जयगुरुदेव
07.03.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*बाबा उमाकान्त जी ने कर्मों की होली जलाने के लिए भक्तों को दिया नया आदेश
*बताया होली पर इस दुनिया की बजाय प्रभु का रंग कैसे चढ़ेगा*
*कौनसा परमार्थी काम करने पर अन्न-धन की कमी नहीं रहेगी*
निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने होली कार्यक्रम में 7 मार्च 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
होली का मतलब जो हो ली। क्या हो ली? जो होनी थी वो हो ली। यानी आपको इस दुःख के संसार में दुःख झेलने के लिए आना था, आ गए। तो अब निकलना भी तो है, या फंसे ही रहोगे? इस काल के देश से निकल चलो। अब हो लो, प्रभु के पास हो लो जहां अपना असला घर है। ये मिट्टी-पत्थर का घर को मेरा-मेरा कहते-कहते बाप-दादा चले गए। उनका नहीं हुआ तो आपका कैसे हो जायेगा? नर देहि फागुन मास, सूरत रंगे सतगुरु के साथ। अभी तो कलयुग का, उसके कर्मचारियों का रंग चढ़ा हुआ है, लेकिन जब पूरे समरथ सतगुरु मिलेंगे तब वहां का, अपने वतन का रंग चढ़ेगा। तब दुनिया के सब रंग फीके पड़ जायेंगे। सन्त तो ऐसा चटख रंग चढ़ा देते हैं कि फिर और कोई दुसरा रंग चढ़ता ही नहीं है। आप जिनको वक़्त के सतगुरु मिल गए हैं, नामदान मिल गया है, अगर आप उस नाम को जपोगे नहीं, नामदान की कीमत नहीं लगोगे तो फिर होली मनेगी। तो आज त्योंहार के दिन संकल्प बनाओ कि होनी थी सो हो ली, अब प्रभु के पास हो लो, चलो। ये त्योंहार यही तो याद दिलाते हैं कि इतना समय निकल गया, संकेत देते हैं कि इतनी उम्र ख़तम हो गयी। अब आगे की फिक्र करो, मनुष्य शरीर पाने का मतलब समझो। फागुन में अपनी जीवात्मा में प्रभु से जोड़कर उनके जैसा गुण पैदा करो। रंग तो तभी चढ़ेगा जब पूरे गुरु मिल जाएँ। पूरे सतगुरु के मिलने पर आपको रंग चढ़ाने में संकोच नहीं करना चाहिए। जैसे नया रंग लगाने/चढाने से पहले गाड़ी को पहले खुरचते, नये कपडे को पहले धोते हैं ऐसे ही इस जीवात्मा पर जन्मों के कर्मों के चढ़े रंग को पहले साफ़ करना पड़ता है।
*ये परमार्थी काम करोगे तो आपको अन्न-धन की कमी नहीं रहेगी*
अपने देश के प्रति वफादार रहो, वहां का नियम-कानून मत तोड़ो, अधिकारियों-कर्मचारियों का सम्मान करो, हो सके तो उनकी मदद ही कर दो। ऐसा भाव आज त्योंहार पर बनाओ। आज संकल्प बनाओ कि अब से हम अच्छा ही, परमार्थी काम ही करेंगे। अब से हमें कर्मों की अग्नि में न जलना पड़े, आर्थिक रूप से दिक्कत न आवे, शरीर से कोई कष्ट न हो, कोई रोग न हो उसके लिए हम कुछ परमार्थी काम भी करते रहे। भूखे जरूरतमंद को भोजन खिलाना, बीमार की दवा कराने, अपनी शक्ति से किसी का दुःख दूर करना आदि परमार्थी काम होता है लेकिन उससे मुक्ति-मोक्ष नहीं मिलता है, उसका जीवात्मा के कल्याण से कोई सम्बन्ध नहीं है। इनसे तो शरीर को लाभ मिलता, धन में बढ़ोतरी होती, मानसिक कष्ट नहीं रहता है। लेकिन ये चीजें भी जरुरी है क्योंकि शरीर दुखी रहेगा, मन बैचेन, अशांत रहेगा तो क्या भजन भाव भक्ति कर पाओगे? तो इस काम में भी भागीदारी होनी चाहिए। ऐसे को खिलाओ जो भूखा हो, जो वो चीज उसे कभी-कभी मिलती हो, जो शादी-ब्याह भोज में बनता है वो चीज आप बना कर खिला दोगे तो उसका ज्यादा लाभ पुण्य मिलेगा। इससे बरकत होती है। नीयत खराब होने से बरकत नहीं होती। लक्ष्मी की कमी नहीं होगी, खुश होंगी की हमको अच्छी जगह पर लगाया दिया। तो आप खिलाओ।
*होली पर भक्तों के लिए नया आदेश*
