𐄫 साधकों को चार घण्टे सोना चाहिए। चार घण्टे में नींद पूरी हो जाती है। जिनकी साधना बनने लगती है, अनुभव होने लगते हैं उनके लिए दो घण्टे का समय ही पर्याप्त है।
𐄫 मैं तुमको चाहता हूं, तुम भी चाहने लगो तो काम न बन जाय। प्रेम हो जाय तड़प हो जाय तो रास्ता आसान हो जाता है। इसलिए विरह, अंग लेकर भजन करना चाहिए।
𐄫 सूरज के आगे अंधकार नहीं टिक सकता। इसी प्रकार महात्माओं के आगे बुद्धि बिलास की बातें टिक नहीं पातीं। महात्मा जो देखते हैं वो बयान करते हैं और तुम पढ़ी-पढ़ाई बातें करते हो।
𐄫 जो लोग नामदान लेकर जाते हैं यहां कहकर जाते हैं कि हम भजन करेंगे। उधर जाकर उलझ जाते हैं। यह नहीं सोचते कि हमें इतना महत्वपूर्ण नाम मिला है तो हम कुछ कमाई करें। दुनियां के काम में उलझे रहते हैं, संकल्प विकल्प करते रहते हैं और उसी में सो जाते हैं।
𐄫 बहुत से लोग हैं कि भजन पर बैठे और नींद आ गयी। फिर कहने लगे कि कल करेंगे और कल भी नहीं बना तो छोड़ देते हैं और कहते हैं कि फिर कल करेंगे। आज और कल में समय बीत जाता है।
𐄫 सत्तलोक से एक धारा ज्वार-भाटे की चलती है जो भंवर गुफा मे दसवें द्वार में, त्रिकुटी में और सहसदल कंवल में है। फिर वहां से भी नीचे उतर कर यह धारा दोनों आंखों के सामने तीसरे तिल जहां की चरण कंवल है वहां एक बराबर आती जाती रहती है। विशेष सत्तलोक से जो सत्तपुरुष की दया की धारा जो आती है उसका इन्तजार साधकों को करना पड़ता है। भक्ति भाव मे जो लोग हमेशा नियम से भजन में बैठते रहते हैं वो एक ही बार मे उसी ज्वार भाटे से एकदम से निकल कर ऊपर चले जाते हैं,। साधकों को समझ नहीं आता कि ये क्या हो गया चमत्कार हो गया, करिश्मा हो गया था उनके ऊपर गुरु की विशेष दया हो गयी।
𐄫 साधकों को मन की चाल में नहीं बहना चाहिए। अगर बह गये तो सुमिरन ठीक से नहीं होगा। सत्संग के वचन याद रक्खोगे तब बचोगे वर्ना वह जाओगे।
𐄫 दोनों आंखों के ऊपर अन्तःकरण में कर्माें का पर्दा तो मन ने इकट्ठा किया हैं अब जब ध्यान मे भजन में मन जीवात्मा का साथ दे तब पर्दों की सफाई होगी। घण्टे की आवाज को सुनने से कर्मों के पर्दे फुलझड़ी की तरह झड़ते चले जाते हैं।
𐄫 जब प्यार और भाव के साथ प्रार्थना की जाती है तब मालिक सुनता है और दया करता है। जीवात्मा का हृदय आंखों के ऊपर है और हरा-भरा हो जाता है। शरीर का हृदय नीचे की ओर है।
𐄫 आलस छोड़कर भजन करो। सुबह उठते ही फिर सो जाते हो अच्छी बात नहीं। आलस छोड़ दो और भजन करने लगो तो काम बनने लगेगा।
𐄫 जिस अंग कान हाथ पैर से तुमने गलत काम किया है उसी अंग से महात्मा सेवलेते हैं ताकि तुम्हारे कर्म धुल जायं। सेवा से सब कर्जा भुगतान करा देते हैं।
जब नामदान मिल जाय तो गुरु की कृपा का आधार लेना चाहिए। जैसे पपीहां स्वांति की आस लगाये रहता है, उसका विश्वास है कि बूंद गिरेगी, इसी तरह घाट पर बैठकर दया मांगो तो दया मिलेगी।
𐄫 मेहनत और ईमानदारी रहेगी तो भजन बनेगा।
𐄫 ब्रह्म पद त्रिकुटी के ऊपर गुरु का दर्शन करने के बाद जीवात्मा मान सरोवर में स्नान करती है तब वो हंस रूप् हो जाती है और उसे सच्ची मुक्ति अथवा मोक्ष प्राप्त हो जाता है। फिर इसमें ईश्वर से और ब्रह्म से अधिक शक्ति प्राप्त हो जाती है और इन दोनों से अधिक प्रकाशवान स्वरूप जीवात्मा का हो जाता है।
𐄫 अपनी आदत बदलो। आदत का बदलना बहुत जरूरी है। आदत जब बदल जाती है तो मन में दृढ़ता आती है फिर भजन बनने लगता है। तुम मन को रोककर बैठते ही नही तो भजन कैसे बनेगा।
𐄫 गुरु की महिमा बिना किसी प्रेमी के पास बैठै तुम जान नहीं सकते । तुम्हारी दिव्य आंख खुल जाय, आकाशवाणी सुनाई पड़ने लगे तो जीवात्मा जाग जाएगी। अभी तो वो अन्धेरे में सोई हुई है और इस शरीर में दोनों आंखों के पीछे अंधेरे मे बंद है।
𐄫 जिस बाहरी गंगा में स्नान करने से तुमने समझ लिया कि हमारे पाप कट गये, मुक्ति हो जायेगी तो वास्तव में ऐसा नहीं है । गंगा हो जमुना हो या सरस्वती हो ये सारी की सारी नदियां अन्तर में हैं। आकाश के ऊपर हैं। जो महापुरुष परमात्मा की धार से जुड़ा हुआ है वही तुम्हे उस ब्रह्म गंगा में स्नान करा सकता है। ऐसे महापुरुषों के चरणों में गंगा लोटती है। सारे के सारे तीर्थ गुरु के चरणों में बसते हैं।
𐄫 दोनों आंखों के पीछे ठीक बीचों बीच में मूल चक्र है अष्टदल कंवल है उसमें दृष्टि को लगाओ। उस कंवल के खुलते ही आकाशवाणी सुनायी पड़ने लगेगी। उठते बैठते चलते फिरते हर वक्त संगीत सुनायी देता रहता है। इसी को नाम कहते हैें, शब्द कहते हैं। इस संगीत मे मिठास है, शक्ति है, कशिश है, यह सर्वगुण सम्पन्न है। इसी संगीत को सुनकर मन वश में हो जाता है, अपनी भागदौड़ बन्द कर देता है।
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Jai Gurudev
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