*आगे बड़े-बड़े करिश्मे, बड़ी-बड़ी सजा, बड़ी-बड़ी तकलीफें आएंगी- सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*


जयगुरुदेव

16.07.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (मध्य प्रदेश)

*आगे बड़े-बड़े करिश्मे, बड़ी-बड़ी सजा, बड़ी-बड़ी तकलीफें आएंगी- सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*बाबा उमाकान्त जी ने बताया कलयुग और सतयुग के बीच समावेश के समय बचत का उपाय*


लक्ष्मी को घर में रोकने के उपाय बताने वाले, कुदरत की बढ़ती नाराजगी और त्रिकालदर्शी होने के नाते कुदरत द्वारा अभी और आगे भी, दी जाने वाली सजा से सतर्क करने वाले, जान-अनजान में बने पापों को क्षमा करने का उपाय बताने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, लोकतंत्र सेनानी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 16 जुलाई 2023 उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

बहुत से लोग कहते हैं कि कमाई तो बहुत हो रही है लेकिन बरकत नहीं हो रही है। दिखाई नहीं पड़ रहा है कि कहां चला जा रहा है। कारण है कि पहले संकल्प था की आमदनी का दसवां अंश अच्छे काम में लगाना ही लगाना है। वह संकल्प लोगों ने अब तोड़ दिया, वह परिपाटी छोड़ दी, भारतीय संस्कृति से अलग हो गए इसीलिए एक तरह से कुदरत ने नंगा कर दिया।

*कुदरत कैसे और क्यों सजा दे रही है*

देखो पैसे वाले कहीं कपड़ा पहन पाते हैं? पहनते क्या हैं? फटा पैंट, चड्डी-बनियान, नेकर, औरतों के शरीर पर कपड़ा रह ही नहीं गया। ऐसे ही ढक लेती हैं बस, बाकी नंगी रहती हैं। यह कुदरत सजा दे रही है कि तुमको नंगा कर दे रहे। आठ-आठ दिन की रोटी खाने की आदत पड़ गई। कहते हैं डबल रोटी खाते हैं। बस थोड़ी सी सब्जी, थोड़ा सा सलाद उसी पर रखकर खाते हैं। कुदरत ने छीन लिया इनका रोटी, छीन ली इनकी ताकत, खत्म हो गई। जो चार-आठ रोटी खाकर के, डंड मुगदर करते, नौजवान लोग शरीर को बनाते थे, अब वह ऐसे हो गए कि हवा में उड़ने वाले जवान दिखाई पड़ रहे। तेज आंधी आ जाए तो लड़के और लड़कियां उड़ करके दूर चले जाएं। यह कुदरत सजा दे रही है क्योंकि नियम-कानून, धर्म को भूल गए, सच्चाई से अलग हो गए, हिंसा-हत्या करने लग गए, सेवा भाव रह नहीं गया तो सजा मिलेगी। ये कुदरती कहर चला दे रही है।

*अभी आपने क्या देखा है?*

आगे बड़े-बड़े करिश्मे, बड़ी-बड़ी सजा, बड़ी-बड़ी तकलीफें आएंगी। उसमें लोग कैसे बचेंगे? बचेगा साध जन कोई, जो सत से लौ लगाएगा। जो भजनानंदी होगा, जो किलिया को गह रहे, जो कील को गह (पकड़) लेंगे, उनका कोई बाल भी बांका नहीं होगा। चलती चक्की देखकर, हंसा कमाल ठाठाय। कील साहारे जो रहे, सो साबुत बच जाय।। जो नाम की कमाई करेगा, सत्य का संग करने का प्रयास करेगा, उसी की बचत होगी, बाकी तो समझो- दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय। चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय।।

*धन व मन से बने पाप को क्षमा करने का उपाय*

जो यह दो युग का समावेश है- कलयुग और सतयुग के बीच का समावेश है, यह समय लोगों के लिए बड़ा ही दुखदाई होगा। जो धन से पाप हो जाए उसे क्षमा करने के लिए सेवा में लगाना चाहिए। जो मन से पाप हो जाए तो मन से भी इच्छा रखनी चाहिए हम किस तरह से लोगों के अंदर धर्म ले आवें, हमें किस तरह से लोगों के अंदर ईश्वरवादिता ले आवे, भगवान को लोग मानने लग जाए जो भूलते चले जा रहे हैं, किस तरह से लोगों को शाकाहारी नशामुक्त बना करके मानव मंदिर को गंदा करने से रोक करके उसके अंदर प्रभु का दर्शन करवा दें, किस तरह से लोगों को हम नामदान दिला करके सुमिरन ध्यान भजन समझा करके जन्म मरण से छुटकारा मुक्ति मोक्ष दिला दें, इसकी फिक्र लोगों को मन से करते रहना चाहिए, सोचते रहना चाहिए।


सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*



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