Kahani 22. दुनिया किसी के लिए नही रुकती

कहानी संख्या  22. *जयगुरुदेव अमृत वाणी*

एक राजा था जो अपनी प्रजा को बहुत प्यार करता था और अपने बाल बच्चों का भी बहुत ख्याल रखता था। पूरे घर परिवार की सम्हाल करता था। मतलब ये सब लोग उससे संतुष्ट थे और खुश थे।

राजा का समय पूरा हुआ तो धर्मदूत उसको लेने आये और ले जाकर धर्मराय के दरबार में खड़ा कर दिया। राजा ने धर्मराय से कहा कि आप ने मुझे बुला तो लिया,  मेरी प्रजा बहुत दुखी हो जाएगी,  मेरे बाल बच्चे घर परिवार वाले वाले बहुत दुखी होंगे उनकी देख-रेख कौन करेगा ?

धर्मराज हंसे और बोले कि राजन! कौन किसके लिए दुखी होता है।  दुनिया ज्यों की त्यों चलती है किसी के लिए नही रुकती।

राजा ने कहा कि- एक बार मैं अपनी प्रजा और परिवार के बीच जाना चाहता हूं।  यह देखना चाहता हूं कि वो मेरे लिए कितने दुखी हैं।

धर्मराय ने कहा कि ठीक है, तुम जाओ।  तुम सबकी बात सुन सकोगे और तुम्हें कोई  देख नही पायेगा।  सबकी बात सुनकर तुम वापस लौट आना।

राजा पहले अपने नगर में गया,  उसने देखा कि प्रजा जैसे पहले थी वैसे अब भी है। उसकी कोई विशेष चर्चा हो नही रही थी।  एक जगह कुछ लोग बैठे आपस मे बात कर रहे थे,  वह वहां जाकर खड़ा हो गया और उनकी बात सुनने लगा।

उनमें से एक ने कहा कि राजा मर गया,  अब देखो कौन राजा बनता है; वैसे वो आदमी अच्छा था।

दूसरा बोला कि जो राजा बनेगा वही अच्छा होगा।
तीसरा बोला कि हम तो प्रजा ही रहेंगे, जो राजा बनेगा वो बनेगा।  यह तो दुनिया है कि कितने राजे महाराजे चले गये वह गया तो कौन सी नई बात हो गयी।

राजा ने यह बात सुनी तो उसको बड़ा धक्का लगा और वह सोचने लगा कि मेरे जाने का गम इन लोगों को नहीं है, वह वहां से चला और अपने महल में पहुंचा।

महल में देखा तो वहां उसकी चर्चा कम, राजतिलक की चर्चा जोरों पर थी। मंत्रीगण कह रहे थे कि राजा साहब का छोटा भाई है उसको राजतिलक किया जाएगा।

वहां से चला तो रनिवास में पहुंचा। उसने देखा कि उसकी रानी सादे कपड़ों में बैठी है, उसका छोटा भाई भी वहां बैठा है और कुछ लोग ओर हैं।

वहां चर्चा यह हो रही थी कि भाई को राजा बना दिया जाय।  रानी से लोगों ने उसके विचार पूछे तो वह बोली 'जैसा आप लोग ठीक समझें वह करें,  जिसको जाना था वह तो चला ही गया वह तो वापस लौटेगा नहीं। मुझे आप लोगों की बात मंजूर है।'

राजा को यह सुनकर बड़ा धक्का लगा।  उसका सारा भ्रम टूट चुका था।  वह पहुंचा धर्मराय के दरबार में।धर्मराय हंसे और बोले कि जाना चाहोगे अपने राज्य में ?

 राजा बोला कि नहीं।  मुझे अब तो कुछ नहीं चाहिए न राज्य,  न घर-परिवार।  
मुझे अब ऐसी जगह भेज दीजिए,  जहां मैं एकदम अकेला रहूं भगवान का भजन करुं।

कहानी संख्या 21. पढ़ने की लिंक 


अगली कहानी पोस्ट 23. में पढ़ें ...👇

Amratvani.blogspot.com


ek-raja-ki-kahani
Jaigurudev kahani



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