*जय गुरु देव*
सन्त महात्मा सबके हितैषी होते हैं और सबको निःस्वार्थ प्रेम करते हैं और कहते हैं कि अमीर , गरीब , छोटे , बड़े , हिन्दू - मुसलमान का विचार तो आपका अपना भ्रम है , उनकी निगाह में तो सभी उस एक मालिक के अंश हैं , अस्तु फकीर - महात्मा की मेहनत समस्त रूहों और मानव जाति के लिए होती है और जो सौभाग्यशाली जीवात्माएँ उनके नजदीक पहुँच जाती हैं वे उनके बेइन्तहा प्यार के सागर में डूबकर हमेशा के लिए उनके ही होकर रह जाते हैं यानी उनकी अटक-भटक खत्म हो जाती है।
कभी कभी विचार आता है कि ऐसे बहुत लोग रहे जो परम् सन्त परम् पूज्य स्वामी बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के पास जाने और रहने का सौभाग्य तो पाये लेकिन उनको पहचानने की कृपा प्राप्त नहीं कर पाये । तभी तो शंका में रह गये और आज भी शंका में ही जी रहे हैं जबकि हमारे आराध्य देव गुरु महाराज और परम् - पूज्य स्वामी जी महाराज ने बहुत बार कहा था कि प्रेमियों शंका मत करो । जो शंका करते हैं, उनका नुकसान होता है ।
इसी प्रसंग में वे कृष्ण भगवान और अर्जुन का दृष्टान्त भी सुनाया करते थे कि शंका माने पतन , यह जानकर भी कि शंका करने वालों का नुकसान होता है , हम सत्य से जुड़ नहीं पाते ।
विडम्बना तो यह है कि हम खुद तो शंका में जीते ही हैं अन्य निर्दोष लोगों को भी जाने अनजाने में शंका रूपी अन्धकार में डुबोने का अक्षम्य अपराध कर बैठते हैं, तभी तो यह सुनने में आता है कि पता नहीं बाबा जी ने श्री उमाकान्त तिवारी जी के लिए कहा था कि नहीं ? और यदि कहा भी था तो उस समय की संगत की पत्र-पत्रिकाओं में क्यों नहीं छपा ? जबकि हकीकत कुछ अलग है ।
हम यह तथ्य को नहीं जान पाते कि पहली बात तो कोई संवाददाता बाबा जी के साथ रिपोर्टिंग के लिए हमेशा साथ चलता नहीं था, दूसरी बात मेरे हस्तलिखित सत्संग अंश कुछ छपते भी थे तो सोचने की बात तो यह है कि कौन अपने स्वामी, पिता और मालिक की विदाई की चर्चा को प्रकाशित करने में रुचि लेगा ? कौन उस बेहद दुःखद और अनचाहे बेबसी के प्रसंग को बे समय हाइलाइट करना चाहेगा ? फिर भी जब मैंने अपने हाथ के रिकॉर्ड किये हुए मालिक के उन वचनों को प्रकाशित कराने हेतु भेजना चाहा तो उस समय के तथाकथित वरिष्ठ लोगों ने रोक दिया था । लेकिन हम को इस शाश्वत सत्य को नहीं भूलना चाहिए कि समय सत्य के अलावा सब कुछ को खा जाता है अर्थात् सत्य ही रह जाता है बाकी सारी भ्रान्तियाँ वक्त के साथ खत्म हो जाती हैं।
निश्चित रूप से यह लम्बा विषय है , सत्संग का समय हो चुका है शेष फिर कभी .. .. ..
( -एक गहन सत्संगी द्वारा )
जयगुरुदेव ●
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Jaigurudev