धन से हुए पाप को ख़त्म करने, लक्ष्मी को घर में रोकने के लिए सन्त धन को खर्च करवाते हैं

जयगुरुदेव

03.02.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.) 

*चाणक्य के प्रसंग से समझाया - सतसंगियों को मेहनत करके खाना चाहिए, निजी काम के लिए निजी कमाई खर्च करनी चाहिए*

*जरूरत पड़ने पर भजनानांदियों का कोई काम नहीं रुकेगा- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*धन से हुए पाप को ख़त्म करने, लक्ष्मी को घर में रोकने के लिए सन्त धन को खर्च करवाते हैं*

कर्मों के विधान की हर बारीकी जानने के कारण अपने भक्तों के कर्मों को आराम से कटवा देने के उपाय बताने वाले, इतिहास से सही शिक्षा लेने के लिए इंगित करने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 16 अगस्त 2021 सायं सीकर (राजस्थान) में दिये व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि नालंदा विश्वविद्यालय से बहुत से लोग पढ़ करके विदेशों में गए। चंद्रगुप्त का समय था। कुछ विद्यार्थी पढ़ने के लिए बाहर से भारत आए थे। देखा कि यहां की व्यवस्था बहुत अच्छी है। राजा से मिले, खुश हुए, कहा आपने राज्य की बहुत अच्छी व्यवस्था बना रखी है। उन्होंने कहा इसका श्रेय मंत्री को जाता है। मंत्री कौन है? बोला चाणक्य। लोगों से पूछा चाणक्य कहां मिलेंगे? बताया कि नदी के किनारे कुटी झोपड़ी बनाकर रहते हैं, गाय बंधी होगी। विद्यार्थी गए। शाम का वक्त अंधेरा हो रहा था और चाणक्य दीपक जलाए हुए कुछ लिख रहे थे। इन्होने प्रणाम किया। दिव्य रूप देखकर के मस्तक झुक गया। उन्होंने बैठने का इशारा किया। चाणक्य ने अपना परिचय दिया और पूछा कैसे आए आप? कहा हम आपसे कुछ सीखने आए हैं। तब बोले अच्छा ठीक है बैठो। थोड़ी देर में काम पूरा कर लिया और जलते दीपक को बुझा कर दूसरा दीपक जला कर इनसे बात किया। बहुत प्रभावित हो गए। जाते समय विद्यार्थी पूछ बैठे कि आपने बात करने के लिए पहला दीपक क्यों बुझाया? दूसरा दीपक क्यों जलाया? तो बोले जब तुम आए थे तब हम राज्य का काम कर रहे थे तो राजकोष का तेल जला रहे थे। जब आपने कहा कि हम सीखने आए हैं, निजी जानकारी के बारे में बात करेंगे तब हमने राजकोष का तेल जलाना उचित नहीं समझा। फिर हमने आपको मेहमान मान करके अपनी मेहनत की कमाई का तेल जलाना उचित समझा। मंत्री जब इस तरह की त्यागी हुआ करते थे तो वही चंद्रगुप्त का समय स्वर्ण युग कहलाया।

*सतसंगियों को मेहनत करके खाना चाहिए*

महाराज जी ने 31 अगस्त 2021 से दईजर आश्रम, जोधपुर में बताया कि सतसंगियों को बैठ करके खाना नहीं चाहिए, कहीं भी। शरीर से, दिमाग से कुछ न कुछ मेहनत करना चाहिए, संगत का जो काम हो, दिल दिमाग बुद्धि से करना चाहिए, बैठना नहीं चाहिए।

*समझदार लोग आखिरी वक्त तक पैसा रखते हैं*

महाराज जी ने 1 सितंबर 2021 प्रातः जोधपुर में बताया कि समझदार लोग आखिरी वक्त पैसा रखते हैं क्योंकि यह माया है। पैसा माया की जरूरत आखिरी वक्त तक रहती है। आजकल कुछ लोग घर से बाहर निकलते समय कुछ रुपया जेब में जरूर रख लेते हैं कि बाद में काम आएगा, पता नहीं कहां कैसी जरूरत पड़ जाए। क्योंकि पहले जैसी मानवता तो अब रही नहीं की दूसरे को खिलाकर आदमी खाए। अब तो छीन करके खाने वाली प्रवृत्ति बन गई। पहले ऐसा नहीं था।

*सन्त धन को खर्च क्यों करवाते हैं*

महाराज जी ने 13 फरवरी 2021 प्रातः पेंड्री, दुर्ग (छत्तीसगढ़ ) में बताया कि धन की सेवा महात्माओं ने सन्तों ने तीसरे नंबर पर रखी है। धन से भी पाप हो जाता है इसलिए उसको खर्च कराया जाता है कि (भक्त को) लक्ष्मी की कमी न होने पावे, लक्ष्मी रुकी रह जाए। जब लक्ष्मी देखती है कि अच्छे काम में हमको लगा रहे हैं तो रुक जाती है। नहीं तो फिर पैसे की दिक्कत होने लगती है। इसीलिए सेवा को सन्तों ने प्राथमिकता दिया।

*जरूरत पड़ने पर आपका कोई काम नहीं रुकेगा*

महाराज जी ने 1 अगस्त 2021 सायं रजनी विहार आश्रम, जयपुर में बताया कि आप लोगों में कुछ ऐसे लोग हो जिनको यह एहसास महसूस होता है कि हम कमाते तो है लेकिन बचत और बरकत नहीं हो रही है। और कुछ आप भजनानंदी (रूहानी भजन करने वाला) हो, भजन करते हो, गुरु के बताए हुए रास्ते पर चलते हो, (साधना में) हाजिरी लगाते हो, नीयत आपकी दुरुस्त है, खान-पान और चाल-चलन सही है, आपको बरकत मिल जाती है। कम पाते हो उसी में आपका (पूरा) हो जाता है। जब इच्छा करते हो कि कुछ बच भी जाए तो बचा भी लेते हो। आप इन छोटी चीजों में मत फंसो, बड़ी चीज की इच्छा रखो। थोड़े में ही आपका ज्यादा हो जाएगा। जरूरत पड़ने पर कोई भी काम आपका रुकेगा नहीं। आपको जो (अध्यात्म का अनमोल) रास्ता मिला है उस रास्ते पर चलो।






Sant umakant ji maharaj

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