स्वामी जी महाराज के शब्दों में
इस बार दौरे में कर्नाटक जाग गया। लोग बड़ी संख्या में आते थे। बड़े बड़े अधिकारी, जज,कमिश्नर, डी.एम., मंत्र, एम.पी., एम.एल.ए. सब लोग आये। केवल आ कर यूंही नही बैठे। उन्होंने सत्संग सुना और नामदान लिया। एक मुसलमान चेयरमैन थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मेरी बीबी बीमारी की बजह से आ नही सकती। आपका दीदार चाहती है। आप से मेरी गुजारिश है कि आप मेरे घर चलें। मैं गया उनकी पत्नी ने बड़ी श्रद्धा से हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
कर्नाटक की सड़कें बहुत अच्छी हैं। डामर रोड है। वहां के मकान बहुत सुन्दर बने हैं। उस तरह के मकान इधर देखने को नही मिलते। उधर के टेक्नीशियन अलग तरह से काम करते हैं। मैं जिसके मकान में गया उसका पूरा मकान देखा। वहां मकान बनाते हैं बनाते हैं तो पूरा करके ही छोड़ते हैं, अधूरा नही छोड़ते । वहां के लोगों ने कहा कि अभी तक इस तरह का सुनाने वाला कोई आया ही नही जो लोग आए भी उन्होंने ऐसे ही सुनाया पर इस तरह का नही बताया।
किष्किन्धा उधर ही है बालि के राज्य की राजधानी पम्पापुर भी उधर ही है हनुमान का जन्म उधर ही हुआ था पर हनुमान का कोई मन्दिर वहां नही दिखा। जैसे इधर उधर जगह जगह हनुमान के मन्दिर दिखाई पड़ते हैं। मैंने पूछा लोगों से तो कहा कि यहां कोई मन्दिर नही है। किष्किन्धा की पहाड़ियां इस तरह की हैं कि एक के ऊपर एक पत्थर या शिलायें रख दिया गया हो। उस समय के लोग बड़े बलशाली थे। उन्होने उठाकर रक्खा होगा। वहीं एक गुफा थी जिसमें बालि गया था और उसने सुग्रीव से कहा था कि तुम मेरे आने का इन्तजार करना। जब बहुत दिनों तक बालि नही आया तो सुग्रीव ने सोचा कि बालि मर गया होगा तो गुफा के द्वार को एक शिला से बन्द कर दिया।
जब बालि गुफा से शिला हटाकर निकला और सुग्रीव पर नाराज हुआ और उसको मारकर निकाल दिया और कहा तू मेरा राज्य लेना चाहता था । इसलिए तूने गुफा का द्वार बन्द कर दिया था उधर ही राम ने बालि को मारा था। सुग्रीव अपने भाई से दुखी था और राम सीता के विछोह से दुखी थे। दोनों दुखी मिल गए। हंसते हुए बोले।
राम ने सुग्रीव से कहा कि जाओ बालि से माफी मांग लो। सुग्रीव माफी मांगने गया तो बालि ने फिर मारकर भगा दिया। तब राम ने कहा कि लो तुम माला पहनो क्योंकि तुम दोनों की शक्ल एक सी है माला से तुम्हारी पहचान हो जाएगी। राम ने फिर बालि को मार दिया।
गाड़ियां इतनी थी कि पांच किलोमीटर आगे और पांच किलोमीटर पीछे तक गाड़ियां थी। मैदान में तो सब लोग पहुंच भी नही पाते थे, स्थानीय लोगों से मैदान भर जाता था । सुबह सत्संग, दिन में सत्संग और नामदान ये तो होता ही था, कही कहीं जो लोग नही पहुंच पाये, सत्संग के बाद आए उनको फिर सत्संग सुनाया और नामदान दिया। लोगां में श्रद्धा भाव था। रास्ते में सड़क के दोनों किनारे नर नारी बच्चे बच्चियां हाथ जोड़ें खड़े मिलते थे। सबको हमारी बात समझ में आ जाती थी।
स्वामी जी गुजरात महाराष्ट्र की ओर
स्वामी जी महाराज 8 मई 2004 को अपने लघु काफिले के साथ मथुरा आश्रम से गुजरात की ओर गये। सत्संग का कोई कार्यक्रम नही था। सत्संगियों को जगह जगह दर्शन दिया। प्राप्त सूचना के अनुसार तीन चार दिन गुजरात में रहकर महाराष्ट्र की ओर चले गये हैं। आगे का कार्यक्रम अभी निश्चित नही है कि कब तक वापिस लौटकर मथुरा आश्रम पर आयेंगे। बाबा जी ने अपने संदेश में कहा कि सत्संगी जन अपने अपने स्थान पर रहते हुए रोज सुबह शाम ध्यान भजन करें। समय थोड़ा रह गया है श्वांसों की पूंजी खतम होते ही वह मालिक इस किराये के मकान को खाली करा लेगा। सभी सत्संगी बुरी सोहबत से बचें।
अगर दुनिया का असर आयेगा तो मन भजन में नही लगेगा । इसलिए सावधानी बरतना जरूरी है जहां जहां अभी सत्संग हुये हैं वहां सत्संगी नये लोगों से सम्पर्क बनाये रखें।
हजम करना सीखो
जब मैं गुरु महाराज के पास गया तो उन्होंने साधना करने का रास्ता बताया और मैं उस कार्य मे लग गया। अट्ठारह अट्ठारह घण्टे यहां तक कि 22 घण्टे मैंने अपनी साधना मे बैठता। पर कही कुछ नहीं। बड़ी निराशा हुई मैंने एक दिन स्वामी जी महाराज से अर्ज किया कुछ समझ में नही आता अन्धकार ही रहता है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि लगे रहो, कर्म काटते जाओ और देखते जाओ। रास्ता सच्चा है, रास्ता बताने वाला भी सच्चा है। मैं फिर पूरे जोश के साथ अपनी साधना मे लग गया। मुझे गुरु महाराज पर पूरा पूरा विश्वास था। मैं सोचता था कि मेरी अन्दर कमियां हैं।
मैंने जब गुरु महाराज की प्रेरणा से सत्संग प्रारम्भ किया तो एक दिन गया बिहार जिले का मेरे पास आया नामदान लिया और मुझसे बराबर प्रार्थना करता कि दया हो जाय। मैं सुनता रहा, कुछ बोलता नहीं। वह बहुत ही कहने लगा तो थोड़ा सी दया की धार उतार दी गई जिसे वह हजम न कर सका और लगा चिल्लाने बकने लगा। उसके घर वालों ने सोचा कि यह पागल हो गया। उसे बांधकर रखने लगे। मैं उसको अपने पास कुछ दिन रक्खा, दया को हजम करा दिया जब वह ठीक हो गया तो सत्संग छोड़कर चला गय और आज तक लौटकर नही आया।
मैं सबसे बराबर कहता हूं कि साधना में लगे रहो। समय बराबर दो और दया के लिए जल्दी मत करो। हजम करना सीखो। गुरु पर पूरा विश्वास और प्रतीत रखो। रास्ता सच्चा है। जीवों के बड़े भाग्य हैं जो कि मालिक ने अपनी दया का द्वार मानव मात्र के लिए खोल दिया है।
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Jaigurudev