*ऊपरी लोकों में सन्तों के लिए कोई रोक-टोक नहीं होती है*

जयगुरुदेव

30.06.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)

*ऊपरी लोकों में सन्तों के लिए कोई रोक-टोक नहीं होती है*

*साधना में शरीर से जीवात्मा निकलने में शुरू में कैसा लगता है*

*इसी घट में ही सब कुछ है*

निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, उपरी दिव्य लोकों में निरंतर आने-जाने वाले, अपने अपनाए हुए जीवों को भी अपने साथ ले चलने वाले, कर्मों की गहन गति को जानने समझने वाले, प्रभु बाहर नहीं, अपने अंतर में, घट में ही है लेकिन मिलेगा कैसे- ये बतलाने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 5 दिसंबर 2022 सांय उज्जैन आश्रम  में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

सन्त रहते तो मनुष्य शरीर में ही हैं लेकिन इनका आना-जाना ऊपरी लोकों में रहता है। और हमारे गुरु महाराज जैसे सन्त तो हर लोक में आते-जाते रहे। सन्तों के लिए कोई रोक-टोक नहीं होता है। जिन लोकों में से होकर यह जाते हैं, उन लोकों के जीव भी प्रार्थना करते हैं, कहते हैं हमको भी लेते चलो, हमको भी आप कुछ सुना दो। आप वहां मृत्युलोक में सुनाते समझाते हो लेकिन हमको भी कुछ उपदेश कर दो। तो वहां भी सतसंग सुनाया करते हैं। वहीं मजमा जमा लेते हैं और वहां भी जीवों को सुनाते समझाने लगते हैं।

*ऊपरी लोकों में कैसा महसूस होता है*

महाराज जी ने 16 मई 2022 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि मालिक मिल जाए, मालिक का देश आपको दिखाई पड़ जाए, उसकी दया हो जाए, उसके नीचे के लोकों में जाने, घूमने, देखने लग जाओ। देव लोक सूर्यलोक चंद्रलोक आदि में आप जाने लग जाओ तो आपको बहुत अच्छा लगेगा। देखो इस सूरज में बहुत गर्मी है लेकिन जब सूर्य लोक चले जाओगे तो वहां कोई गर्मी नहीं है, बड़ी शीतलता है तो बार-बार आपका मन वहां जाने के लिए करेगा। मन मानेगा ही नहीं। अभी तो मन ही नहीं कहता है साधना करने को। जब करने लगोगे तो मन मानेगा ही नहीं, अपने आप आपसे साधना करायेगा। तो जब वहां जाओगे, देखोगे और अच्छा महसूस करोगे। जब वहां पहुंचने पर आनंद मिलता है तब आप दूसरों को बताने लगोगे। और जैसे ही बताओगे, वैसे ही वह बंद कर देगा। फिर वह चीज न तो दिखाई पड़ेगी, न सुनाई पड़ेगी। फिर बहुत तड़पोगे।

*साधना में शरीर से जीवात्मा निकलने में शुरू में कैसा लगता है*

महाराज जी ने 29 नवंबर 2020 दोपहर उज्जैन आश्रम में बताया कि वह तो सन्त होते हैं जो बराबर आते-जाते रहते हैं, अपनी जीवात्मा को निकालते रहते हैं। जब जीवात्मा निकलती रहती है तो कोई तकलीफ नहीं होती है। शुरू-शुरू में थोड़ी तकलीफ होती है। कुछ लोग साधक कहते हैं कि घबराहट हो रही है, कुछ कहते हैं कि जैसे भय डर लग रहा है, मालूम पड़ा जैसे शरीर छूट जाएगा, तरह-तरह के। 

कुछ के तो कर्म आ जाते हैं तब ऐसा मालूम पड़ता है। और कुछ को ऐसे भी निकलते समय तकलीफ होती है। लेकिन जो बराबर निकालते रहते हैं साधक, अच्छे साध हो जाते हैं उनको दिक्कत नहीं होती है। तो सन्तों का आना-जाना तो बराबर होता है, उनको तकलीफ नहीं होती है। और जो धार्मिक लोग होते हैं (मृत्यु के समय) उनके आंख मुंह से जीवात्मा, प्राण निकाले जाते हैं। किसी की आंखें पलट जाती है, किसी का मुंह टेढ़ा हो जाता है, किसी के मुंह से झाग निकलने लगता है। तो तकलीफ सबको होती है। लेकिन जो पापी कुकर्मी होते हैं, उनके प्राण गुदा द्वार से निकाले जाते हैं, उसको बहुत तकलीफ होती है। जन्मते-मरते वक़्त भी तकलीफ होती है।

*इसी घट में ही सब कुछ है*

महाराज जी ने 19 मार्च 2019 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि इसी घट में ही सब कुछ है। कबीर साहब ने कहा- यही घट भीतर सात समुंदर यही में मलमल नहाओ, मन मोरा विदेशवा न जाओ, घर ही है चाकरी। जो तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग, तेरा साईं तुझमें है जान सके तो जान। गुरु महाराज ने भी बराबर प्रार्थना किया। वो बताते नहीं, रटाते रहते थे। हमको तो मालूम है। कोई चीज किसी को बताना हो। बार-बार उसको बुलाते थे, बार-बार रटाते, कहलाते थे। मैं जब बोलने लगता हूं तो बहुत से लोगों को खराब लगता है। 

हमारे साथ सहयोगी कार्यकर्ता है, उनको अंदर ही अंदर खराब लगने लगता है। लेकिन मैं अगर इतना न बोलूं, इतना कड़क न बोलूं तो यह काम हो ही नहीं सकता है। यह जो आपका इन्तजाम है, गुरु महाराज के जाने के बाद संगत बढ़ रही है, लोग जुड़ रहे हैं, लोगों को फायदा हो रहा है, ये काम नहीं हो सकता है। हम तो देखते थे, गुरु महाराज थोड़ा प्रेम से बोलते थे, मेरी आवाज थोड़ी कड़क है तो खराब लगती है। नया आदमी आता है तो कहता है कि कैसा बाबा है, देखो ऐसा बोलता है। गुरु महाराज बराबर रटाते, बताते रहते थे। 

प्रार्थना ही वह कराते रहते थे- खोज री पिया को निज घट में। कभी यह नहीं कहते थे कि मठ मंदिर मस्जिद पेड़ पौधों में खोजो, घट में खोजो। मनुष्य शरीर के बारे में बराबर बोलते रहते थे। थोड़ी देर का भी सतसंग होता था तो बराबर बोलते रहते थे। किराए के मकान की तरह से ये शरीर यहीं छूट जाएगा और फिर दुबारा तुमको जल्दी नहीं मिलेगा। इसमें तुम भजन ध्यान लगा लो, कर लो, बुलाते रहते थे। बराबर जगह-जगह पर बुलाते रहते थे। दस-दस ग्यारह-ग्यारह दिन का कार्यक्रम करते थे गुरु महाराज। अब तो इतनी भारी संख्या हो गई कि दस-ग्यारह दिन का इंतजाम करना बड़ा मुश्किल है। दादा गुरु भी गुरु महाराज से कहते थे कि आगे समुन्द्र का रूप ले लेगा।





जयगुरुदेव

sant umakantji maharaj

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