*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/दिनांक 09.09.2021*
आश्रम, सीकर, राजस्थान
*यदि पूरी जिंदगी सुख और मरने के बाद भगवान को चाहो तो पूरे संत सतगुरु से मिले नाम का ध्यान-भजन-सुमिरन रोज करो।*
आजकल की व्यस्त जिंदगी में ही मनुष्य को भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों तरह के सुख मिलने का सबसे आसान व्यवहारिक रास्ता बताने वाले,
इस समय के पूरे संत सतगुरु, उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 06 अगस्त 2021 को सीकर, राजस्थान में, यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(Jaigurudevukm)* पर प्रसारित सतसंग में बताया कि,
लोक और परलोक दोनों बनाने का सबसे सीधा और सरल रास्ता गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी महाराज) ने निकाल दिया। अष्टांग योग, हठ योग, कुंडलियों का जगाना, हजारों वर्ष की तपस्या आदि जो लोग किया करते थे, सब खत्म कर दिया।
ऐसी नाम की साधना बताया, जिसमें न तो शरीर को कष्ट देना, न घर छोड़ना, न बाल बच्चों को छोड़ना है। गृहस्थ आश्रम में ही करना है। समय जरुर निकालना है। मन लगाकर के करना है। कम से कम सुबह-शाम एक-एक घंटा जरूर करना है।
इसी मनुष्य शरीर में देवी-देवताओं का दर्शन हुआ है और बहुत से लोगों को अभी भी हो रहा है, जो करते हैं।
*देखो! यहां कोई मजदूरी आपकी रोक ले लेकिन वह मालिक नहीं रोकता। जितना करोगे, उतना देगा जरूर। करने की जरूरत है।*
*अब जो लोग बुड्ढे, शरीर से कमजोर हो गए हैं, उनके लिए भी उपाय है।*
जो पुराने लोग आए हो, देखो कुछ लोगों के मन में ये आ रहा है कि अब शरीर कमजोर हो गया। अब हम से कैसे हो पाएगा ? याद करते रहना भी सिमरन है।
कहा न:
*पलटू सिमरन सार है, घड़ी न बिसरे एक।*
एक मालिक से मिलने की आस बन जाए तो सिमरन में याद को जोड़ दिया जाता है। जब तड़प जग जाती है तो वह मालिक बर्दाश्त नहीं कर पाता, दया कर देता है।
आज तक जिस को भगवान मिला, इसी मानव शरीर में मिला। देवी-देवताओं का साक्षात दर्शन इसी मनुष्य शरीर में हुआ। शरीर छोड़ने के बाद न तो भगवान किसी को मिला और न मिलेगा।
*यदि दुनिया का सुख और अध्यात्म की शक्ति - दोनों एक साथ चाहते हो तो ये करो।*
अगर चाहते हो कि जब तक हम यहां रहें, सुखी रहें। धन-पुत्र-परिवार में बढ़ोतरी हो, मानसिक शांति मिले और आखिर में जब हमारा शरीर छूटे तो हम अपने असली घर - वतन अपने मालिक के पास पहुंच जायें तो सुमिरन-ध्यान-भजन बराबर करो।
अब आप इतना सुनने के बाद कुछ जरूर समझे होगें कि हमको भी करना चाहिए। तो आप को वो रास्ता यानी नामदान दे दिया जाएगा।
*नाम* दान में दिया जाता है। उसके बदले कोई कुछ दे ही नहीं सकता है। गुरु महाराज ने नामदान दिया, उसका बदला कभी चुकाया ही नहीं जा सकता है। बोटी-बोटी कट जाए लेकिन बदला चुकाया नहीं जा सकता। इसीलिए कहा गया:
*संतों की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।*
*लोचन अनंत उगाड़िया, अनंत दिखावन हार।।*
*नाम तो यह दान में ही दिया जाता है।*
गुरु महाराज ने करोड़ों लोगों को दिया और बहुत से जो लोग लग गए उनको पार भी कर दिया।
गुरु महाराज के जाने के बाद उनके आदेश से अब मैं दे रहा हूं। आप समझो! हिम्मत तो कभी-कभी हारने लगती है। उम्र के हिसाब से मेहनत ज्यादा हो जाती है।
*फिर हिम्मत बढ़ जाती है कि और कोई नामदान देने वाला है ही नहीं।*
देने को तो कोई भी दे, लेकिन जिसको आदेश होता है नामदान देने का फलदाई वही होता है, जब उसके मुंह से सुन लिया जाता है।
अब आप यह समझो या तो नामदान देने वाले के पास जाया जाये या फिर वह आवें तभी तो नामदान मिल सकता है।
अब इस वक्त पर इतनी भागदौड़ की जिंदगी, इतना व्यस्त हो गया इंसान कि मौत भी सामने आ जाए तो उसको भी कहे कि इंतजार कर लो, अभी हम काम निपटा लें फिर चलें।
*तो मैं सोचता हूं कि मैं ही मेहनत करूं*। जो नाम आपको बताऊंगा, यह नाम का जाप आप जब करोगे तो फलदाई होगा।
*ऑन-लाइन नामदान नहीं दिया जा सकता, मर्यादा का पालन जरुरी है।*
देखो प्रेमियों! यही नाम आपको धार्मिक ग्रंथों में भी मिल जाएगा। यही नाम कुछ और लोगों के मुंह से भी सुन सकते हो।
ऑनलाइन नामदान देने लग गए, टेलीफोन से भी। मैं तो किसी की कोई निंदा-बुराई करता नहीं लेकिन असलियत बताना जरूरी होता है। असलियत को अगर हम छुपाएंगे तो आप अनभिज्ञ रह जाओगे।
आप कहोगे कि कौन जाए वहां इतनी दूर। हम टेली फोन से ही नाम ले लेंगे। हम ऑन-लाइन सुन लेंगे। क्या जरूरत है वहां जाने की?
*जैसे पीपल, रसाल का बीज सीधा नहीं उगता है। ऐसे ही सतगुरु के बनाये हुए अगले सतगुरु से ही मिला नाम फलदायी होता है।*
*सतगुरु जिनको आदेश यानी पॉवर देकर जाते हैं, उनसे ही लिया हुआ नाम फलदायी होता है।*
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