*परम् पूज्य स्वामी जी व महाराज जी का आदेश-**प्रार्थना रोज होना चाहिए|* (post no.5)
जयगुरुदेव प्रार्थना 24
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मेरे मन की दुविधा टारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।१।।
डूब रहा नही मिले किनारा।
पल मे लियो उबारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।२।।
जनम जनम के बैरी मेरे।
इनको दीन्हा मारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।३।।
पूरण ब्रह्म एक दरशाया।
मानुष देह सुधारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।४।।
अगम शान्ति सबके मन आई।
घट - घट जोत निहारी रे...
गुरु चरण कमल बलिहारि रे...।।५।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 25
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मेरे भाग्य को स्वामी जी जगा दीजिये।।१।।
मेरे पापों की गठरी जला दीजिये।।२।।
इन दुष्टों को स्वामी जी भगा दीजिये ।।३।।
इन दोनों से प्रभु जी बचा लीजिए।।४।।
दर्शन देकर के प्यास बुझा दीजिये ।।५।।
अमृत भरी वाणी सुना दीजिये ।।६।।
मुझे ऐसा दीवाना बना दीजिए।।७।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 26
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नाम बिन कौन सुधारेगा।।
भजन बिन कौन निस्तारेगा,
सरन बिन कौन सँवारेगा।।
बिरह बिन कौन पुकारेगा,
दर्द बिन कौन चितारेगा।।
शब्द बिन कौन सिंगारेगा,
संग बिन कौन निहारेगा।।
काल को कौन गारेगा,
कर्म किस भाँति हारेगा।।
संत कोई आन मारेगा,
भक्त कोई दोऊ जारेगा।।
काम सतसंग सारेगा।
जोई तन मन को वारेगा।।
सोई निज नाम धारेगा,
जगत को आन तारेगा।
जीव इक इक उबारेगा,
मान मद मोह टारेगा।।
सरन सतगुरु सम्हारेगा,
नाम पद सो निहारेगा ।।
सतगुरु जो सवारेगा,
सोई वह धाम पावेगा।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 27
पतित पुनीत दीन हित स्वामी
अशरण शरण सदाहीं।।
नाना विधि जग माहीं।
तिन उध्दार हेतु सतगुरु
जग में नित रूप बनाहीं।।
बासर जिनहीं चबाहीं।
तिनको करहिं आप सम सतगुरु
जो सतसंग में जाहीं।।
गुरु बल माहि समाहिं।
केवल एक भरोस नाम बल
देकर ताप नसाहीं।।
गुरु प्रताप घट माहिं।
तन मन से न्यारा होय खेले
काल कर्म भय नाहिं।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 28
मन निज शोभा खोई।
कोटी जतन कोई करि करि हारे,
कागा हंस न होई।
साई संग कस होई।
यहि ते आज चलो मन मेरे,
जहां सतसंग गुरु होई ।
मैं गुरु चरण समोई।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 29
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कोई देखन वाला देखें।
जन जन को गुरु पुकार रहे
कोई सुन ले तो गुरु भेटे।।
जो पहुँचावे निज देशा।
गुरु बिन सब जीव भुलाय रहे
भटके चौरासी रीते।।
तब आवे सतगुरु आगे।
सतसंग के बचन पियारे लगें
तब सुरत शब्द में पागे ।।
गुरु को जिन मानुष देखा।
सतगुरु का वह सतरूप भला
ऐसे नर कैसे देखे।।
मोहि एक तुम्हारी आशा।
मेरे अन्दर आप बिराज रहो
मैं जयगुरुदेव भरोसे।।
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Jaigurudev