*Vakt Ka Sandesh*


*【द्वितीय अध्याय युग परिवर्तन का 】*
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शंखनाद उज्जैन में गूंजा
सतगुरु का आगमन हुआ ।
द्वितीय अध्याय आरंभ हुआ
अब यहीं गुरु का भवन हुआ ।।


अल्पबिराम के बाद ये देखो
क्या अद्भुत आगाज हुआ ।
नाम अमिय रस बरसाने को
धरती पर सरताज हुआ ।।


चरण दूसरा युग परिवर्तन का
उज्जैन धरा से शुरु हुआ ।
अविरल धार गुरु भक्ति से
साधक सिद्ध हो गुरु हुआ ।।


परिवर्तन अब तो निश्चित है
इसे कोई रोक ना पायेगा ।
है बाबा जी का अटल बचन
कलयुग निश्चित ही जाएगा ।।


मित्रों अब दिल्ली दूर नहीं
परिवर्तन तो अब निश्चित है ।
बाबा  जी की हर वाणी का
पल निश्चित और सुनिश्चित है ।।


ऐसा कोहराम मचेगा अब
यह सारी दुनिया रोएगी ।
अपने दुष्कर्मों के छीटे
किस साबुन जल से धोएगी ।।


यह धरती डगमग डोलेगी
मीनारें ढह-ढह जाएंगी ।
मलबे का ढेर लगा होगा
लाशें भी निकल न पाएंगी ।।


जो मांसाहार किया जग ने
मानव मंदिर नापाक किया ।
वह मानवता की छाती थी
जिसको दुनिया ने चाक किया ।।


बदला तो उसका देना है
कोई ना बचने पाएगा ।
युग परिवर्तन का संहारक
वह मंजर अब दिख जाएगा ।।


रणचंडी हाथ मसाल लिए
पूरी दुनिया में घूमेगी ।
फिर पीकर खून पापियों का
वह मस्ती में अब झूमेगी ।।


मानव से कर्मों का हिसाब
पहले यह कलयुग मांगेगा ।
कलयुग तो स्वयं काल ही है
उससे कोई क्या भागेगा ।।


शिव तांडव करने वाले हैं
अब डमरू बजने वाला है ।
जागो जागो दुनिया वालों
अब वक्त बदलने वाला है ।।


पापी दुष्कर्मी धरती पर
कोई ना रहने पाएँगे ।
बचेंगे वो ही साधक जन
जो गुरु से लगन लगाएँगे ।।

उज्जैन धरा पर गुरु कृपा से
नाम की वर्षा होती है ।
सत्संग की गंगा बहती है
सब के पापों को धोती है ।।


आवाहन सारी दुनिया को
इस दर पर सारे आ जाओ ।
तौबा कर लो दुष्कर्मों से
गुरु का आश्वासन पा जाओ ।।


मेरी हाथ जोड़कर विनती है
इस दर पर सबको आना है ।
पापों से तौबा करना है
गुरु कार्यों में लग जाना है ।।


जयगुरुदेव नाम मालिक का
सारी दुनिया जाने है ।
यह द्वितीय अध्याय गुरु का है
जिसमें हम सब दीवाने हैं ।।


द्वितीय अध्याय का रंग गुलाबी
अपना असर दिखाता है ।
ज्यों कीचड़ में कमल खिला हो
ऐसा नजर में आता है ।।


अब कलयुग निश्चित जाएगा
अब सतयुग की अगवानी है ।
है बाबाजी का अटल वचन
नहीं इसकी कोई सानी है ।।


सत्संग की पावन गंगा में
जो अपना तन मन  धोएगा ।
गुरु कृपा से साधन भजन करेगा
वह कभी नहीं फिर रोएगा ।।


इस बीच का समय है जो
सब गुरुभक्ति में पार करो ।
नफरत हिंसा का त्याग करो
एक दूजे से सब प्यार करो ।।


गुरु के जो कार्य अधूरे हैं
वो पूरे कर दिखलाना है ।
दुनिया भर की हर संगत को
अब एक साथ जुड जाना है ।।


अब चौथा महायज्ञ होगा
दसकोटि साध जन आएंगे ।
भारत का मध्य बिंदु होगा
जहां मिल सतयुग को बुलाएंगे ।।


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जयगुरुदेव ●




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