खड़ा है चला जायेगा। फिर मेरी तरफ मुड़कर बोली आप रुको! इसको माफ कर देना, इसको समझ नहीं है। ऐसे ही यह सबको कुछ न कुछ बक देता है। वो अन्दर गयी, रोटी लाई और मुझको दिया। मैने रोटी ली और चल दिया। उस आदमी की बात को मैने अपने दिल और दिमाग में नहीं उतारा। कहने का मतलब यह है कि जब तुम्हें कुछ लेना है तो दीन होना पड़ेगा बर्दाश्त करना पड़ेगा तभी अपना काम बनेगा।
एक संस्मरण- बाबा जयगुरुदेव
जब समझाया तो...
मैं एक बार रास्ते से जा रहा था तो चौराहे पर खड़ा एक आदमी अपने भाषण में रामायण की आलोचना कर रहा था कि गोस्वामीजी ब्राह्मण थे इसीलिए उन्होने लिखाः ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी’। वो नारियों को दबाकर रखना चाहते, पुरुष प्रधान समाज की बात करते थे वगैरह वगैरह।
मैं गाड़ी रोककर उसकी बातें सुनता रहा। जब वो बोल चुका, नारे बाजी कर चुका और मंच से उतरा तो मैंने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि तुमने भाषण तो अच्छा दिया पर एक बात सच सच बताओ कि कल तुमने रात नौ बजे अपनी पत्नि को क्यों मारा था ? वह मेरी तरफ देखने लगा।
फिर बोला कि महाराज मैं सच सच बताऊंगा। वह इतनी अड़ जाती है सीधी कोई बात समझती ही नही तो मुझे भी गुस्सा आ गया और मैंने उसे दो हाथ जमा दिया। मैंने हंसकर कहा कि गोस्वामी जी ने भी तो यही कहा है कि थोड़ा अंकुश सब पर होना चाहिए और इसका तुमने कैसा अर्थ लगा दिया। वह चुप रहा फिर बोला महाराज! आपकी बात मुझे समझ आ गई। अब मैं रामायण के विरुद्ध एक शब्द भी कभी नहीं कहूंगा। अपने संस्मरण सुनाते हुए स्वामी जी ने कहा कि यही होता है, नासमझी में तुम महात्माओं की बातों का भी उल्टा सीधा अर्थ लगाते हो, खुद तो भ्रमित रहते ही हो, दूसरों को भी बर्गलाते हो।
जयगुरुदेव
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baba jaigurudev ji maharaj |
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