Jaigurudev Amrat Vani

*【 स्वामी जी ने कहा 】*


*11- शाकाहार*

शाकाहारी रहो। सूखे गीले फल जितना चाहे खाओ। यह शरीर भगवान कर मंदिर है इसको गन्दा मत करो । किसी भी पशु–पक्षी जानवर का मान्स मत खाना, अण्ड़ा मन खना, यह मुर्गियों का मासिक धर्म का गंदा गलीज खून है।

कोई नशा ऐसा मत करो, पीओ कि बुद्धि पागल हो जाये। बीड़ी और तम्बाकू हुक्के वाली पी सकते हो , मैंने तो कभी पिया नहीं, न पीओ तो अच्छा है। शाकाहारी भोजन दिन मे जितनी बार मन करे, पचा सको तो खालो, मना नहीे। मन करे तो सोते समय तकिया के नीचे भी रख लो जब मन करे खालो लेकिन भूल कर भी मान्साहार मत करना। 

जो रास्ता बताया है भजन करने का इसमें नागा मत करना। जैेसे शरीर को खुराक देते हो उसी तरह आत्मा का खुराक भजन है, अगर सुमिरन नहीं करोगे, भजन नहीं करोगे, ध्यान पर दरवाजे पर नहीं बैठोगे तो आत्मा को खुराक नहीं मिलेगा, आत्मा को भूखा मत रखो।



*12- अधूरा देश -* 

इस दुनिया में जो जरुरी हो उस काम को करो। फिजूल के काम गप-शपथ बकवास, खेल तमाशा, किस्से कहानियों में अपना समय जाया मत करो । अपने काम का निशाना हर समय सामने रखो और उसको पूरा कर लोे। दुनिया में कोई भी काम पूरा नहीं होता, एक काम पूरा करोगे कि दूसरा सामने आ जायेगाा, दूसरा पूरा किया तो तीसरा आ जायेगा और इसी तरह पूरा जीवन खप जाता है, कभी काम पूरा नहीं होता । 
यह देश ही अधूरा है, कभी पूरा नहीं होता इसलिये समय रहते अपना काम करते जाओ, भजन करना साधना करना ही अपना काम है। समझ गये।



*13- गलत जानना -* 

पाकेट में हाथ डाल कर दश-पाँच मिनट सड़क पर खड़े हो जाते हो,  कुछ इधर सुना कुछ उधर सुना, कहते हो की जान लिया बाबाजी को और चल देते हो। अरे बीस बीस साल और तीस तीस, चालीस चालीस साल तुम दिन रात अपने वीवी के साथ रहे और तुम अपने बीवी को नहीं जान पाये तो बाबा जी को तुमने ना सुना न पास में आये, तुम बीसों साल मेरे पास रहो। मगर बाबाजी के खोपड़ी में क्या है तुम नहीं जान सकते , कहते हो पाँच मिनट में जान लिया। 

ये जो लाखों की तादात में सामने बैठे हैं, ये मुझे दिनभर में दस दस बार बेच सकते हैं ,क्या समझते हो इनको, ये ऐसे ही यहाँ आकर नहीं बैठे हैं। इन्हें कुछ मिलता है तब इतना शांति से बैठे हैं। दुनियाँमे कहीं चले जाओ जहाँ दो औरतें साथ होंगी कभी चुप नही, बैठ सकती यहाँ देखो कि तनिक भी फुस फुस नहीं यहाँ तक कि गोद के बच्चे भी शांत हैं तो यहाँ ये कुछ लेने आते हैं अपना खर्च करते है, कोई ये किराये पर नहीे आते।




*14-सन्त का भेद -* 

सन्त का भेद कोई नहीे जानता । वे स्वयं अपना भेद- जितना भेद बता दे , सुना दे, दिखा दे, उतना ही कोई जान सकता है। अगर वह नहीं चाहे तो कोई भी कुछ नहीं कर सकता है । और कोई भी सन्त को जबरदस्ती करके प्रताड़ित करके या प्रलोभन दिखाकर के उनका कुछ भेद जानना चाहे तो यह कभी संभव नही हो सकता। सन्त जो चाहे कर सकते हेेै। वे समस्त रचना को पलभर में जैसा चाहे कर सकते है। वे सर्व सर्मथ है। 

परमात्मा और सन्त मे कोई भेद नही होता है। जब इस दुनिया में वे मनुष्य देह मे जीवो के उद्धार हेतु उतरते है इस देश के कानून को जो इस देश में काल भगवान ने लागू किया है । उसका उल्लंघन नहीं करते जीवो को चेताने में वेे बर्दाश्त का बेमिसाल उदाहरण पेश कर देते हैं लेकिन ईश्वर के नियम को तोड़ते नही है । साढ़े सात सौ वर्ष में सन्त प्रगट आये और तकलीफे उन्होने बर्दाश्त किया वे बेमिसाल है ।



*15-  गुप्त संत* 

गुप्त संत  इस धरती पर हमेशा रहते हैं। उन्हें आप पहचान नहीं सकते। उनको केवल प्रगट संत ही जानते हैं। सचखंड यानि सतलोक में सतपुरुष के दरबार में इस दुनिया के गुप्त संत निरंतर संदेश लेते देते रहते हैं। 

यहां की हर खबर सतलोक मे देते हैं। और उसकी मौज के अनुसार भिन्न भिन्न रंग रूप भेष भूषा में मनुष्य शरीर में रहते हैं प्रगट संत और गुप्त संत दोनों ही एक दूसरे से यहां भी और सतलोक में भी मिलते जुलते रहते हैं लेकिन दोनों संतों का भेद ओर कोई नहीं जानता। न कोई देवी देवता, न ईश्वर न ब्रह्म न पारब्रह्म और न महाकाल पुरुष कोई भी नहीं जानता,  और यह धरती कभी गुप्त संत से खाली नहीं रहती। जब तक एक भी जीव इस धरती पर रहेगा संत यहां रहेंगे। इस सृष्टि को संभारने के लिये ।

जयगुरुदेव 
sant bodh

Baba jaigurudev ki amratvani


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