बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के हस्तलिपि सन्देश- 8

⤇ बाबा जयगुरुदेव जी का कलाम 


मनुष्य शरीर एक किराये का मकान है। अनेकों जन्मों के शुभ कर्मों से आपने पाया है।
मनुष्य शरीर बर्तन को मालिक ने पवित्र दिया। दुनियां की अनेकों गन्दी ख्वाहिशो ने इस जिस्म को गन्दा कर दिया है। अकेले आए, अकेले जाना।

संसार की इच्छाओं में क्यों फंसे पड़े हो कितने लोग आए। निराश होकर चले गए। तुमको भी जाना है। अफसोस करते चले गए। तुमको भी जाना है अफसोस करते हुए । मरघट पर ज्ञान होगा। शमशान का इल्म होगा। फिर क्या काम आयेगा।

जाते समय निरादर तुम्हारा करेंगे। 
हाड़मांस की चमड़ी में कितनी कूंदा फांदी।
कर्मों का फल भोगना पड़ेगा।
किए पर पछताना होगा।
कुदरत से टक्कर मत लो कितनों को चकनाचूर करती है
अहंकारियों अहंकार को कुदरत ही ठीक करती है।
जो गुनाहों से डरता है खुदा उस पर रहम करता है।



⤁ आत्मा की दर्द भरी पुकार

कवन कसूर कइली, घर से निकारी गइली,
फंसि गइली माया की बजरिया हो स्वामी जी ।।

होई के द्रवित नाथ काल हाथे देई दिहला, 
होत बाटी मोर दुरगतिया हो स्वामी जी।।

जनमत मरत कितने युग बीति गइल, 
भूलि गइली अपनों नगरिया हो स्वामी जी ।।

मनुज के रूप धइला हमनी के बिच अइला, 
फिर से चेतवला वतनवां हो स्वामी जी।।

कैसे कि चली प्रभु जी अपने वतनवां हो, 
मन मद ठानेला ठननवां हो स्वामी जी।।

पहरे के पहरु हो पहरा पै सोई गइला, 
झकझोर बहेला पवनवां हो स्वामी जी।।

सतगुरु स्वामी जी सुनि ल अरज मोरी, 
जयगुरुदेव स्वामी सुन ल अरज मोरी। 
तारि दीह हमरो सुरतिया हो स्वामी जी।।

कवन कसूर गइली, घर से निकारी गइली, 
फंसि गइली माया की बजरिया हो स्वामीजी।।

जयगुरुदेव
Hastlipi sandesh 

baba jaigurudev ji maharaj

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