अपने-अपने एरिया, जिला, प्रान्तों में गरीबों जरुरतमंदों का पता लगा लो, वहां भोज करो, भंडारा करो, पैकेट बाँट आओ, उसका ज्यादा लाभ पुण्य मिलेगा। आपके दाता गुरु हैं। जब आप दाता बनोगे तो क्या गुरु अपना हाथ रोकेंगे? नहीं रोकेंगे। दाता केवल सतगुरु, देत न माने हार। जब देने लगेंगे तो कोई कमी रखेंगे? ये कर के देखो, खिला कर देखो, अन्न-धन की कमी नहीं होने पाएगी, बल्कि और बढ़ेगी। पुरानों से पूछ लो कि पहले बाप-दादा फटा कपड़ा पहनते थे और अब बड़े आदमी कैसे बन गए, ये घर, घन, मोटरकार कैसे आई? बताएँगे गुरु की दया से आई, उनके संस्कार से आई, भक्ति करने यानी गुरु आदेश के पालन से आई। सन्तों का लक्ष्य सभी जीवों की सेवा करना, सुख-सुविधा दिलाना होता है। अकेले शरीर से नहीं कर सकते इसलिए अपने प्रेमियों से ये काम कराते हैं। जो दूसरों के लिए करते हैं उन्ही का जीवन सफल जाता है। कोई जबरदस्ती नहीं है। आप सबमें ये भाव आ जाये कि हमको गरीबों की सेवा भी करनी है, असहायों की मदद भी करनी है, हमारे खाने-पीने, रहने में दिक्कत न आवे उस बरकत के लिए ये जनहित का काम करना है, अपनी आत्मा के लिए भक्ति करना है, सुमिरन ध्यान भजन करना है, दुसरे को कराना है, ये सोचो। बाह्य भक्ति तन मन धन से सेवा है और आंतरिक भक्ति अपनी और दुसरे की आत्मा को अपने घर पहुंचाने का काम है। तो आप करो प्रचार प्रसार। आपको जानकार मिल जाए तो श्लोक चौपाई आदि सुना सकते हो लेकिन आपको न पता हो तो बताओ लोगों को कि जयगुरुदेव नाम में शक्ति है, हमको इससे क्या-क्या फायदा हुआ, बीमारी ठीक हुई, संगत में जुड़ने पर हमें इस तरह का लाभ हुआ। ये सेवा तो कर सकते हो। मनुष्य ही परोपकार कर सकता है, जानवर नहीं। नामदान के बारे में बता दो। व्यापारी अधिकारी कर्मचारी किसान मजदूर विद्यार्थी अपने-अपने समाज, उम्र वालों को ही बताने लग जाओ तो जल्दी परिवर्तन हो जाये, माहौल बदल जाए फिर सतयुग आने से पहले कचूमर नहीं निकलेगा, सतयुग की किरण बहुत से लोग इस धरती पर देख लेंगे, सतयुग का प्रकाश फ़ैल जायेगा। तो प्रेमियों! इस काम में आपको लगना रहेगा।
*होली पर कर्मों को जलाओ*
आज होली पर कर्मों को जलाने का काम करो, कर्मों को जलाने की होली खेलो यहां। कर्म कैसे जलेंगे? दया का भी और कर्मों का लेना-देना, पाप-पुण्य का आदान-प्रदान आँखों में देखने से, स्पर्श से और वाणी से होता है। आपको नहीं पता कि किस तरह से महात्मा कर्मों को, एक-दुसरे के लेन-देन को ख़त्म कराते हैं। पहले सतसंग में सुनाया गया कि कैसे सौ जन्मों का कर्जा एक घंटे के सपने में अदा करवा दिया। एक दुसरे के लेने देने को अदा करो, अपनी गलती की माफ़ी मांगो। पिछले जन्म में भी अपने लोगों का, एक तरह से जितने लोग बैठे हो, सबका रिश्ता था। कौन क्या था ये आपको नहीं पता। कोई किसी के यंहा लम्बे समय रहा, उसने खिलाया-पिलाया अब यहां आपने भंडारे में एक रोटी बना कर खिला दिया, एक रोटी का आटा दे दिया, धक्का-मुक्की, कोहनी लगना आदि में अदा हो जाता है। गलती हुई पिछले जन्म में, दोनों की माफ़ी मांगी जाती है, दोनों की माफ़ी का आदान-प्रदान होता है अपनी-अपनी गलती की माफ़ी मांगेंगे सब लोग, वर्षा होगी प्रेम की, भीगेंगे हम सब लोग। तो जब गुरु की दया की, उनके सतसंग की, प्रेम की बातों की वर्षा होगी तो हम भी भीगेंगे। आज सभी हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगो कि अब हम गलती नहीं करेंगे। मुंह से बोलो, थक जाओगे, देख कर के अंदर में ही एक -दुसरे से अपनी-अपनी गलती की माफ़ी मांग लो और आज ही संकल्प बनाओ कि अब कोई ऐसी गलती नहीं करेंगे जो जो गुरु के, संगत के, प्रकृति के नियम के खिलाफ हो।
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Baba umakant ji maharaj
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