परमार्थी संदेश

★ जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश ★ 

➤ कृष्ण के समय की कोई एक भी उदाहरण हो तो हमें बताईये जिसने कहा हो कि हमको उन्होंने पार कर दिया। पाण्डव तो हरदम साथ रहे उनके लिये आता है कि वो नरक गये। तो आपने तो कृष्ण को देखा भी नही तो आपका क्या होगा ?

➤ कबीर को आये सात सौ वर्ष हुए। इन 700 वर्षो में लाखों सबूत हैं जिन्होंने लिखा है कि गुरु की कृपा हुई हमको पार कर दिया। अरे भाई तुम भी उनके ऊपर अपने को छोड़ दो, भला बुरा जो भी हो तो तुम्हारी भी सम्हाल होगी।

➤ हमारे पास कई लोग आते हैं कि महाराज हम बड़े आदमी थे हमारे पास गाड़ी था, घोड़ा था, ये था वो था आज सब चला गया, हालत बड़ी खराब हो गयी। तो पहले की बात याद करो जब तुम्हारे पास कुछ नहीं था। बीच में मिला तो तुम भूल गये कि अब तुम्हारे जैसा कोई नहीं। वक्त को कभी भूलना नहीं चाहिए। वक्त बदलता रहता है। जो वक्त को भूलता है वह दुखी हो जाता है।

➤ हम दूसरों को देखकर यह सोचते हैं कि उसके पास यह है वह है तो हमको भी सब मिल जाये, हमारे पास भी सब कुछ हो जाये, इसी में भटकते हैं और दुखी होते हैं। आप अपनी जगह पर आ जाओ जो कुछ आपके पास है मालिक उसी में बरक्कत देगा। उस पर और अपने भाग्य पर भरोसा रक्खो।

➤ मेरी बात ध्यान से सुनों एक तो वक्त को हमेशा याद रक्खो। दूसरे चाहे अमीर हो गरीब हो किसी महात्मा की खोज करो, खोज करोगे तो वो जरूर मिलेंगे। आप वक्त को नहीं पहचानते हो और महात्मा की खोज नहीं करते हो तो आपको बचाने वाला नही मिलेगा।

➤ मैंने जो कुछ भी किया, कराया और यही कहा था कि प्रचार करो। तुम इसे समझे नहीं। स्वास्थ के ढेर लग गए। सत्संग भजन सब छूट गया। क्या मिला तुमको?

➤ हम क्यों मेहनत करते हैं और कराते हैं ? ताकि आपका अंग शुद्ध और पवित्र हो जाये। तभी तो भजन बनेगा। जो मसाला आपने जमा किया है वह साफ हो जाये। इसीलिए तो सेवा रखी जाती है। ये तो मैं समझता हूं कि कितना लाभ हुआ है। एक आने दो आने तकलीफ तो रहेगी ताकि मालिक की याद बनी रहे। सब खतम कर दिया जाये तो गाफिल हो जाओगे और कहोगे कि क्या जरूरत है वहां जाने की ?

➤ तुम महात्माओं को क्या पहचान पाओगे हमारे स्वामी जी महाराज का एक गांव था जहां वो रहते थे और बहुत ही सादा रहन सहन था। बरसात में उनके गांव में जाने का रास्ता रुक जाता था। मैं लोगों से कहता था कि तुम पहचान नहीं पा रहे हो कि ये कौन हैं। पास आकर उनके वचन सुनो। तब लोग थोड़ा थोड़ा बैठने लगे थे।

➤ जब भेदी-गुरु मिल जाते हैं और नाम बताते हैं तो यही कहते हैं कि मन को रोककर रखो। यही तो अभ्यास, साधन और भजन है। इसकी आदत को बदलना है। जब मन रुकने लगेगा तो धीरे धीरे इसकी आदत बदल जाएगी।

➤ लोग ऐसा कहते हैं कि पास के गांव महोली में 98 परसेन्ट लोग शाकाहारी हैं। शहर के निकट होते हुऐ भी उन लोगों पर कोई असर नहीं। ऐसे ही सबको शाकाहारी होना चाहिए। आप नहीं समझते हो पर जो समझता है वह चिल्ला रहा है कि शाकाहारी नहीं बनोगे तो यह आपके लिए दुखदायी होगा। महात्माओं का उपदेश लोक परलोक दोनों के लिए होता है।

➤ तुम अपनी अच्छाई सद्विचार दीनता किसी को दे दो पर उसकी बुरी चीजें मत लो। तुम्हारी चीज से वह निकल आएगा पर तुम उसकी चीज अपने ऊपर लादोगे तो उसमें फंस जाओगे। जो तुम्हारी मदद करता है उसकी निकटता करो। तुम्हें ठगता है उससे दूर हो जाओ।

➤ पहले गांवों मे लोग बड़े प्यार से रहते थे, एक दूसरे का हाथ बंटाते थे, कर्ज लेना उधार लेना बहुत ही खराब माना जाता था। वैसे भी ब्याज लेना बहुत खराब है। किसी को कोई जरूरत पड़ी तो चुपचाप ले लिया और चुपचाप दे दिया। आपस में इतना विश्वास था। अब क्या हो गया ? दिल मे लोगों के फर्क आने लगा। यही हो गया। मूल तो धरा रह जाता है, ब्याज ही चुकाते चुकाते आदमी परेशान हो जाता है।

➤ जब मौका मिला आपको सुनने का तब तो आप सुनते नहीं हो, बैठे रहते हो। दुनिया में उलझे रहते हो। बच्चे बच्चियां सब अपना अपना भाग्य लेकर आते हैं। आप लड़का देखो लड़की देखो सबका भाग्य टकराता है। जब भाग्य टकराता है तो मेल मिलाप होता है। जब भाग्य टकरायेगा ही नही तो मेल मिलाप नहीं होगा।

➤ जैसे तुम दुनिया में प्रेम करते हो देखे बिना चैन नहीं पड़ती, भूलते नहीं बार बार मिलते हो ऐसे ही यदि गुरु से प्रेम हो जाये तो कर्मों के बादल छट जायेंगे, और भजन ध्यान बनने लगेगा।

➤ यह भजन का वर्ष है। तुम खूब जमकर भजन करो तो जीवात्मा की आंख खुलेगी, कान खुलेंगे, शब्द सुनायी देगा, आकाशवाणी सुनायी देगी।

➤ यह मनुष्य शरीर हरि मन्दिर है। इसको कत्ल कर दोगे तो सीधा नरकों मे पिसने चले जाओगे। नरको में बड़ी यातनायें दी जाती हैं।

➤ जब जीवात्मा की ज्ञान दृष्टि, दिव्य दृष्टि तीसरी आंख खुलती है तो सब कुछ दिखायी देता है कि मौत के वक्त कौन आता है, कौन जीवात्मा को शरीर से अलग करता है और कौन पकड़कर यमराज के दरबार में पेश करता है।

➤ मैं चिकनी चुपड़ी चीजें दिल से पसन्द नहीं करता हूं। अगर मैं यह सब खाने लगूंगा तो ये सब सत्संग का काम नहीं कर सकता। आप देखते हो मैं इतनी मेहनत करता हूं इस अवस्था में। रूखा सूखा भोजन मुझे अच्छा लगता है।

– साभार, स्वामी जी ने कहा नामक पुस्तक से
शेष क्रमशः, जय गुरु देव ।

Yug purush



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