प्रथम गुरु कृपा
मेरी साधना- हस्तलिखित
प्रथम गुरु बिना कुछ ज्ञान न होगा, गुरु खोजना अत्यंत जरूरी है। पूरे गुरु को खोजो, पूरे गुरु तुम्हारी खोज पर तुम्हें अवश्य मिलेंगे।
अण्डा, मान्स, मछली, शराब, गांजा, अफीम से बहुत दूर रहो।
प्रथमः- जीवन सदाचारी होना जरूरी है।
दूसराः- सत्य बोलने की महान जरूरत है।
तीसराः- किसी की चुगली न हो।
चौथा:- सबसे प्रेम हो किसी से घृणा न हो।
पांचवां:- जातों के मतभेद न हों।
छठवां:- मन्दिर, मस्जिद, गिरजा सब जिसकी विचारधारा में एक हों।
सातवां:- किसी कौम, जाति, मजहब, फिरका के फकीर सन्त अनुभवी पुरुष एक हों।
तब परमार्थ पर विद्या सीखने वाला विद्यार्थी होगा।
अपनी साधना
गुरु के नाम भेद जानने के बाद बहुत सी शंकायें प्रेमी को रहती हैं वह यह सोचता है कि हमको इन्होंने ठीक बताया है या गलत कुछ दिनों तक साधक अपने गुरु के बताये हुये मार्ग पर शंका करता हुआ चलता है इस कारण गुरु की दया लेने में साधक असफल रहता है।
मैंने अपने गुरु से जब नाम भेद प्राप्त किया वह सन् 1948 था महीना कार्तिक था चिरौली अलीगढ़ जिले में है वहां उन्होंने मुझे उपदेश दिया।
मैं साधना में लगा उस समय अनेक प्रकार की बाधायें मनुष्य के सामने आकर खड़ी होती हैं उसका जिक्र नीचे करता हूं।
जब आंखें बन्द करता हूं उसी समय के ख्याल उठते हैं वही ख्याल दृष्टि को टिकने नहीं देते हैं, कभी काम, कभी क्रोध, कभी लोभ, कभी मोह, कभी अहंकार आ खड़े होते हैं।
परन्तु मैं अपनी साधना में नियमित रूप से लगा रहा जब यह अधिक तंग करते हैं तब मै गुरु के स्थूल स्वरूप् का चिन्तन करता हूं उसी समय काम, क्रोध, लोभ, मोह, हट जाते हैं। फिर में नाम सुमिरन मे लगता हूं जहां तक होता है एक नाम के साथ स्वरूप का चिन्तन करता हूं इस तरह पांच नाम और स्वरूपों को पकाना चाहता हूं कुछ दिनों में नाम स्वरूप में हमारी रूचि बनने लगी।
जब तक नाम और स्वरूप् के चिन्तन में रुचि बनी रहती थी तब तक कोई अंग विघ्न कारक मुझे तंग नहीं करते थे, जैसे ही रुचि नाम और अन्तर के स्थानी स्वरूपों से हटी कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, तंग करने लगे और सुमिरन ध्यान नहीं करने देते हैं।
मैं एक माह तक लगातार नाम और स्थानी स्वरूपों को पकाने में लगा रहा। 24 घण्टे में मैंने 18 घण्टे केवल साधना में ही लगाये और यह साधना का क्रम 31 दिन तक लगातार चलता रहा,
इतना समय देने पर भी मुझे कुछ अन्दर में आभास न मालूूम हुआ, तब अन्दर में इतनी भारी आत्म गिलानी हुई कि मैं इतना महा पापी हूं और साधना छोड़ दी ।
दिन भर रात भर पड़ा पड़ा रोने लगा भूख प्यास भी खतम हो गयी, परन्तु इस रोने को कोई देख नहीं सकता है। एकाएक 3 दिन के बाद यह अन्तर में प्रेरणा हुयी कि तुम उठ कर साधन पर बैठ जाओ मैं रात्रि 1 बजे साधन पर बैठा उसी समय अन्दर में मालूूम हुआ कि बहुत सी चिड़ियां चहचहा रही हैं कुछ झींगुर बोल रहा है झरने से जैसे पानी झरता हो, जंगल में जैसे तेज वायू चल रही हो, रेल गाड़ी जैसे सीटी सुनाई दी।
कुद देर बाद मालूम हुआ कि पायल की आवाज हो रही है झाॅज बज रहा, मजीरा बज रहा, कुछ देर बाद मालूम हुआ कि जोर की वर्षा हो रही, फिर मालूम हुआ कि बादल गरज रहे हैं, जब बादलों की गरज सुनाई दी उसी समय आनन्द मालूम हुआ मैं ध्यान पूर्वक सुनने लगा, मुझे आवाज घण्टा शंख की साफ सुनाई दी, आकाश में लगातार घनन घन-घनन घन बज रहा है फिर एकाएक मालूम हुआ कि बहुत से बाजे एक साथ लगातार बज रहे हैे।
उसी समय कौंदा हुआ जैसे लप-लप रोशनी कहीं से हो रही है चार घण्टों में यह सब मालूम हुआ उस दिन मुझे यह विश्वास हुआ कि गुरु के नामदान का यह फल है और उन्होंने कहा था तुम इसकी कमाई करो इसका फल अवश्य प्रगट होगा।
गुरु को सिर से उतारना नहीं
मैं हमेशा गुरु को स्मरण करता रहता था फिर रात्रि आई और भजन करने बैठा उसी तरह सुरीली आवाजें सुनाई देती रहीं कभी बढ़ती हैं कभी कम मालूम होती हैं उसी बीच में ऐसा मालूम हुआ जैसे की कोई ऊपर की तरफ खींचता है। डर सा मालूम हुआ शायद मैं मर न जाऊं। और भजन छोड़ कर ध्यान पर बैठ गया तो आंख के एकाग्र ही एक गोलाकार सामने आ गया चारों तरफ सफेद है और बीच मे नीला है कभी टिक जाता और कभी गायब हो जाता है।
तीसरे दिन भजन करते हुए मालूम हुआ कि जैसे कोई कहता है कि तुम फौरन हमारे पास चले आओ बोली गुरु महाराज की थी, मैं फौरन सुबह रवाना हो कर गुरु दर्शन के हेतु चल पड़ा। दिन मे जब मैं गांव में पहुंचा देखा कि गुरुजी एक चौतरे पर गाय के पास बैठे हैं।
मैंने अपना झोला फेंक दिया और दौड़ कर चरणाों पर गिर पड़ा, स्वामी जी ने मीठे स्वर में कहा कि कुछ आंखे तर मालूम होती हैं और पतले बहुत हो गये और कुछ कमाई कर के आये हो, दरबार में कमाई करके खड़े होना चाहिये, रात्रि में स्वामी जी के सत्संग में ऊंचे दरजे की चढ़ाई का भेद और अन्दरूनी मुकामात का भेद सुनाया, सतसंग सुन कर हृदय में बहुत बड़ी खुशी हुई।
रात्रि को साधन पर बैठा मालूम हुआ कि एक सीधी सड़क है उसके दायें बायें कतार के कतार वृक्ष खड़े हैं और इन वृक्षों में से खुशबू आती है हरी घास का जंगल है फिर मालूम हुआ कि एक गोलाकार प्रकाश का बंधा हुआ नाच रहा है कभी कभी ऐसा जरूर मालूम होता रहता था कि एक बादल का टुकड़ा उसके सामने ठहरा हुआ है।
एकाएक आवाज मालूूम हुई कि तुम्हारी सुरत पर गन्दगी है गोलाकार के सामने कुछ नही है। मुझे मालूम होता था कि स्वामी जी कह रहे हैं उसके चारों तरफ प्रकाश आ गया और एक बहुत बड़ा मंडप बन गया। कभी बढ़ता कभी घटता और कभी बिल्कुल गायब हो जाता था।
