स्वामी जी की हिदायत

जयगुरुदेव

स्वामी जी की हिदायत

एक सेठ अपने बच्चों से बहुत परेशान था धन और मोटरेें तथा अच्छे बंगले होते हुए उसके लड़के उसके कहने मे नहीं थे पिता ने उनसे परेशान होकर पानी में डूबकर आत्महत्या कर ली, पीछे उसके लड़के बुरे रास्ते पर चले गये और अन्त में लड़के कंगाल हो गये।
बच्चों को चाहिये कि माता पिता की सेवा करें।

एक स्त्री अपने पति को बहुत समझाया करती थी पर पति का आचरण कुचाल था कुछ दिन के बाद स्त्री ने आत्महत्या कर ली और उसी घर में आकर चुड़ैल हुई। उसके सब घर वालों को तंग करती है मैं एकाएक उसके मकान में सोया तो वह रात्री मे कहती है कि- पति के दुख से आत्महत्या की है समझ न होने पर भूत योनि पायी आप इस योनि से दया कर के निकाल लो बहुत कष्ट होता है। मरने के पहले भजन करो नही तो भूत योनि पानी होगी।

हमारे सत्संग में बहुत से लोग भूत उतारने आये हैं किसी के पास मौलवी डाड़ीवाल हर वक्त साथ रहता है किसी के पास औरत भूतिन रहती, किसी के पास जिन्द रहता है और बहुत से लोगों को दूर कर दिया है परन्तु हर साल लोग आते हैं और हर साल भूत छुड़ाया जाता है। सुरत शब्द योग की साधना बतायी जाती है।

जो लोग मारकर बकरा, मछली, गऊ शेर हिरण अन्य लोग जो मुर्दा गोश्त मांस खाते हैं जो जानवर मारे जाते हैं वह सभी भूत होते हैं क्योंकि जितनी उनकी उम्र हैं उसके पहले मार दिये गये इसलिए सब भूत योनि में उनके प्राणों का भुगतान होता है और फिर खानों वालो पर उन्हीं आत्माओं का श्राप लग जाता है उनको भी भूत होना होगा और नर्क की आग में डालकर जलाये जायेंगे जो जैसे जिसको मारेगा उसी तरह उसको भी बदले रूप में मारा जायेगा।
अपनी मौज के लिये खुदा ईश्वर गाॅड के हुक्म का उल्लंघन करते हैं और इन्द्रियों को पुष्ट करके विषयों के भोगों में मस्त रहते हैं।

मांस शराब अण्डा मछली खाना इंसान के लिये बहुत से बहुत हानिकारक है उसकी तंदुरुस्ती के लिहाज से खराब है। मेदा खराब करती है बीमारी रोग और कितने प्रकार के मर्ज है उनको शरीर मे स्थान मिल जाता है।
किसी कोम के आदमी हो वह ईश्वर गाॅड खुदा की आराधना इबादत तथा प्रे नहीं कर सकते हैं। उनका मन ईश्वर की तरफ जाने में बहुत गन्दा और जीवात्मा रूह तथा सेाल पर इतनी गन्दगी लाद ली है कि उतर ही नहीं सकती है। जिन बच्चों और बच्चियों के आचरण बचपन मे खराब हो जाते हैं वह बड़े होने पर जाते नहीं हैं।

सुरत शब्द की साधना है बहुत सरल परन्तु जब से उपदेश लें उसके आगे कोई गन्दा कर्म करें नहीं यदि गन्दा कर्म करता रहा तो सुरत शब्द की साधना में सदा असफल रहेगा। लेकिन पुराने बुरे कर्म हैं वह गुरु अपनी दया से काट देते हैं। सुरत शब्द योग की साधना में सफलता मिलने लगती है। आगे बुरे कर्म मत करना गुरु तुम्हारे कर्मोे को जानते हैं यदि कह देंगे तो तुम शर्मिन्दा होकर उनके पास से चले जाओगे। इसलिये जानते हुये कुछ कहते नहीं हैं।

बहुत से सत्संगियों की यह आदत बनी जा रही है कि मुफ्त का खाना अच्छा लगता है। और बात परमार्थ की करते हैं। परन्तु किसी तरह चाहते है कि यह फलां सेठ रुपया दे दे और जल्दी अपना मतलब हल करें । 
सत्संग में आकर सत्संगी कहलाना और रुपया मांग लेना और देना नहीं यह सत्संगियों के भाव खराब करते हैं, ऐसा किसी सत्संगी को नहीं करना चाहिये। यदि कोई सत्संगी किसी प्रान्त में पहुंचकर ऐसा करता है तो वह परमार्थ के काबिल नहीं है।

दुःखी संसार
दुःखी संसार को सुख कौन देगा हाहाकार में लाओ रुपया सब मांगते हैं। महात्मा लाओ कुछ जानते हो बीमारी दूर करो, बच्चा दो साथ लाओ, रुपया हम तभी पूरा महात्मा समझेंगे, जब रुपया देंगे वरना मुश्किल आपके पास लड़के लड़कियों का इतना खर्च बढ़ा रखा है कि आदमी सुबह का निकला हुआ शाम को घर आता है और आज के लड़के लड़कियों को सिनेमा चाहिये कुछ शराब भी चाहिये।

फैशन से इज्जत 
आज का जो फैशन निकला है उस पर स्कूल के लड़के लड़कियों पर शक करने लगे। वह देखते हैं कि लड़कियां जगह जगह घूमती हैं पिता को लड़कियों की शादी करना मुश्किल हो गया। एक परेशानी होने लगी और जरूर होगी । और लड़के घरों में सोचते हैं कि घूमने वाली लड़कियां घरों में वह आयेंगी घर काम होगा ही नहीं केवल घूमना। हम देखकर शादी करेंगे। फिर सुन्दर हो गाना गाती हो उसके साथ रुपया भी मिले उसके पिताजी पैसे वाले हों हर समय कुछ न कुछ दिया करें और बहुत सी बातें सोचते हैं।

‘नार विवश नर सकल गुंसाई। नाचहिं नर मरकट की नाहिं।।‘

कलयुग में मनुष्य स्त्रियों के दास अवश्य होंगे जैसा वह कहेंगी वैसा वह नाचेंगे मात पिता की बात पर कोई ध्यान न होगा। बहू सास ससुर की सेवा हरगिज न करेंगी मन माना जो भावेगा वह होगा और उसी को करेंगी।
संसार में मनुष्यों को अब सुख न मिलेगा। जब तक वह हमारे पास न आयेंगे। ओर प्रेम न करेंगे प्रेम ही सार है जो आज खो गया है।

Swami ji baba jaigurudev ji




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