*【 स्वामी जी ने कहा 】*
● कोई आज नामदान ले ले तो वो सत्संगी नहीं हो जाता। पांच दस साल बाद कोई आये तो वह सत्संगी नहीं है। इस बीच में पता नहीं क्या समय निकल गया। सत्संग सुनकर सत्संग का आचरण करता है तब सत्संगी कहलाता है। वैचारिक क्रान्ति भारत में निश्चित है। जब वैचारिक क्रान्ति खड़ी हो जायेगी तो उससे क्या - क्या सफाया होगा यह आपको मालूम नहीं।
● साधकों को महात्मा कंट्रोल किये रहते हैं अतः वो श्राप किसी को नहीं देते। श्राप दे दे तो उसका भारी नुकसान हो जाय। जो साधक होते हैं उनमें बहुत अधिक शक्ति हो जाती है।
● जब आफत आती है तो जो विचारशील और बुद्धिमान होते हैं वे उसे मौज समझकर गुरु के आश्रित हो जाते हैं फिर उनकी बचत हो जाती है।
● अभी तो मैं बुला रहा हूं और तुम नहीं आ रहे हो। एक वक्त आएगा जब मिलने के लिए हेलीकाप्टर की लाईन लग जाएगी। - १९७४
● लोग सबकुछ तय करके आते हैं आज्ञा मांगने, सब तय कर लिया तो कर लो। पीछे जब कुछ खराब होता है तो कहते हैं कि आपकी आज्ञा लेकर किया था फिर ऐसा क्यों हुआ। दोष गुरु को देते हैं। जब सब कुछ तय कर लेते हो तो आज्ञा किस बात की ?
*◆◆ क्या आपको पता है कि- ◆◆*
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★ जब कोई बच्चा इस संसार में जन्म लेता है तब मौत तक उसके कितने स्वांस लेने हैं उसकी संख्या निश्चित रहती है। कोई भी न उसे घटा सकता है और न बढ़ा सकता है।
★ भजन करने वाले को ऐसे व्यक्तियों से अधिक मेल जोल नहीं करना चाहिए जो अशुद्ध आहार करते हैं। संगदोष से भारी पर्दे जीवात्मा पर चढ़ते हैं।
★ गुरु का इंसानी स्वरूप जो यहां है, वही अन्तर में भी मिलता है। फर्क शरीर जड़ है और उधर सूक्ष्म शरीर में नूरी स्वरूप होता है। स्वर्ग में, बैकुण्ठ में, ईश्वर धाम में, ब्रह्म धाम में सब स्थानों में गुरु मिलते रहते हैं साधक को निरन्तर देखते रहते हैं। यदि वे ऐसा न करें तो काल और माया के चक्कर में जीव कहीं भी फंस सकता है।
★ आत्मा जो दोनों आंखों के पीछे इस शरीर में बैठी हुई है वह प्रकाश का एक कतरा है। उसका प्रकाश जब पैरों से सिमट कर आंखों के पीछे आता है। तो प्रकाश का समूह बन जाता है फिर उसकी आंख खुल जाती है। जीवात्मा में एक आंख है। उसी को दिव्य द्रष्टि कहते हैं। जब वह खुल जाती है तो करोड़ों मील की चीज बिल्कुल साफ सामने दिखाई देती है।
★ मन में हर वक्त सुमिरन करने से मन पर मैल नहीं चढ़ता, निर्मल रहता है। निर्मल होकर मन शब्द धुन को पकड़ता है। ‘शब्द धुन’ अथवा ‘नाम’ से बड़ी दुनिया में कोई चीज नहीं है। शब्द ही गुरु है, शब्द ही परमात्मा है।
*★★ सत्संग वचन ★★*
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● आप चुप रहो, कुदरत सब इंतजाम कर देती है। वह तो चेतन हे सजा दे देगी। आप का रास्ता तलवार से भी ज्यादा तेज है। प्रेम प्यार से रहो, विचार से रहो। इधर सत्संग हो रहा था उधर झटका पटकी हो गई। तुमको उधर जाने की क्या जरुरत थी ? बर्दाश्त करना चाहिए था। आप अपनी चीज काम में लो। दूसरों का क्यों खरीदते हो ? उसका असर तुम पर होता है। क्रोध चाण्डाल होता है। यह मैंने इसलिये कहा क्योंकि इसकी जरुरत थी।
● भजन सुमिरन रोज रोज करें। सबसे उपराम रहना और सतगुरु से प्रीति अन्तर में करना यह बहुत जरुरी है। अन्तर में शब्द धुन की आवाज में जीवात्मा को मन को सचेत करके लगाये रक्खो और परखो कि कौन सी आवाज आ रही है। साथ ही डरते रहो कि तुम्हें इस संसार मे नही रहना है, यह देह स्वप्न मात्र है। जब देह झूठी है तो दुनिया का सब सामान झूठा है। नामधुन सच्ची है उसे पकड़ो। अगर रोज शब्द से नाम से सच्ची प्रीति करोगे तो मन से निकल जाएगी। हर वक्त गुुरु के वचन के अन्दर रहने की आदत डालनी चाहिए।
● साधकों को सत्संग सचेत होकर सुनना चाहिए क्योंकि बहुत सी बारीक जो चीजें आती हैं वो जब समझाई जाती हैं तो जब बारीक नहीं रहोगे तो बारीकी समझ नहीं सकते हो। और जब लगन लगी रहेगी तो फिर उस बारीकी को समझ जाओगे। बारीकी में ही काम बन जाता है।
- युग महापुरुष बाबा जयगुरुदेव जी महाराज
••• जयगुरुदेव •••
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