जय गुरु देव
प्रेस नोट/ 11 जुलाई 2021
उज्जैन, मध्य प्रदेश
जब पूरे सन्त सतगुरु मिलते हैं तो दीन और दुनिया दोनों बना देते हैं।
लोक और परलोक दोनों इसी जीवन में बनाने वाले इस समय के पूरे सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 19 जनवरी 2021 को वापी, गुजरात में आयोजित व यूट्यूब चैनल JaigurudevUkm पर प्रसारित सतसंग में बताया कि,
देखो प्रेमियों! जो सुमिरन ध्यान भजन बराबर करते हैं, गुरु ने जो आदेश दिया कि शाकाहारी रहो, नशा मुक्त रहो और नियम-संयम का पालन करो, जो करते हैं, उनको फायदा होता है। हर तरह से फायदा होता है। क्योंकि यह एक ऐसी चीज है, इसी से सब बन जाता है, दीन भी बन जाता है, दुनिया भी बन जाती है।
दृष्टांत- सन्त दीन-दुनिया कैसे बनाते हैं?
एक आदमी बड़ा गरीब था। उसकी मां अंधी थी। उसके कोई औलाद भी नहीं था। बहुत दु:खी रहता था। किसी ने उसको कहा विष्णु भगवान पालन का काम करते हैं, सब कुछ देने वाले हैं। विष्णु भगवान की पूजा करने का तरीका बताया। उसने करा तो विष्णु भगवान खुश हो गए। दर्शन दिया, बोले एक वरदान तुमको मिलेगा, मांग लो जो तुमको मांगना है। बोला समस्याएं तो बहुत हैं, एक वरदान से कैसे काम चलेगा। कहा हमको मौका दीजिए, कल पूछ लेंगे।
सोचा पहले मां से पूछा जाए। मां ने बड़ी सेवा किया, 9 महीना पेट में रखा है। उसने पूछा मां से, माँ ने कहा मेरी आंख मांग ले, मैं भी दुनिया देख लूं, जन्म की अंधी हूं। पिता से पूछा तो पिता ने कहा धन मांग ले, गरीबी में ही पूरी जिंदगी बीत गई। औरत से पूछा तो औरत ने कहा एक लड़का मांग लो, औरतें मुझे बांझ कहती हैं, मेरा बांझपन छुड़ा दो।
अब सोचा क्या मांगे? तीनों की अलग-अलग ख्वाहिश, किसकी इच्छा पूरी करें? लेकिन समय दिया था कि कल 12 बजे तक मांग लेना। चल पड़ा घर से, सोचता रहा कोई रास्ता निकलेगा। वहां पहुंचते-पहुंचते कुछ न कुछ मांग लेंगे।
तब तक उधर से एक महात्मा जी आते हुये दिखाई पड़े। उनका पैर छुआ तो उन्होंने कहा बच्चा तुम बड़े उदास लग रहे हो। बोला हां महाराज, बड़ी समस्या है मेरे सामने। पूछा क्या? तो बताया। तो उन्होंने कहा तुमने अपने गुरु से नहीं पूछा? महाराज मैंने गुरु तो किया ही नहीं। गुरु नहीं किया? तुमने पढ़ा नहीं, कबीर साहब ने क्या कहा है-
निगुरा मुझको न मिले, पापी मिले हजार।
एक निगुरा के शीश पर, लख पापी का भार।।
कहा, महाराज मेरी इच्छा तो हुई, मैं तो यही सोचता रहा किसे गुरु करूं? मंदिर के पुजारी को बनाऊं या मठ के मठाधीश को बनाऊं या जो टेढ़ा चंदन लगाता है? उसको बनाऊं या गोल चंदन लगाने वाले को या किसको? मैं यही नहीं सोच पा रहा था, आप बताओ। उन्होंने कहा तुमने गुरु का मतलब नहीं समझा-
रूह है नाम प्रकाश का गुरू कहिए अंधकार।
ताकौ करें विनाश जो सोई गुरु करतार।।
बाहरी आंखों को बंद करने पर जो अंतर में उजाला ला दे, वह सच्चा गुरु होता है, समरथ गुरु होता है। बोले यह बात आपकी समझ में आई? महाराज यह तो किसी ने बताया ही नहीं और न मैंने सुना की मेरी अंतर में आंख खोलने पर महाराज उजाला हो सकता है? बिल्कुल हो जाएगा।
अब उधर समय हो रहा था 12 बजने का। वो सोचा अब हम इन्हीं को गुरु बना लें। कहा महाराज! आप ही मेरे गुरु बन जाओ। आप ही सबसे पहले तो यह रास्ता हमें बता दो कि हम क्या करें? 12 बजे तक हमें पहुंचना है। नहीं पहुंचेंगे तो हमें वरदान नहीं मिलेगा। तब बोले अच्छा जा,
महाराज जी ने बतायी लोक बनाने वाली बात
कहा जा। परलोक बनाने वाली बात तो बाद में बताऊंगा, जा पहले अपना लोक बना ले। जैसा मैं कहूं वैसा ही कहना कि, मेरा बेटा मेरे 7 मंजिला मकान में सोने की छत के नीचे चांदी की थाली में दूध रोटी खाए और मेरी मां देखें। अब आप देखो रुपया नहीं होगा तो 7 मंजिला मकान कहां से बनेगा? सोने की छत कैसे लगेगी? चांदी की थाली कहां से आएगी? तो धन हो गया। और लड़का पैदा हमारे नहीं होगा तो खाएगा कौन रोटी। और मां की आंखें नहीं होंगी तो कैसे देखेगी? तो एक ही वरदान में देखो सब मिल गया।
लोक-परलोक दोनों बनाने वाली बात- "एक को साध लो तो सब काम बन जायेगा"
आप समझो प्रेमियों! एक काम अगर कर ले जाओ तो इसी से आपका सब काम बन जाएगा। पुराने प्रेमियों के लिए हमको तो यही कहना है,
एकै साधै सब सधे, एक को साधने में लग जाओ।
अब आप कहोगे एक को साधने में दिक्कत हो रही है, रोजी-रोटी की समस्या है, बरकत नहीं हो रही है, शरीर कष्ट झेल रहा है, बीमारियां फैल रही हैं तो नियम-संयम का पालन जरूरी है, खानपान पर कंट्रोल करना जरूरी है, मेहनत-ईमानदारी की कमाई करना जरूरी है कि जिससे बरकत मिले। तो देखो यह बात है नए और पुराने लोगों के लिए, दोनों के लिए लागू होती हैं।
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