बाबा उमाकान्त जी महाराज के कुछ महत्वपूर्ण वचन:- (मात्र 60 सेकंड में कुछ नया सुनें) 39.

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश

762. आपके शरीर और आपके इस गुलाबी वस्त्र का भी असर लोगों को आने वाले समय में दिखाई पड़ेगा।


763. प्रभु के बनाए सिद्धांत के अनुसार चलेंगे तो सुखी रहेंगे।


764. नेकी कर दरिया में डालो।


765. नाम के बारे में कई महात्माओं ने लिखा है।


766. सब राक्षस को नाम जपायो, आमिष भोजन तिन्हें तजवायो।


767. युक्ति, उपाय के अनुसार देवताओं से मिलना, दर्शन और बात होगी।


768. सन्तों के पास रहना तलवार की धार पर चलने की तरह से होता है।


769. सन्तों के पास रहना तलवार की धार की तरह से होता है। पार्ट 1


770. गुरु जब किसी को तैयार करते हैं तो दुनियादारी जैसा ही व्यवहार करते हैं।


771. एक बार तो जीवन में बड़ी निराशा हुई। 


772. भजन, सतसंग, जानने - समझने का समय कब मिलेगा?


773. दुनिया के झखोले से बचे रहोंगे।


774. परमार्थी सेवा।


775. अपने मिशन, काम में सफल कब होंगे?


776. तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा!


777. जिन बच्चों को तेल की मालिश नहीं होती है वही बच्चे कमजोर रह जाते हैं।


778. धरती तत्व मिलने के लिए बच्चों को जमीन में खेलने देना चाहिए।


779. सतसंग वचन मौके पर बहुत काम आते हैं।


780. सन्त विधि के विधान को भी टाल देते हैं।


781. सतगुरु को जीवों के पूरे कर्म साफ़ करने पड़ते हैं।


782. लोक बनाना किसे कहते हैं?


783. परलोक बनाना किसे कहते हैं?


784. यहां छाप लगाने का काम नहीं होता हैं।


785. यहां छाप लगाने का काम नहीं होता हैं। पार्ट 2


786. कलयुग के प्रथम संत कबीर साहब जी ने आंखों के नीचे की साधना सब खत्म कर दिया।


787. गुरु का फोटो यादगार और अभ्यास करने के लिए लगा दिया जाता हैं।


788. संतों के बहुत से जीव फंसे हुए हैं।


789. सपने में क्या होता है ?


790. स्वप्न उटपटांग होते हैं।


791. शंका से घर का नाश हो जाता है।


792. मन मुखता किसे कहते हैं?


793. उलझने का अब समय नहीं हैं।


794. अकेला आदमी क्या कर सकता हैं? एक नया उदारहण आप पेश करो।


795. अच्छी बात, सकारात्मक बातों को ही बताया जाए।


796. मन मारने का मतलब क्या होता हैं?


797. परम पिता, परम धाम को पा लेना परमार्थ कहलाता हैं?


798. यह संतमत की परंपरा हमेशा रहीं हैं।


799. ऑनलाइन, टेलीफोन से नाम दान नहीं दिया जाता हैं।


800. शक्ति खिंच जाने पर साधारण ही मनुष्य रह जाता हैं।


801. कोटि न सूरज चांद सितारें रोम-रोम करें उजारें।


802. प्रभु सन्त को आदेश देकर भेजते हैं, कि लोगों को समझाओ।


803. अंतर में सबकी पहचान हो जाती हैं।


804. आँख बंद करने पर अंदर में उजाला हो, इसके लिए क्या करें?


805. चित्रगुप्त के बही खाते कैसे होते हैं ?


806. सबकी मृत्यु एक जैसी नहीं होती है।


807. स्वभाव जल्दी छूटता नहीं है।


808. ये धांधली चलने वाली नहीं है।


809. परमार्थी काम करो और कराओ।


810. मनुष्य जीवन पाना सार्थक हो जाएगा। 


साभार:



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