"जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव"
सतसंग अमृत वचन
"रावण तो बड़ा विद्वान और बलवान था। उसने अपने जीवन का बहुत समय तपस्या में लगाया, भक्ति में लगाया। वह उत्तम कुल में जन्मा पुलस्तय ॠषि का नाती था।
सोने की लंका थी। चार वेद, छह शास्त्र, सभी पुराणों का जानकार था। विद्वत्ता तो बहुत थी। एक बार पुलस्तय ऋषि जब रावण के यहाँ पहुंचे तो रावण बहुत खुश हुआ।
एक तरफ से उसने पुलस्त्य ऋषि को दिखाना शुरू किया कि यह हमारी यज्ञशाला है, यह व्यायामशाला है, यह पाठशाला है, यह प्रयोगशाला है, यह हमारी गौशाला है। सारी शालायें दिखा दिया।
पुलस्त्य ऋषि ने कहा; तेरी चरित्रशाला किधर है?
तो रावण चुप हो गया क्योंकि चरित्र उसका अच्छा नहीं था। रावण बहुत विद्वान जानकार था लेकिन उसका चरित्र क्यों खराब हो गया?
क्योंकि वह मांस खाता था। तो मांस जब खाता और शराब पी लेता तो शराब-मांस की वजह से उसकी बुद्धि खराब हो जाती थी। दूसरे की बहन, बहु, बेटियों को गलत नजर देखने लगता था।
एक लाख पूत सवा लाख नाती, ता रावण घर दिया न बाती।
वह बहुत जानकार तो था लेकिन जब उसके अंदर तीन बुराइयां आईं। उसने मांस खाया, शराब पिया, जब बुद्धि खराब हुई तब दूसरे की औरत को गलत नजर से देखने लग गया।
दूसरे की औरत को जब गलत नजर से देखा तब उसको पाप लगा। उसके पाप से उसका विनाश हुआ। इसलिए दशहरा में जगह-जगह रावण मारा जाता है।
- परम पूज्य संत बाबा उमाकान्त जी महाराज
आश्रम उज्जैन, मप्र., भारत / यूट्यूब चैनल
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