*बाबा जयगुरुदेव की अमृतवाणी*
आलसी मत बनो। जो आलस करते हैं उनको चाहिए कि इस आदत को धीरे -धीरे बदलें। आलस और नींद सतायेगी तो भजन नहीं कर सकोगे।
जो मनुष्य हाथ पर हाथ रखकर बैठा रहता है उसमें ताकत नहीं आती और दिनों दिन दुर्बल और डरपोक बनता जाता है। कर्मो का चक्कर उसे गिरा देता है।
जो मनुष्य जिस दर ज्यादा काम करने का आदी होता है उतनी उसमें ताकत भी ज्यादा आती है। यह जीवन अनमोल है उसे यूं ही नहीं गंवाना चाहिए।
जो मनुष्य अपना काम अपने आप करना चाहता है और करने लगता है तो मालिक उसका साथ देता है, मदद करता है। जो अपना काम नहीं करता, कुदरत भी उसका साथ नहीं देती। मालिक की तरफ से मदद उन्हीं लोगों को मिलती है जो अपना काम करते है।।
उन भक्तों के पास कौन सी शक्ति होती है जो भगवान को वहीं खड़े- खड़े प्रकट कर लेते हैं। यह सिर्फ ख्याल की परिपक्वता और इरादे की मजबूती का असर होता है कि भगवान झट सामने आ खड़े होते हैं।
लोग भगवान- भगवान कहते है।। बड़ी- बड़ी ऊँची आवाजों से पुकारते है। कि भगवान तू आ, भगवान तू आ, । उसे युग- युग प्रकट होने के वायदे याद दिलाते हैं परन्तु हिम्मत इतनी नहीं होती कि संसार की थोड़ी सी दुश्मनी का मुकाबला कर सकें। निन्दा का मुंह देखते ही घबड़ाकर रोने लगते है, और भक्ति को छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
ऐसे लोगों से भगवान भी करोड़ों कोसों की दूरी पर रहते है। क्योंकि वो जानते हैं, कि किस दर्जे का वह भक्त है।
ईश्वर कोई अनजान नहीं है कि उसे कोई जबानी जमा खर्च से रिझा लेवे। उसके रास्ते में भी कुर्बानी की जरूरत है।
जो लोग भगवान के भक्त भी बनना चाहते हैं, और साथ ही संसार के लोकलाज और निन्दा स्तुति से भी घबड़ाते हैं उनकी मिसाल उस स्त्री की सी है जो नाचना भी चाहती है और घूंघट भी लम्बा निकालती है।
देहात के लोग कहा करते हैं, नाचने लगी फिर घूंघट कैसा ? या जब नदी में कूद पड़े तो फिर बरसात की बूंदा बांदी का भय कैसा ?
इस प्रकार जब तुम भक्ति के मार्ग पर चल पड़े हो तो तुम्हें लोक लाज का भय त्याग देना चाहिए। भक्ति के मार्ग में सफलता प्राप्त करने के लिए जीव का सच्चा और असली सहायक गुरु है।
संसार में कोई मनुष्य किसी की लाख सहायता करे, लाख किसी कुछ दे फिर भी उसकी शिकायते दूर नही होंगी।
गुरु की दया से जीव की तमाम इच्छाएं और कामनाएं सदा के लिए पूर्ण हो जाती हैं।
और उसे सांसारिक वस्तुओं की ख्वाहिश नहीं रहती।
एक महात्मा जी अपने प्रेमियों को और जो लोग भी आ जाते थे उनको समझाते थे कि जिसका यह देश है, जिसने आपको यह मनुष्य शरीर दिया उसने आप पर बड़ी दया कृपा की ।
इस शरीर की रक्षा के लिए उसने सामान दिए तो उसके शरीर को पाकर उसकी भी याद करो। ऐसा नहीं कि हम उसके एहसान को भूल जायें। उसने कोई बनधन नहीं लगाया, दिया सब कुछ ।
महापुरुष कहते हैं कि घाट पर बैठो। हमेशा पूरा विश्वासऔर आस्था होनी चाहिए कि जो महात्मा कहते हैं वह सही है। वो हर तरह का बोध कराते हैं। देखने का, सुनने का, समझने का । लेकिन तुम उसे भूल जाओगे तो वह सब देख रहा है कि तुम उसके देश में गड़बड़ी पैदा करते हो। उसी के देश से निकलकर तुमको जाना है। वह तुमको रोकेगा, खड़ा करेगा और कहेगा कि जो कुछ एकत्र किया है वह इधर लाओ। वह तुम पर नाराज होगा। इसीलिए आप भी महापुरुषों को साथ रक्खो, उन पर विश्वास रक्खो। साथ रखोगे तो धोखा नहीं खाओगे ।
वह सन्तों के पीछे पीछे घूमता रहता है । आप अपनी मर्जी से सब कुछ कर रहे हो तो धोखा खा जाओगे।
वो महापुरुष तो यह सिखाते नहीं हैं कि तुम गलत काम करो पर अब तुम गिर गए, यहां फंस गए तो वह क्या करेगा। आप अपनी इच्छा से गिर गए।
प्रेमी- प्रेमी लड़ जाते हैं। वह कपट का प्रेमी है बनावटी प्रेमी है।
इस बात की परख होनी चाहिए कि कौन सच्चा प्रेमी है । इसी तरह से परिवार में, समाज में बिरादरी में सच्चा प्रेम रक्खो। कपट करोगे तो धोखा खा जाओगे, धोखा खा गए। भजन, सुमिरन, ध्यान से मन गिर गया, उधर उलझ गया।
होशियार रहो। तुमको समझाया जाता है कि यह संसार ठग है तो तुम्हें होशियार रहना चाहिए। जैसे ही भजन छूटा बस तुमको फुसला लिया और तुम फंस गए।
जो बातें सत्संग में सुनो एक-एक बात को याद करते रहो। उससे यह होगा कि आपको भजन ध्यान में मदद मिलेगी और बाहर काम काज में भी मदद मिलेगी और अगर भूलोगे तो भजन तो बनेगा नहीं और घर परिवार मकड़ी का जाल है उसी मकड़ जाल में फंस जाओगे ।
वचन याद करते रहोगे तो अन्तर कमाई भी करोगे और बाहर अपना काम काज मेहनत ईमानदारी से करते रहोगे तो फंसोगे नहीं।मनुष्य धन दौलत कमाता है सामान इकटठा करता है, घर परिवार बसाता है फिर मोह ममता में फंस जाता है।
अगर भजन, ध्यान, सुमिरन की तरफ तुम्हारा ध्यान लगा रहेगा तो फंसोगे नहीं, वचनों को याद करते रहोगे और तुम्हारी डोर अन्तर में लगी रहेगी। बाहर का काम किया, जब समय मिला सुमिरन पर बैठ गए, कभी भजन पर बैठ गए कभी ध्यान करने लगे।
जयगुरुदेव ◆
 |
Jaigurudev Amratvani |
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev