जयगुरुदेव
व्यापारियों के लिए प्रेरणादायक प्रसंग
देखो आप इसमें व्यापारी भी हो, व्यापार करते हो। सोचते हो कि ज्यादा से ज्यादा पैसा निकाल लिया जाए माल में लेकिन एक माल में एक सामान में आपने ज्यादा पैसा ले लिया और ग्राहकों को यह शंका हो गई कि दूसरी जगह से इन्होंने पैसा ज्यादा लिया या घटिया माल दिया तो फिर वह दोबारा नहीं आएगा।
एक व्यापारी की चीनी बहुत बिकती थी, शक्कर जिसको कहते हो बहुत बिकती थी। दूसरे व्यापारी ने कहा, भाई तुम जो भाव लाते हो उसी भाव पर बेच देते हो, खिलाते क्या हो बच्चों को बचाते क्या हो? तो उसने पूछा- तुम कितना कमाते हो? तो कहा कि हम तो 30 रु.40 रु. कमा लेते हैं रोज का। उसने कहा कि में उतने ही रेट पर बेचता हूं लेकिन 200 रु. रोज कमाता हूं। उसने कहा कैसे कमाते हो, बोला एक खाली बोरा 2 रु. का बिक जाता है। चीनी शक्कर तो उसी भाव पर बेच देता हूं और बोरा बेच कर 200 रु. शाम को लेकर चला आता हूं।
मतलब यह है कि तरीका होता है कमाने का. ग्राहक बढ़ जायेंगे तो मुनाफा बढ़ जाएगा जिससे अच्छी कमाई होने लगेगी। याद रखना चाहिए कि मेहनत और ईमानदारी से धंधा चलता है तो बरकत होती है। बिना मेहनत की कमाई तकलीफ देती है।
श्री गोविंद खंडेलवाल जी, अध्यक्ष- खण्डेलवाल समाज ने कहा कि जहां एक ओर निशाचर प्रवृति के लोग शराब जैसे बुद्धिनाशक नशों की ओर लोगों को ले जा रहे थे, मांसाहार की ओर ले जा रहे थे वहीं पर बाबा उमाकान्त जी महाराज ने ऐसी काम को ऐसे समाजों को जो नशों में सबसे ज्यादा भीगे हुए थे उन्हीं को इन सबसे दूर किया। मैं आपसे विनती करना चाहता हूँ कि जो आप शाकाहार की, नशामुक्ति की अलख जगा रहे हैं. उसे निरंतर जगाते रहें
बाबा उमाकान्त जी महाराज की जीवनी से प्रभावित हुए लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकार और साझा किए • अपने जीवन में आये भावनात्मक एवं वैचारिक परिवर्तन
• श्री विशाल हाड़ा, अध्यक्ष उज्जैन प्रेस क्लब ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि- "मैं महाराज जी को अक्सर सुना करता हूँ। बहुत समय से देख रहा हूँ, पढ़ रहा हूँ, जान रहा हूँ। मैंने देखा है कि आप शाकाहारी होने का संकल्प दिलाते हैं, नशामुक्ति का संकल्प दिलाते हैं। पहले मैं सोचता था कि ऐसा क्यों करते हैं? दुनियादारी में रहकर भी तो सतकर्म करने का प्रयास किया जा सकता है। लेकिन जब बाद में मैंने उन्हें और गंभीरता से जाना तो पता चला कि यदि भारत को विश्व गुरु बनाना है तो इन चीजों का त्याग तो करना ही पड़ेगा।"
श्री अर्जुन चंदेल, अध्यक्ष ओरिजिनल प्रेस क्लब, उज्जैन ने बाबाजी के विचारों से अति प्रभावित हुए और अपने अनुभव का शब्दों में वर्णन करते हुए कहा कि " में बाबा जी महाराज (परम पूज्य बाबा उमाकांत जी महाराज) का जीवन पढ़ रहा था। मैंने देखा कि महाराज जी करोड़ों-अरबों-खरबों की जायदाद दो मिनट में निर्णय लेकर छोड़ आए। बाबा जयगुरुदेव जी में महाराज मथुरा में बहुत बड़ी संपत्ति छोड़ गए थे और महाराज जी (बाबा उमाकांत जी महाराज) ने जब देखा कि यहां पर विवाद की स्थिति हो सकती है तो उन्होंने दो मिनट भी निर्णय लेने में देरी नहीं की और उज्जैन की धरती पर आ गए।
