*परम् पूज्य स्वामी जी व महाराज जी का आदेश-**प्रार्थना रोज होना चाहिए|* (post no.5)

◆ Guru charan kamal ◆
    जयगुरुदेव प्रार्थना 24
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गुरु चरण कमल बलिहारी रे...
मेरे मन की दुविधा टारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।१।।

भव सागर मे नीर अपारा,
डूब रहा नही मिले किनारा।
पल मे लियो उबारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।२।।

काम, क्रोध, मद, लोभ लुटेरे,
जनम जनम के बैरी मेरे।
इनको दीन्हा मारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।३।।

द्वैत भाव सब दूर कराया,
पूरण ब्रह्म एक दरशाया।
मानुष देह सुधारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।४।।

ज्योति जुगत गुरुदेव बताई,
अगम शान्ति सबके मन आई।
घट - घट जोत निहारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।५।।



◆ Guru charno me apne laga ◆
    जयगुरुदेव प्रार्थना 25
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गुरु चरणों मे अपने लगा लीजिये,
मेरे भाग्य को स्वामी जी जगा दीजिये।।१।।

मो सम पापी जगत कोई नाही,
मेरे पापों की गठरी जला दीजिये।।२।।

काम, क्रोध, मद, लोभ सतावे,
इन दुष्टों को स्वामी जी भगा दीजिये ।।३।।

काल और माया हमें भरमावें
इन दोनों से प्रभु जी बचा लीजिए।।४।।

तुम्हारे दरश की ये अखियां हैं प्यासी,
दर्शन देकर के प्यास बुझा दीजिये ।।५।।

बेन सुनन को श्रवण हैं व्याकुल,
अमृत भरी वाणी सुना दीजिये ।।६।।

रात दिवस मोहे नीन्द न आवे,
मुझे ऐसा दीवाना बना दीजिए।।७।।



◆ Guru bin koun ubarega ◆
    जयगुरुदेव प्रार्थना 26
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गुरु बिन कौन उबारेगा,
नाम बिन कौन सुधारेगा।।
भजन बिन कौन निस्तारेगा,
सरन बिन कौन सँवारेगा।।
बिरह बिन कौन पुकारेगा,
दर्द बिन कौन चितारेगा।।
शब्द बिन कौन सिंगारेगा,
संग बिन कौन निहारेगा।।
काल को कौन गारेगा,
कर्म किस भाँति हारेगा।।
संत कोई आन मारेगा,
भक्त कोई दोऊ जारेगा।।
काम सतसंग सारेगा।
जोई तन मन को वारेगा।।
सोई निज नाम धारेगा,
जगत को आन तारेगा।
जीव इक इक उबारेगा,
मान मद मोह टारेगा।।
सरन सतगुरु सम्हारेगा,
नाम पद सो निहारेगा ।।
सतगुरु जो सवारेगा,
सोई वह धाम पावेगा।।



◆ Guru sam koi dayaal jag naahi ◆
जयगुरुदेव प्रार्थना 27

गुरु सम कोई दयाल जग नाहीं।
पतित पुनीत दीन हित स्वामी
अशरण शरण सदाहीं।।
कर्मन के बस जीव सहें दुख
नाना विधि जग माहीं।
तिन उध्दार हेतु सतगुरु
जग में नित रूप बनाहीं।।
काम क्रोध मद लोभ मोह निशि
बासर जिनहीं चबाहीं।
तिनको करहिं आप सम सतगुरु
जो सतसंग में जाहीं।।
धन बल मन बल और बाहु बल
गुरु बल माहि समाहिं।
केवल एक भरोस नाम बल
देकर ताप नसाहीं।।
प्रगटहि नाम चारू चिन्तामणी
गुरु प्रताप घट माहिं।
तन मन से न्यारा होय खेले
काल कर्म भय नाहिं।।



◆ Guru bin melo man ◆
जयगुरुदेव प्रार्थना 28

गुरु बिन मैलो मन को धोई।।
जनम जनम का कालिख लागा,
मन निज शोभा खोई।
कोटी जतन कोई करि करि हारे,
कागा हंस न होई।
मन मलिन संग मैं हुई मैली,
साई संग कस 
होई।
यहि ते आज चलो मन मेरे,
जहां सतसंग गुरु होई ।
तू निर्मल होय निज घर जाना,
मैं गुरु चरण समोई।।

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◆ Ghat ghat me guru biraaj rahe ◆
    जयगुरुदेव प्रार्थना 29
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घट घट में गुरु विराज रहे
कोई देखन वाला देखें।
जन जन को गुरु पुकार रहे
कोई सुन ले तो गुरु भेटे।।
पर वह पथ किसका देखा
जो पहुँचावे निज देशा।
गुरु  बिन सब जीव भुलाय रहे
भटके चौरासी रीते।।
बड़ भाग्य जीव का जागे
तब आवे सतगुरु आगे।
सतसंग के बचन पियारे लगें
तब सुरत शब्द में पागे ।।
मूरख क्या जानही भेदा
गुरु को जिन मानुष देखा।
सतगुरु का वह सतरूप भला
ऐसे नर कैसे देखे।।
मेरी अरज सुनो गुरु दाता
मोहि एक तुम्हारी आशा।
मेरे अन्दर आप बिराज रहो
मैं जयगुरुदेव भरोसे।।

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जयगुरुदेव ★


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