उस गोलाकार के देखने पर ऐसा अक्सर मालूम होता था कि जैसे नशा चढ़ रहा है कितने दिनों के बाद यह परदा हट गया उसी गोलाकार चरन कमलों मे प्रकाश, खुशबू, आनन्द, सुन्दरता, उसमें देखने पर बहुत सी वस्तुऐं दिखाई देती है।
रामायण मे तुलसीदास जी ने इन्ही नख चरण कमलों का वर्णन किया है कि इन्ही के स्मरण करने से दिव्य दृष्टि हो जाती है।
उन्ही चरण कमलों में दृष्टि को एकाग्र करने पर प्रकाश बहुत है एकाएक शिवनेत्र दृष्टि ठहरती नही है। मैं इसके आगे का क्या वर्णन करुं जो दिखाई देना प्रारम्भ हुआ।
इस शिवनेत्र आंख के खुलते ही शक्तियों के परदें खुल गये तरह तरह की स्त्रियां अनोखे आभूषण को पहन कर तथा पूरा श्रंगार करती हुई साधक के सामने आती और जाती हैं। एक से एक सुन्दर नये नये वस्त्रों को पहने हुए अनेक कलाओं से नाच करती हुई अपनी आंखों को मारती हुई आव और भाव इस कदर करती है कि साधक सब कुछ आनन्द की चेष्टा करता है और भी बहुत से खेल आंख के खुलने पर दिखाई पड़ता है।
इन्ही चरन कमलों के ऊपर शिवनेत्र के टिकाते ही रिद्धि-सिद्धि नौं निधियां प्रकट अपने-अपने थालों को लेकर खड़ी होती हैं उन रिद्धि सिद्धि के स्वरूप भी विचित्र हैं थालियों में अनेक प्रकार की वस्तुयें हैं और यह कहती हैं कि तुम इस थाल में से सब कुछ ले लो हम सब कुछ देंगे हम तुमसे बहुत खुश हैं उन्हीं के सामने से एक झुण्ड अचानक में नृत्य करता हुआ हजारों लाखों अप्सराओं का निकलता है इतनी इच्छा होती है उन स्त्रियों को देख कर कि इन्हीं के साथ हमेशा रहें और न हम इनको छोड़ें और न यह मुझे छोड़ें। साधक प्रफुल्लित होता है सब सामग्री के थाल सजे -धजे हैं सब थालों की चमक अलग अलग है। उन थालों की सामग्रियां दिल को पकड़ती हैं जब मेरा मन उसमें रमने लगा कि एक आवाज कहीं से आई कि क्या करते हो आगे जाना है।
उस आवाज को सुनते ही वह सीन क्षण में गायब हो गया। दिन में देखता हूं कि बहुत से मकान बगीचे तालाब कुआ मन्दिर मस्जिद गिरजा पहाड़ सड़कें और भी बहुत से दृश्य नजर आते हैं। सुगन्धि बहुत है ऐसा स्पष्ट मालूम होता है कि हम नये जगत में आ गये जहां न बच्चे, स्त्री, लड़ाई, नौकरी, भाई -बन्धु राज पाट और दुख सुख संसारी लौ मात्र नही है।
जय गुरु देव...
यह सीन स्वर्ग का है जो गुरु कृपा पर आधारित है बिना कृपा के यह न पा सकेगा चाहे कितने युग बीत जायें। मैं और हाल क्या कहुँ जो वहां खेल हो रहा है साधक इससे आगे बिना कृपा गुरु की कैसे जायेगा।
जब तक गुरु उस दर्पण पर दृष्टि लगाये रहते हैं तब तक यह दिखाई देता है और जब वह वहां से हटा देते हैं तो कुछ दिखाई नही देता है।
शेष क्रमशः पोस्ट न. 27 में पढ़ें 👇🏽
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जय गुरु देव मालिक |
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