जिस धरती पर बाबा उमाकांत जी महाराज जैसे संत बैठे हैं, वो धरती अपने आप ही रिचार्ज हो गई। महाराज जी ने समाज के किसी भी तबके को सम्मान देने में नहीं छोड़ा। पूरे उज्जैन वासियों की ओर से मैं आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने इस सुंदर आश्रम को उज्जैन की धरा पर बसाने का निर्णय लिया। सारे संसार में आपके अनुयायी फैले हुए हैं। हर साल यहां पर आयोजन होते हैं। मैंने देखा कि पूरा नगर यहां पर बसा हुआ ।। यह भी कहीं न कहीं उज्जैन के आर्थिक हितों को लाभ पहुंचाता है। जब आपके अनुयायी दुनिया भर से यहां आते हैं तो शहर को देकर ही जाते हैं, (शहर वालों से लेकर कुछ नहीं जाते ।
• आज मुझे इस पंडाल के नीचे यह सुनकर सुखद आश्चर्य हुआ की जब मैं आपके अनुयायियों का भजन भी सुन रहा था. वो बात कर रहे थे। राष्ट्र को जोड़ने की राष्ट्र के निर्माण की, हिंदू-मुस्लिम के झगडे मिटाने, जाति का वर्गान्तर मिटाने की बात कर रहे थे। भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए यही एक मार्ग है कि हम अपने कर्मों में सुधार लाएं, अपने आचरण में सुधार लाएं, तभी हम विश्व गुरु बन पाएंगे।"
विशाल कार्यक्रम हेतु विभिन्न व्यवस्थाएं
कार्यक्रम में पधारे हुए सभी भक्तों की सुविधा के लिए भोजन हेतु •सकड़ों भोजन-भंडारों, ठहरने हेतु कई श्रेणियों की आवास व्यवस्था. जल-कल व बिजली व्यवस्था, सुरक्षा व्यवस्था व चिकित्सा व्यवस्था आदि का संचालन संगत के स्वयंसेवी सेवादारों द्वारा किया गया। बाबा जयगुरुदेव आश्रम, पिंगलेश्वर रेलवे स्टेशन के सामने, मक्सी रोड, उज्जैन (म.प्र.) में स्थित 100 बेड के स्थाई निःशुल्क अस्पताल के अलावा कार्यक्रम में आये लाखों लोगों की भीड़ की सुविधा के लिए अलग-अलग प्रदेश के कैम्पों में अस्थायी निःशुल्क चिकित्सालयों का संचालन भी संस्था द्वारा किया गया।
कार्यक्रम शुरू होने की पूर्व संध्या पर (14 मई को सायंकाल की बेला में) लौकिक एवं पारलौकिक सतसंग की वर्षा की बाबा जी के सतसंग के कुछ अंश इस प्रकार है-
इस वक्त किसी को शांति नहीं मिल रही है.
जीवन में ऐसा अवसर कम मिलता है कि जब एक जगह इकट्ठा हो करके एक दूसरे का मेल मिलाप होता है। सतसंग के वचन सुनने को मिलते । पहले के समय में तो बराबर सतसंग सुनने की लोगों की आदत बनी रहती थी लेकिन अब इस वक्त पर आदमी इतना व्यस्त हो गया कि सतसंग की बात तो छोड़ो प्रभु, जिनको भगवान कहते हैं उन्हीं को भूल रहा है। असली चीज जो मौत है उसको भूल रहा है। अब आप सोचो कि मौत आ जाने के बाद जिन चीजों को इकट्ठा करने में लगे हुए है कोई चीज काम आएगी? लेकिन कल की ही फिक्र में बहुत से लोगों को नींद नहीं आती है। सोचते हैं कल कैसे करेंगे, कहाँ से कमाई करेंगे, किस तरह से होगा, देर रात तक यही सोचते रहते हैं। बहुत से लोग जब नींद नहीं आती है तो नशे की चीजें भी खा लेते है जिससे हमको नींद आ जाए। कुल मिलाकर वह समझो इस वक्त पर शांति नाम की चीज दिखाई नहीं पड़ रही है ना राजा को शांति ना रयत को शांति, ना पूंजीपति को ही नींद आ रही है। शांति, सुख जहाँ पर मिलता है वहाँ जाना पसंद नहीं करते हैं।
ये जो अमावस्या पूर्णिमा आती है तो संकेत देती है कि इतना समय तुम्हारे जीवन का निकल गया इतना महीना, इतना दिन इतनी तिथि तुम्हारे जीवन की निकल गई। इतनी सास तुम्हारी पूरी हो गई। दिन और रात, ये क्या बताते हैं, ये सब संकेत देते हैं कि समय ये तुम्हारा निकल गया है. एक रात खतम हो गई, अब ये जीवन में तुम्हारे नहीं आयेगी, ये दिन अब तुम्हारे जीवन में नहीं आयेगा इसलिए चेतो, सब यहीं के लिए मत करो, कुछ यहां के लिए भी करो।
15 मई 2023 को प्रातः काल की बेला में परम पूज्य उज्जैन वाले बाबा जी महाराज (परमसंत बाबा उमाकान्त जी महाराज) ने सतसंग सुनाते हुए बताया कि.
अंत समय में किसका शरीर कसे खाली होता है?
जो संत होते हैं, साधक होते हैं, जिनको जानकारी हो जाती है कि इस शरीर को खाली तो करना ही पड़ेगा, तरीका सीख जाते हैं और जन जाने का समय पूरा हो जाता है, आराम से खाली कर देते हैं। जिनको सतसंग मिलता रहता है, संत मिलते रहते हैं, जो समझते हैं कि कैसा खाना चाहिए. कैसे रहना चाहिए. किस तरह से व्यवहार करना चाहिए, उनकी बुद्धि सही रहती है। शाकाहारी होते हैं, नशामुक्त होते हैं, सतसंग के द्वारा अच्छे-बुरे की पहचान हो जाती है तो अच्छा कर्म ही करते हैं, उनको तो दिक्कत नहीं होती है शरीर खाली करने में जिनका खान-पान गलत हो गया, विचार भावना गलत हो गई, जिनके कर्म इस शरीर से बुरे बन गए. उनकी बुद्धि खराब रहती है। उनके शरीर को यमदूत मार-मार के खाली कराते हैं। यमदूत को देखते ही डर के मारे मरने वाले का खून पानी हो जाता है, आंख की रोशनी खत्म हो जाती है, कान से सुनाई नहीं पड़ता है, मुंह से कुछ बोल नहीं पाता है तो जवान तोतली हो जाती है। यमदूत जीवात्मा को पकड़ कर ने जाते है, न धौरासी में सजा भोगनी पड़ जाती है।
15 मई को सायं काल की बेला में परम पूज्य उज्जैन वाले बाबा जी महाराज (परम संत बाबा उमाकान्त जी महाराज) ने सतसंग सुनाते हुए कहा कि
सुरत शब्द योग साधना जीते जी मरने की साधना है
अगर कोई यह सीख ले कि हमको रोज मरना है और रोज जीना है, तो फिर मरते समय कोई तकलीफ नहीं होगी। कोई रास्ता खराब है और अगर उधर से रोज का आना जाना हो जाए, तो कहीं भी गड्ढा होगा, बचाकर यह चला जाएगा। कहीं भी पत्थर पड़ा होगा, लकड़ी पड़ी हुई होगी. बचाकर निकल जायेगा। सोच कुछ और रहा हो, ध्यान कहीं और हो लेकिन तनिक सा अगर नजर पड़ गई तो घूम करके आगे चला जाएगा। ऐसे ही रोज का मरना जीना अगर हो जाए तो अंतिम समय में तकलीफ नहीं होगी। जब साधना में जीवात्मा शरीर से निकलती है, पिंड लोक को छोड़कर अंड लोक में जाती है, तो यह शरीर निर्जीव हो जाता है। जिंदा रहते हुए मरो और फिर जिंदा हो जाओ, फिर मरो, फिर जिंदा हो जाओ । तो यह जो किया है, सुरत शब्द योग साधना है, यह जीते जी मरने की है। वक्त के सन्त सतगुरु के मिल जाने पर संभव है।
क्या नामदान लेने के लिए घर, परिवार, जाति, आदि छोड़ना पड़ता है?
नामदान लेने के लिएन घर छोड़ना है, न जमीन छोड़नी है, न बाल बच्चों को छोड़ना है, न सिर मुड़वाना है, न दाड़ी बाल बढ़ाना है। न जाति-पाति बदलना है, न धर्म बदलना है। जो जिस जाति, गांव, जिला, प्रदेश देश में रहता है वहीं पर रहे लेकिन घर में ही रहकर घंटे में 2 घंटे उस प्रभु को याद करने का काम करे।
गुरु महाराज के ऐसे भी शिष्य हैं जो कहीं आते जाते नहीं क्योंकि उनको अंतर में दर्शन मिल जाता है
अगर आप पुराने नामदानी गुरु के आदेश के पालन में लग जाओ तो जैसे गुरु मेरी संभाल करते हैं, अन्य लोगों की भी संभाल करते हैं. साधको की संभाल करते हैं तो ऐसे आपकी संभाल होने लग जाए। आपको विश्वास नहीं होता है, आपका मन पीपल के पत्ते की तरह डोलता रहता है। । जो गुरु महाराज कह कर गए कि सुमिरन, ध्यान, भजन बराबर करते रहो. इसी से तुम्हारा लोक भी बनेगा, परलोक भी बनेगा। इसी एक काम में अगर आप लग जाओ तो फिर तो किसी की मदद की जरूरत नहीं, कुछ जानने समझने की जरूरत भी नहीं गुरु महाराज के ऐसे भी शिष्य हैं. जो कहीं आते जाते नहीं। गुरु महाराज का नामदान लेकर बराबर भजन में लगे रहते हैं। हमको मालूम है, चैलेंज करो तो दो-चार का नाम भी बता दूंगा और मैं भी उनसे नहीं कहता हूं कि आप आओ क्योंकि गुरु महाराज का उनको अंतर में निर्देश मिल जाता है, दर्शन मिल जाता है. उनको संतुष्टि हो जाती है।
जयगुरुदेव
साभार, (पुस्तक) मार्गदर्शक वार्षिक भंडारा 2023
Margdarshak-bhandara-2023
 |
BABA JAIGURUDEV ASHRAM UJJAIN |
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev