⧭ जयगुरुदेव अमृतवाणी ⧭


✪ जयगुरुदेव- स्वामी जी की हिदायत ✪

➧ ठतनी बड़ी चीज के लिये आप आये हो तो थोड़ी तपस्या करनी चाहिए। अमोलक निधी है उसे घाट पर बैठकर ले लो। अगर नहीं बैठोगे तो दया का ज्वारभाटा आयेगा, चला जाएगा और तुम खाली रह जाओगे।

इतने लोग भण्डारे के अवसर पर भी नहीं आये। तुमने पानी में खड़े रहकर सत्संग सुना और नामदान लिया। अभी तुमने नर्कों और चौरासी के कष्टों को नहीं देखा। उन कष्टों को थोड़ी सी तपस्या कराकर कटवाया जा रहा है। तुम्हे पता नहीं कि आगे क्या होने वाला है।

➧ तुम लोग जाओ। मुझको याद करते रहना। तुम जिसकी याद करते हो वह तो सर्वज्ञ है। उसे सब कुछ मालूम है। वह ऐसे ऊंचे स्थान पर बैठा है कि वहां से सब कुछ दिखाई देता रहता है।

➧ दीन हो जाओ यानी छोटे हो जाओ। दीनता आने पर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार सब ढीले पड़ने लगते हैं। जो दीन हो जाते हैं उन पर मालिक दयालु हो जाता है।

➧ दोनों आंखों के पीछे जीवात्मा बैठी है वहीं उसका घाट है। घाट पर बैठकर दया ले लो वर्ना ये फिर मिलने वाली नहीं है।

➧ कोई भी टाट पहनने वाला अवतारी नहीं है। आप कभी उसके चक्कर में मत आइयेगा। टाट एक सादगी की निशानी है।

➧ सन्त उसे कहते हैं जो सत्तलोक में सत्तपुरुष का दर्शन दीदार करते हैं। वे सत्तपुरुष की शक्ति में आते हैं इसलिए ईश्वर, ब्रह्म, पारब्रह्म और महाकाल पुरुष उनसे डरते रहते हैं।

➧ मन धीरे धीरे मनाने से कभी न कभी मान जाएगा। उससे कहो भजन कर लो वर्ना नर्कों चौरासी में चले जाओगे तो बड़ी मार सहनी पड़ेगी।

➧ अब अगर बचना चाहते हो तो शाकाहारी हो जाओ। अब तक तुमने जो हत्यायें की हैं और अशुद्ध आहार किया है उसकी माफी करा लो।

➧  साधक की जब दिव्य आंख खुलती है तब गुरु का चैतन्य प्रकाशमय स्वरूप दिखायी देता है। गुरु रूप से सुन्दर किसी का स्वरूप नहीं न ईश्वर का है, न ब्रह्म और पारब्रह्म का ही है। जो रूप यहां है वही रूप स्वर्ग, बैकुण्ठ आदि रूहानी मण्डलों में मिलता है तभी तो पहचान होती है विश्वास होता है।
व गुरु साफ नहीं रहेंगे तो आपको साफ कैसे करेंगे। उनके पास तो अग्नि है जिसमें तुम्हारे कर्मो को लेकर धोते रहते हैं।

➧ सुरत जीवात्मा ब्रह्मपद से जब पार हो जाती है तब कारण शरीर छूट जाता है, अलग हो जाता है। ब्रह्मलोक के ऊपर पहुंचने पर ही जीवात्मा को अमृत पीने को मिलता है। शरीर से कमाई करके यहां का कर्म बोझा उतार दो, लिंग शरीर से कमाई करके लिंग शरीर का बोझा उतार दो, फिर सूक्ष्म और उसके बाद कारण बोझा उतार दो। फिर सारे बन्धनों से सुरत मुक्त होकर स्वयं शब्द रूप हो जाती है और तब उसे सच्ची मुक्ति और मोक्ष प्राप्त हो जाता है।

➧ लड़ाई झगड़ा मत करो। कोई अगर गाली भी दे तो वहां से हट जाओ चुप हो जाओ तो उसका जहर तुम पर नहीं चढ़ेगा। उसकी गाली उसी के पास वापिस चली जाएगी। उसने तो आग लगा दी और तुम पागल हो गये। नहीं बर्दाश्त कर सकते हो तो वहां से चले जाओ। महात्मा चुप रहते हैं हंसते रहते हैं कुछ कहते नहीं लोगाें के कड़ुवे वचन बर्दाश्त करते करते सीखते सीखते महात्मा बन जाते हैं, गुणी बन जाते हैं। चुप रहने में बहुत गुण होता है।

➧ जो होना है वो तो होगा ही, तुम भजन करो। भजन करोगे तो आग लगने पर बचे रहोगे। दुनिया में जो हो रहा है उसे होने दो। कर्मो की आंधी चल रही है उससे बचो।

➧ मैं बराबर कहता हूं कि शाकाहारी रहो। दूसरी बात यह है कि कोई ऐसा नशा मत करो जिससे बुद्धि पागल हो जाये और अच्छे बुरे की पहचान खत्म कर दे।

➧  इस दुनिया में इच्छा किसी चीज से पूरी नहीं होती न धन से होती है न ही सामानों से होती है। यह देश ही कमी का है इसमें पूर्णता आ ही नही सकती। सत्संग मिलने पर ही जीव जागता है।

➧ अब मन्दिर को देखने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है। अखबार वालों के प्रचार की हमें जरूरत नहीं। बात कुछ नही और भड़काने वाले समाचार देते रहते हैं। विदेश के लोग आ रहे हैं और मन्दिर को देख रहे हैं, रजिस्टर में अपने विचार लिखते भी हैं कि ऐसा मन्दिर उन्होंने कहीं नहीं देखा। अब विदेश के लोग ही प्रचार करने लगे हैं। आप देखते जाइये क्या क्या होता है।

➧ अन्न को बर्बाद मत करो अन्न देवता है। कई स्थानों पर सूखा पड़ा है, लोग दाने दाने को तरस रहे हैं। भण्डारे में रोटी खाओ मगर बर्बाद मत करो। घर में रहो वहां भी इस बात का ख्याल रखो जब अन्न नहीं मिलेगा तो नाली मे पड़ी हुई रोटी को भी उठाकर तुम खा लोगे।

➧ प्रातः साढ़े तीन बजे उठो। यह भजन के लिये अच्छा समय है। वातावरण शान्त रहता है और मन भी अधिक भागदौड़ नहीं करता।

➧ जो पक्के साधक होते हैं वे कभी दुनियावी चीजें नहीं मांगते, हमेशा मालिक की मौज में रहते हैं और मांगते भी हैं तो केवल दया मांगते हैं कि भजन बने।

➧ बिना विरह के भक्ति नहीं हो सकती। मालिक के दर्शन के लिये रोना पड़ता है। जिसने भी पाया रो करके पाया। गोस्वामी तुलसीदास जी काफी रोये और अपने बारे में काफी कुछ लिखा। उनकी पुस्तक विनय पत्रिका में वर्णन है।

➧ सब लोग सच बोलो। परिवर्तन हो जाएगा। हर काम का योग होता है।

➧ जहां जीवात्मा बैठी है वहीं घाट हैं दोनों आंखों के बीच में। वहीं मन भी बैठा है। अगर जीवात्मा अपना घाट छोड़ दे तो शरीर छूट जाएगा।

➧ सत्संग से जन्मों जन्मों के गन्दे से गन्दे खराब से खराब जो कर्म हैं वो धोये जाते हैं। इसीलिए सत्संग बहुत जरूरी है। सत्संग नहीं मिलेगा तो मन, बुद्धि, चित्त, अन्तःकरण और जीवात्मा साफ नहीं हो सकती। भजन तभी बनेगा जब मन और सुरत निर्मल हो जाएंगे।

✪ जयगुरुदेव ✪



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