*"यह लोगों को नहीं पता है कि धर्म की जीत और अधर्म का नाश होता है..."*

*जयगुरुदेव*
*सतसंग सन्देश / दिनांक 03.01.2022*

*सतसंग स्थलः आश्रम उज्जैन, मध्यप्रदेश*
*सतसंग दिनांक: 01.जनवरी.2022*

*"वक़्त के संत दयाल होते हैं, वे जीवों की भलाई के लिए अपनी और पूर्व महात्माओं की भविष्य वाणियां काट देते हैं..."*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

मानव मात्र को उसकी कमजोरियों को बता और समझा कर उसे समय रहते ही आगाह करने वाले, इस धरा पर धर्म और न्याय की पुनर्स्थापना के लिए निरंतर प्रयासरत,
समय के पूरे आध्यात्मिक समर्थ संत सतगुरु उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 01जनवरी 2022 को नव वर्ष कार्यक्रम में आश्रम, उज्जैन, मध्यप्रदेश में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(Jaigurudevukm)* पर प्रसारित लाइव संदेश में बताया कि,

आदमी जब इकट्ठा करने में लगता है तब यह नहीं देखता है कि हम नीति कर रहे हैं या अनीति?
इससे लालच बढ़ जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि लालच ज्यादा मत करो। बहुत से लोग इस समय ठगा जा रहे हैं। ठगी आपने अभी क्या देखा है?
*2022 में ठगी बहुत बढ़ेगी। इसलिए बता रहा हूं कि आगाह हो जाओ।*

*"गुरु महाराज बड़े दयालु थे, सोलह में से चौदह आने अपनी भविष्यवाणी कटवा दी..."*
भविष्य वाणी मैं नहीं करता हूं। भविष्य वाणी कट जाती हैं। मालिक दयाल है, दया कर देता है, माफी दे देता है, भविष्य वाणियां कट जाती हैं।
गुरु महाराज शुरू में भविष्य वाणियां करते थे लेकिन उन्होंने ही प्रभु से प्रार्थना करके सोलह में से चौदह आना भविष्य वाणियां अपनी ही कटवा दी, *माफ करवा दिया जनता का, बड़े दयालु थे।*

*"बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने शिव जी और इंद्र से किया प्रार्थना कि लोगों को भूखा मत मारो..."*
बहुत भुखमरी फैली हुई थी, सन 1977 से पहले। आए दिन अखबारों रेडियो में निकलता था कि भूख से लोग मर गए।
गुरु महाराज ने प्रार्थना किया, प्रार्थना क्या? उनको आदेश दिया। लेकिन हमेशा छोटे बने रहे इसीलिए बड़े माने गए।
*लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर। चींटी चावल ले चली, हाथी मस्तक धूल।।*
गुरु महाराज ने शिव जी और इंद्र से कहा इनको भूखा मत मारो। आप समझो! वह प्रार्थना क्या करेंगे? आदेश देंगे।
लेकिन मनुष्य शरीर में होने के नाते मर्यादा उनकी रखनी पड़ती है। अयोध्या में यज्ञ किया था, उस साल के बाद इतनी बरसात हुई, चावल और गन्ने की फसल बहुत ज्यादा हो गयी। *संत बहुत दयालु होते हैं।*

*"यह लोगों को नहीं पता है कि धर्म की जीत और अधर्म का नाश होता है..."*
महापुरुष भी दयालु होते हैं। कृष्ण भगवान भी दयालु थे। जब महाभारत शुरू होने को हुआ, पांडव और कौरव अपनी-अपनी टीम बनाने लगे।
कुछ राजा पांडु की तरफ, ज्यादातर कौरवों की तरफ चले गए। लोग देखते हैं कि पावर इनकी ज्यादा है, आदमी ज्यादा है इनकी तरफ, तो इनका साथ दे दो।
*लेकिन यह लोगों को नहीं मालूम है कि धर्म की जीत होती है, अधर्म का नाश होता है।*
कृष्ण ने समझाया था कि पांडवों का भी हक है, दे दो। लेकिन कहा सुई की नख के बराबर भी जमीन नहीं देंगे। अन्याय का परिणाम क्या हुआ?
*ग्यारह हजार अक्षौहिणी सेना अठ्ठारह दिन के अंदर खत्म हो गई।*

*"कर्नाटक राज्य के उडुपी नगर के राजा ने दोनों पक्षों को अठ्ठारह दिन तक भोजन कराया था..."*
कर्नाटक राज्य के उडुपि के राजा, कृष्ण के पास आए, बोले इनको भोजन कौन खिलाएगा?
लड़ाई लड़ेंगे, खाएंगे क्या? इनको भूखे मारोगे? भूखे तड़पा कर मारना तो बहुत बड़ा पाप है, जीव हत्या पाप है।
और यह मानेंगे है नहीं, मरेंगे जरूर। लेकिन इनको भूखा क्यों मारते हो? उन्होंने कहा कि वो दोनों पक्ष के लोगों को भोजन खिलाएंगे। *कृष्ण ने स्वीकार कर लिया।*

*"राम और कृष्ण के भी विद्या गुरु और आध्यात्मिक गुरु अलग-अलग थे..."*
कृष्ण के आध्यात्मिक गुरु सुपच थे। जिनसे उनको सारे ज्ञान मिले थे और विद्या गुरु सांदीपनी थे।
राम के विद्या गुरु विश्ववामित्र और आध्यात्मिक गुरु वशिष्ठ थे।
ऐसे ही आध्यात्मिक गुरु और विद्या गुरु अलग होते हैं। माता-पिता को भी गुरु बताया गया। जो भी किसी को ज्ञान देता है गुरु ही कहलाता है।
*पूरे आध्यात्मिक गुरु सब तरह का ज्ञान दे सकते हैं, पूरे समर्थ संत सतगुरु को खोजना चाहिए।*


Jaigurudev sadh sangat


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