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प्रश्न- ८४.
*स्वामी जी! युग के साथ मन की हालत भी बदलती है या चारों युग में एकसा रहता है ?*
उत्तर- सतयुग में मन हाथी के समान ताकतवर था, त्रेता में घोड़े के समान रह गया, द्वापर में बकरी और कलयुग में चींटी के समान निर्बल हो गया। मगर सुरत अब कलयुग में नाम की धुन आसानी से पकड़ लेती है और सहज ही इसका उद्धार हो जाता है।
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प्रश्न ८५.
*स्वामी जी! सच्ची मोक्ष कहां मिलती है?*
उत्तर- मानसरोवर में स्नान करने के बाद सुरत को कभी जन्म नहीं मिलता, और वह सुरत शब्द रूप होना शुरु हो जाती है। सत्तलोक पहुंचकर बिल्कुल शब्द रुप हो जाती है।
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प्रश्न ८६.
*स्वामी जी! जिसको सन्त न मिले हों उसको क्या करना चाहिए और वक्त के सतगुरु की क्या जरूरत है?*
उत्तर- जिस जीव को संत ने नहीं अपनाया है उसको अपने वक्त का सतगुरु तलाश करना चाहिए। जो सन्त पहिले हो चुके, अगर उनके हाथ डोर नहीं है कुछ नहीं कर सकते, नये जीवों को नये सतगुरु की जरूरत है।
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प्रश्न ८७.
*स्वामी जी! सतगुरु के अपनाये जीवों को उनके जानशीन अपनाते हैं या नहीं, और जो जीव सतगुरु के जानशीन का संग करें या विरोध करें उसका क्या हाल होगा ?*
उत्तर- जैसे कि एक जमींदार की ब्याहता औरत बाद उस जमींदार के उसके बेटे को नहीं ब्याही जा सकती। इसी तरह जिसको सतगुरु ने अपना लिया उनके जानशीन उस जीव को नहीं अपनाते, मगर जो जीव उनसे प्रीत रखते हैं ज्यादा फायदा उठाते हैं, जो विरोध करते हैं दण्ड के अधिकारी होते हैं और सतगुरु उनसे नाराज हो जाते हैं ।
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प्रश्न ८८.
*स्वामीजी! सत्संगी को कैसे कर्म करने चाहिए ?*
उत्तर- संतमत के सत्संगी और अभ्यासी को निस कर्म बनना चाहिए, क्योंकि कर्म भुगतने के लिए देह धरनी पड़ती है और बेड़ी सोने की भी बुरी और लोहे की भी बुरी। शुभ करम करें मगर फल की आसा रख के न करें।
शेष क्रमशः पोस्ट न. 16 में पढ़ें 👇🏽
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जयगुरुदेव ● नाम प्रभु का
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Jaigurudev