जय गुरु देव
सत्संग वचन सार,
दिनांक 29/03/19
बाबा जयगुरुदेव आश्रम रतलाम
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जब उस मालिक की दया होती है, तब सत्संग मिलता है। उसकी दया से ही उसके प्रेमियों से मुलाकात होती है।
सत्संग में परमार्थी चाह रखकर आना चाहिए। जैसे छोटे बच्चे को कोई चीज ज्यादा पसन्द होती है तो वह बार बार उसी की मांग करता है। लेकिन पिता को मालूम रहता है कि अगर उसकी इच्छानुसार चीज दे दी जाय तो बीमार हो जायेगा, इसका ही नुकसान होगा। फिर पिता को भी इसका दुःख होगा।
घर आए मेहमान का स्वागत सत्कार बहुत बड़ा धर्म है। भाव से अतिथि सत्कार करना चाहिए। सेवा करना चाहिए। सेवा करने वाले लोगों को बीमारियां नहीं लगती या कम लगती हैं।
जिन बच्चियों (माताओं) के पेट में बच्चा अा जाए, उनको सेवा भाव रखना चाहिए, रोजाना भजन ध्यान करना चाहिए। होने वाले बच्चे पर संस्कार पेट से ही पड़ना शुरू हो जाते हैं।
इस समय पर कलियुग में परमार्थी डगर पर चलना खांडे की धार पर चलने के बराबर है। थोड़ा सा चूके तो बस गिरने में क्या देर लगती है। इसलिए बराबर सत्संग, बराबर सेवा जरूरी है।
लोग मकान बनाते हैं, खेती करते हैं तो बहुत से जीव जन्तु मर जाते हैं तो कर्म तो लगेंगे। व्यापार करते हो, नौकरी करते हो, तो कर्म तो वहां लगते ही हैं। तो बोझा तो बढ़ेगा...
कैसे आगे ऊपर चढ़ोगे बोझ के साथ ।
इसलिए सत्संग... इसलिए भजन... इसलिए ये सेवा। समझना चाहिए। अपने हित की बात है। दया लेने का तरीका तो होता ही है।
...... कई बार सत्संग से भी लोग पूरा लाभ नहीं ले पाते हैं। सुनने भी बराबर आते हैं लेकिन वचनों पर अमल नहीं करते। क्या कहा गया, उस पर चिन्तन मनन नहीं करते। फायदा तो तभी पूरा मिलता है जब वचनों को जीवन में उतारा जाय....।
नामदान लेने के बाद भी लोग जल्दी विश्वास नहीं कर पाते। वही पेड़, पत्थर पूजने में अनमोल समय गंवा देते हैं...हाथी की सवारी के बाद फिर गधे पर सवार....।
..... आप इसी संसार में कांटों के बीच में गुलाब, कीचड़ में कमल की तरह रहो। आप क्यों इसमें जलते हो?... किसी का हो सके तो भला कर दो। सहयोग कर दो। लेकिन बुरा मत करो, बुरा मत चाहो।
देखो ! हमारा आश्रम उज्जैन में है। वहां अस्पताल भी है। वहां लोगों की बीमारियां ठीक हो रहीं हैं पुरानी जो अपनी चिकित्सा पद्धति है उससे।
इस मनुष्य शरीर में बहत्तर हजार नसें हैं। उन्हीं की जानकारी कराकर वहां डॉक्टर भी तैयार किए जा रहे हैं। हम तो चाहते हैं कि घर घर में डाक्टर तैयार हो जाएं।
नाम के लिए नहीं, काम के लिए काम करना चाहिए।
जय गुरु देव
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