*विचार करने योग्य*

*जयगुरुदेव*
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◆ अनुभवियों का कहना है कि कौवे में पवित्रता नहीं होती । जुआरी में सच्चाई, सर्प में शान्ति, नपुंसक में धैर्य और शराबी में धर्म का चिंतन नहीं देखा या सुना जाता है।

◆  गलत सलाह देने से राजा का विनाश हो जाता है। स्त्रीसंग से सन्यासी का नाश हो जाता है। अधिक स्नेह देने से पुत्र, ज्ञान न पाने से ब्राह्मण, कुपुत्रों से वंश, बुरे लोगों के संग से आचरण, निष्ठुरता से मित्रता, अन्याय से उन्नति, दूर रहने से स्नेह, गर्व करने से स्त्री तथा लापरवाही से खेती नष्ट हो जाती है। 

◆  मूरख कौन है? जो बिना बुलाए दूसरे घर में जाता है, बिना पूछे बहुत बोलता है और अविश्वासी पर विश्वास कर लेता है, मूरख है।

◆  जैसे फूल में सुगंध होती है, तिलों में तेल, काठ में अग्नि, दूध में घी और ईख में गुड़ होता है, वैसे ही शरीर में आत्मा और परमात्मा का वास होता है।
 
जैसे जतन करने से फूलों में गंध, तिलों में तेल, काष्ठ में अग्नि, दूध में घी और ईख में गुड़ मिल जाते हैं, वैसे ही यत्न करने से शरीर में आत्मा और परमात्मा दोनों की प्राप्ति संभव है।
 
◆  यदि अपच हो तो जल पीना औषध के समान लाभकारी होता है, भोजन पच जाय तो जल बल देनेवाला होता है, भेजन के बीच में अमृत के समान तथा भोजन के अंत में जल पीना विष के समान हो जाता है। 

◆  मनुष्य के आचरण से उसके खानदान को पहचाना जाता है। बोलचाल से देश का, किसी को मान-सम्मान देता हो तो उसके प्रति उसके ब्रेम का और शरीर से उसके भोजन का पता चल जाता है।


*शाकाहारी परिशिष्ठ*
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●  अशुद्ध आहार और जीव हत्या आध्यात्मिक तरक्की को इस प्रकार रोक लेते हैं जैसे जहर आदमी की सांस को रोकता है।

●  करोड़ो जीवात्माओं की चीख का असर, कहर बरपा देने वाला होता है। जीव हत्या ने किसका भला किया है ?
●  आज देश में अस्पतालों की कमी नहीं है। दवाओं की कमी नहीं है, और भी नई नई दवाएं बनती जाती हैं, लेकिन ये फायदा ही नहीं करतीं। क्योंकि आपने अशुद्ध आहार किया।

●  डॉक्टर जब किसी का चीर फाड़ करते हैं, खून मवाद निकलता है तो कितनी बार हाथ साबुन से धोते हैं, डिटॉल लगाते हैं। वे कहते हैं कि कीटाणु आ जाएंगे।

● जब आप  अशद्ध आहार करते हैं तब इन्ही जीवों का खून आपके शरीर में पहुंचता है। बीमारियों का भण्डार खुल जाता है।
भगवान ने हमें खाने के लिए बहुत कुछ दिया है। फल-सब्जी, दूध-दही, खूब उपलब्ध है। ये अच्छे और हानिरहित आहार हैं। 


*विचार करें*
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क्या कोई रोगी किसी पुराने जमाने के प्रसिद्ध हकीम या वैद्य से अपनी बीमारी का इलाज करवा सकता है ?
क्या कोई फरियादी पुराने जमाने के किसी न्यायमूर्ति न्यायाधीश से अपने मुकदमें का फैसला करा सकता है ?
क्या कोई स्त्री किसी पुराने जमाने के शूरवीर से ब्याह करके संतान उत्पन्न कर सकती है ? कदापि नहीं।
अगर ये बातें संभव नहीं तो कोई परमार्थ अभिलासी किसी गुजरे महात्मा का आश्रय लेकर परमात्मा में लीन कैसे हो सकता है ?

सन्त महात्मा अपने अपने जमाने में दुनिया में आये। जिन्होंने उनकी शरण ली उन्हें जन्म मरण से, आवागमन से मुक्त किया। समय पूरा होने पर सांसारिक शरीर को त्याग दिया और परमात्मा में समा गये।
परन्तु संसार छोड़ने से पहले अपना आध्यात्मिक काम दूसरे महात्मा को सौंप गये। अगर कोई ऐसा प्रेमी साधक नहीं मिला तो चुपचाप वापस अपने धाम चले गये जो सारी जीवात्माओं का निज घर है जिसे कहते हैं सचखण्ड, सत्तलोक।


यह धरती सन्तों से खाली नहीं है। जिज्ञासु को तलाश करनी चाहिए, निराश नहीं होना चाहिए। वो अनामी महापुरुष सब देखता रहता है और वो ऐसे व्यक्ति को सच्चे गुरु से मिलाप करा देता है।

जयगुरुदेव |

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