जयगुरुदेव
29.12.2022
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*सन्त कभी भी अपने को नहीं दर्शाते, नहीं कहते कि हमारा चेला बन जाओ, वो तो मदद करते हैं*
*भक्तों के लिए सन्त तकलीफ झेलते हैं*
*सन्तों पर बाहर से ही पहले विश्वास होता है*
निजधामवासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, परम दयालु, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 21 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि गुरु महाराज सतसंग सुनाते थे, जब एकदम जहन में बात आ जाती थी कि सिवाय इसके उद्धार का कोई रास्ता नहीं है, नाम की कमाई ही भवसागर पार कर सकती है तो नाम लेने की इच्छा लोगों की जग जाती थी। नाम दान देते थे, मदद करते थे। बहुत से जीवों को ऊपर निज घर सतलोक पहुंचा दिया। कभी भी सन्त अपने को दर्शाते नहीं है कि मैं पूरा सन्त हूं या भगवान हूं या कुछ हूं। गुरु महाराज पूरे सन्त थे। गुरु का दर्जा ऊंचा होता है। गुरु एक परमात्मा शक्ति होती है। गुरु पद स्थान से बैठ कर के सबकी व्यवस्था करते हैं, सबको देते हैं। अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए सबके दाता राम। गुरु ही सबको देते हैं क्योंकि उनमें और परमात्मा में कोई अंतर नहीं रह जाता है। तब सबकी परवरिश करते, सबको देते, सबकी मदद करते हैं।
*सन्त कभी नहीं कहते कि हमारा चेला बन जाओ*
सतपुरुष, सन्तों को भेजते हैं कि जाओ अब इनको समझाओ, बताओ। दुख झेलते हुए बहुत दिन हो गए। कितने जन्मों से ये दु:ख झेल रहे हैं। सन्त जब आते हैं, बताते समझाते हैं और जब लोगों के समझ में आने लगता है तब रास्ता बताते हैं और रास्ते पर चलने की इच्छा जग जाती है। वो यह कभी नहीं कहते हैं कि हमारे चेला बन जाओ या हमारी सेवा करने लग जाओ या हम तुमको पहुंचा देंगे, गारंटी ले लेंगे, यह कभी भी नहीं कहते हैं। यही कहते है कि मेहनत तुमको करनी पड़ेगी, युक्ति हम बताएंगे। अब मदद करने वाली बात भी खुलकर नहीं आती है लेकिन इशारे में कह देते हैं मदद आपकी हो जाएगी, करा दिया जाएगा। मालिक बहुत समरथ है। मालिक का बड़ा लंबा हाथ है। वह सब कर सकता है। समझने वाले जब इस चीज को समझ जाते हैं तब उन्ही को पकड़ लेते हैं और उन्हीं से सीखने लगते हैं। जैसे विज्ञापन से या अन्य तरीके से किसी कोचिंग में अच्छी पढ़ाई होने की जानकारी मिलने पर विद्यार्थी की इच्छा जग जाती है, पढ़ाई करने लगते हैं, टीचर गुरु से पूछने लगते हैं तब अनुभव से गुरु तरह-तरह का तरीका बताते हैं, याद करने, पढ़ने, बैठने, कम खाने, गम खाने, दुनिया की तरफ से ध्यान को हटाने का, केवल पढ़ाई में मन लगाने का बताते हैं। ऐसे ही आध्यात्मिक पढ़ाई जब सन्त सतगुरु पढ़ाने लगते हैं तो एक-एक चीज बताते समझाते हैं। बाहरी पढ़ाई के समान क्या कोर्स है, पहले प्राथमिक चीजें बताते हैं फिर धीरे-धीरे कोर्स को पूरा करते हैं। सन्तमत लोगों के समझ में आ रहा है। सबसे पहले आपको क्या करना है? अपने अंदर तड़प पैदा करनी है, प्रार्थना करनी है। जैसे विदेश में संकट में फंसे आदमी को किसी ने बताया की प्रार्थना पात्र लगा दो तो सक्षम समझदार तो सीधे जा कर पत्र दे आते हैं और कमजोर किसी की मदद से लिखवाते, उनके साथ जाते हैं। ऐसे ही सन्त भी सफलता दिलाने के लिए याद दिलाते, जानकारी दिलाते, मन बनाते हैं, सतसंग सुनाते, रास्ता बताते और चलने में मदद भी करते हैं।
*सन्तों पर बाहर से ही पहले विश्वास होता है*
महाराज जी ने 6 सितंबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम ने बताया कि तमाम लोग गुरु महाराज के पास आते, कहते हमारी बीमारी समस्या अशांति घर पर झगड़ा झंझट कलह खत्म हो जाए, शांति हो जाए। फायदा होने पर विश्वास हो जाता था। ऐसे बाहर से पहले विश्वास होता है। लेकिन मजबूती तब आती है जब अंदर में उनको देखते, दर्शन करते हैं। तो ऐसे प्रमाण से इतिहास भरा पड़ा है कि जब तड़प जगी तो वह मिले, उनका दर्शन हुआ। कबीर साहब ने कहा- हंस हंस कंत न पाईया, जिन पाए तिन रोए। जिसके आंसू गिरे उसको वह मिल गए और पहचान भी बता दिया। जब उनकी शिष्या रानी इंदूमति को तड़प जगी कि कुछ हासिल किया जाए, गुरु के दिए रास्ते पर चला जाए, ध्यान लगाया जाए और ध्यान लगाया, गुरु को पुकारा की अब मदद करो तो उन्होंने मदद किया, पहुंचा दिया सचखंड में। वहां देखा बैठे हुए, यही सब कुछ है, चरणों पर गिर पड़ी, बोली अगर आप हमको पहले बता दिए होते कि मैं ही सब कुछ हूं तो मुझको इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ती। तब बोले यह चीज अगर पल भर में दे देता तो जल्दी तुझको विश्वास न होता और यह चीजें स्थाई नहीं रहती क्योंकि तुम मेहनत नहीं करती। बार-बार मेरे से कहती दया कर दो, दया कर दो इसी चीज के लिए। लेकिन अब तूने यह जलवा जो देखा, अब तुझको यह विश्वास हो गया। तो प्रेमियों! आप समझो इस बात की पहचान हो जाती है।
*भक्तों के लिए सन्त तकलीफ झेलते हैं*
सन्त इस बात की पूरी मान्यता नहीं देते हैं कि कोई जयगुरुदेव नाम बोलकर ही पार हो जाए, ऐसा नहीं है। उस ध्वन्यात्मक नाम की कमाई की मान्यता है। सब लोगों ने मान्यता दिया। एकमत व्यक्ति का एक नियम होता है। उसका उल्लंघन कोई भी सन्त नहीं करते हैं। उसका पालन करते हैं, करवाते हैं। यहां तक की इस काल भगवान् के मृत्युलोक में उनके मनुष्य शरीर में सन्त जब आते हैं तब काल भगवान के नियम का पूरा पालन करते हैं। भक्तों की रक्षा, फायदे या तकलीफ को दूर करने के लिए कुछ बोल भी देते हैं और काल के नियम के खिलाफ हो जाता है तो अपने शरीर से कष्ट झेल लेते हैं लेकिन नियम का पूरा पालन करते और अपने प्रेमियों को करवाते हैं।
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संत उमाकांत जी महाराज |
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