*जय गुरु देव*
*प्रेस नोट/दिनांक 19 जुलाई 2021*
बाबा उमाकान्त जी महाराज आश्रम, उज्जैन, मप्र.
*पद, पैसा, परनारी-तीनों से होशियार रहो। ये परमार्थ के रास्ते में हैं बाधक।*
बच्चों को चरित्रवान बनने की शिक्षा देने वाले वर्तमान के पूरे सन्त सतगुरु *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 11 जुलाई 2020 को अपने उज्जैन आश्रम से भक्तों को सन्देश दिया कि,
प्रेमियों! आप यह समझो परमार्थ के रास्ते पर औरतें तो है ही बाधक, क्योंकि माया की अंश है।
लेकिन जो उनसे मुंह मोड़ लेता है, जो उधर भी उनकी तरफ ध्यान नहीं देता है, अपनी कामवासना को भक्ति के आगे कम कर लेता है, उसकी जो इच्छा, कामना होती, वह भी माया की अंश ही है, माया का उस पर भी जोर रहता है।
*जेती मन की कल्पना, काम कहावे सोय।*
*काम-काम सब कोई कहे, काम न जाने कोय।।*
मन इच्छा पैदा कर देता है, किस चीज के लिए?
पद, पोस्ट, धन-दौलत, मान-प्रतिष्ठा के लिए। ये इच्छा, कामना दुर्गम घाटी है, परमार्थ के रास्ते में यह बाधक है।
*परमार्थ का रास्ता, तलवार की धार पर चलने के बराबर है।*
*करा कराया सब गया, जब आया अहंकार।*
तीन चीजों से होशियार रहना - पद पैसा और परनारी। अगर जबरदस्ती मिल भी जाए तो इस पर तुम अहंकार मत करना, घमंड मत करना। क्योंकि प्रभुता जब आती है किसी चीज की तो अहंकार आ जाता है।
करा कराया सब गया, जब आया अहंकार। तो मैंने उन बातों को पकड़ा और पकड़कर के रिसर्च करने लग गया।
*गुरु मुखता से जब आदमी अलग हो जाता है तो परमार्थ छूट जाता है।*
क्योंकि जब तक रिसर्च में कोई चीज नहीं आती है, जल्दी विश्वास नहीं होता है। किताबों में तो लिखा रहता है कि इन चीजों को मिलाओ, इसका काढ़ा बनाओ तब उसके रंग का पता चलेगा। पानी उबालोगे तब रंग का, खुशबू का पता चलेगा। पिलाओगे तब फायदा होगा। ऐसे ही हमने देखा कि यह सब चीजें परमार्थ में बाधक हैं।
दिखाई पड़ी क्यों? क्योंकि इसमें बू आती है। किसकी? मन मुखता की बू आती है इसमें। गुरमुख के बजाय इंसान मनमुख बन जाता है और मन के हिसाब से करने लगता है। मन तो सम्मान, धन दिलाना चाहेगा, संसार के भोगों में और संसार चलाना चाहेगा तो मन मुखता आ जाती है और गुरु मुखता से आदमी अलग हो जाता है। तब यह परमार्थ छूट जाता है।
*संतमत में दो चीज प्रमुख होती है- गुरुमुखता और मनमुखता।*
देखो संतमत में दो चीज प्रमुख होती हैं - मनमुख और गुरमुख। जैसे धरती और आसमान, सुबह और शाम, धर्म और अधर्म, आत्मा और परमात्मा।
तो मन कैसे गुरमुख बनता है? मन साफ-सुथरा है, मन लगने लग गया भजन में। लेकिन यह गले में डाल दिया गया कि पैसा दे दिया जाए तो मन उधर लगने लग जाएगा। उसी को बढ़ाने में लग जाएगा। और कमाने में लग जाएगा। ज्यादा जब हो जाएगा तो उसी से अन्याय कराएगा, उत्पात कर्म बनाने में मन लग जाएगा।
*पद, परनारी, प्रतिष्ठा के लिए पतन की ओर अग्रसर होने लगता है।*
पद मिल गया तो पद वाले कि तो प्रतिष्ठा बहुत बढ़ जाती है। उसको संभालने-बचाने के लिए उसमें वह लग जाता है। आप यह समझो पर नारी के चक्कर हो गया। इसमें दोनों चीजों में बढ़ाने में लगता है। सम्मान बनाए रखने के लिये दिखावा करने में लगता है। इसी की वजह से लोगों का आकर्षण होता है। धन की तरफ जब लोग देखते हैं चाहे औरत हो या आदमी, उसकी तरफ बन जाता है कि बहुत बड़े धनी हैं, इनसे हमारी दोस्ती हो जाए, प्रेम हो जाए। यह बड़े पद वाले हैं, हमारा फायदा करा देंगे।
तो इन सारी चीजों का हमला होता है। इन सब को बचाने के लिए तरह-तरह कि मन मुखता करनी पड़ती है, तरह-तरह के हथकंडे अपनाने पड़ते हैं, सोसायटी बनानी पड़ती है, उस सोसाइटी में जाना भी पड़ता है लोगों को। वहां आदमी का खान-पान खराब हो जाता है, नशे की आदत बन जाती है।
*आजकल ये इमेज बन गयी कि गलत प्रवृत्तियों वाले ही सफल हो सकते हैं।*
जैसे आजकल देखो उनमें लोगों की प्रवृत्ति बन गई कि नेता, अध्यक्ष, मंत्री वही बन सकता है, वही तरक्की कर सकता है जो ऐसे सोसाइटी में बैठे। जहां पर शराब, शबाब और कबाब चलता हो तभी वह आगे बढ़ सकता है। इन चीजों का प्रयोग करेगा, कराएगा तब सब लोग खुश होंगे और तभी आगे तरक्की कर सकता है।
*तो इस तरह की आदत में आदमी पड़ जाता है। ये सब परमार्थ में बाधक है। प्रेमियों! होशियार रहो।*
(यह व्हाट्स एप ग्रुप *सूचना-प्रांतीय जिम्मेदार* से प्राप्त संदेश है।)
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