*Prarthnayen | प्रार्थनायें* (post no.10)

*जय गुरु देव*

परम् पूज्य स्वामी जी महाराज व महाराज जी का आदेश...
*प्रार्थना रोज होनी चाहिए एवं २-३ प्रार्थना -*
*सभी प्रेमियो को याद होनी चाहिए।*


*प्रार्थना 57.*
Lagao meri naiya satguru par.
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लगाओ मेरी नईया सतगुरु पार,
मे वही जात जग धार।
लगाओ मेरी नईया सतगुरु पार ।।१।।

तुम बिन नाहि कोऊ कड़ियार,
लगाओ डूबी खेप किनार।
लगाओ मेरी नईया सतगुरु पार ।।२।।

सहेली मत तू मन मै हार,
दिखाऊँ जग का वार और पार।
लगाओ मेरी नईया सतगुरु पार ।।३।।

चढ़ाऊँ सुरत ऊल्टी धार,
शब्द संग खेय उतारूँ पार।
लगाओ मेरी नईया सतगुरु पार ।।४।।

गुरु को धर ले हिये मंझार,
नाम धुन घट मे सुन झनकार।
लगाओ मेरी नईया सतगुरु पार ।।५।।

तरंगे उठती बारम्बार,
भंवर जहाँ पड़ते बहुत अपार।
लगाओ मेरी नईया सतगुरु पार ।।६।।

मैहर से पहुँची दसवे द्वार,
सतगुरु दीन्हा पार उतार।
लगाओ मेरी नईया सतगुरु पार ।।७।।


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*प्रार्थना 58.*
Likhne vale tu Hoke
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लिखने वाले तू होके दयाल लिख दे,
मेरे ह्रदय बिच सतगुरु का प्यार लिख दे।।

माथे पे लिखदे ज्योति गुरु की,
मेरे नेनो में गुरु का दीदार लिख दे।
मेरे ह्रदय बिच सतगुरु का प्यार लिख दे।।

जिव्या पर लिख दे नाम गुरु का,
कानों में शब्द झनकार लिख दे।
मेरे ह्रदय बिच सतगुरु का प्यार लिख दे।।

हाथो ऊपर लिख दे तू सेवा गुरु की,
तन मन धन उन पर वार लिख दे।
मेरे ह्रदय बिच सतगुरु का प्यार लिख दे।।

एक मत लिखना बिछड़ना गुरु का,
चाहे तू सारा संसार लिख दे।
मेरे ह्रदय बिच सतगुरु का प्यार लिख दे।।
लिखने वाले तू होक दयाल लिख दे।
मेरे ह्रदय बिच सतगुरु का प्यार लिख दे।।


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*प्रार्थना 59.*
Man re kyon guman ab
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मन रे क्यों गुमान अब करना ।।
तन तो तेरा खाक मिलेगा चौरासी जा पड़ना ।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

दीन गरीबी चित में धरना। 
काम क्रोध से बचना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

प्रीत प्रतीत गुरु से करना, 
नाम रसायन घट में धरना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

मन मलीन के कहे ना चलना, 
गुरु के वचन हिये में धरना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

यह मतिमंद गहे नही सरना, 
लोभ बढ़ाय उदर को भरना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

तुम मानो मत इनका कहना, 
इनका संग जगत बीच गिरना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

इस मूरख को समझ पकड़ना, 
गुरु के चरण कभी न विसरना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

गुरु का रूप नैनन में धरना, 
सुरत शब्द से नभ पर चढ़ना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।

जयगुरुदेव का नाम सुमिरना, 
जो वह कहें चित में धरना।
मन रे क्यों गुमान अब करना ।।


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*प्रार्थना 60.*
Man tu bhajo guru ka nam
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मन तू भजो गुरु का नाम...२
दया मैहर से नर तन पायो,
मत करना अभिमान, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

एक दिन खाली पड़ा रहेगा,
जाय बसे शमशान, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

जो धन तुझको दिया गुरु ने,
इससे कर कछु काम, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

अंत समय यूँही लुट जायेगा,
संग ना जाये छदाम, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

यह संसार रैन का सपना,
आये किया विश्राम, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

चार दिना के संगी सब हैं,
अन्त ना आवें काम, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

तासे चेत करो सत संगत,
भजन करो आठो याम, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

यही भजन तेरे संग चलेगा,
पावेगा आराम, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

दया मैहर सतगुरु से लेकर,
चलो त्रिकुटी धाम, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

काल करम से बन्धन छूटे,
मिले पुरुष सतनाम, 
मन तू भजो गुरु का नाम।।

*जय गुरु देव...*


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*प्रार्थना 61.*
Keso khel racho
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कैसो खेल रचो मेरे दाता, 
जित देखूं उत तू ही तू।
कैसी भूल जगत में डारी, 
साबित करनी कर रहयो तू।।

नर नारी में एकहि कहिये, 
शेष जगत में दर्शे तू।
बालक होकर रोवन लागो, 
माता बन पुचकारी तू।।

चींटी में छोटो बन बैठो, 
हाथी में ही मोटो तू।
होय मगन मस्ती में डोले, 
महावत बन के बैठ्यो तू।।

राजघरा राजा बन बैठो, 
भिखयारों में मंगता तू।
होय झगड़ालू झगड़त लाग्यो, 
फौजदार फौजा में तू।।

देवन में देवता बन बैठ्यो, 
पूजा में है पुजारी तू।
चोरी करे जब बाजे चौरटो, 
खोज करन में खोजी तू।।

राम ही करता राम ही भरता, 
सारे खेल रचायो तू।
कहत कबीर सुनो भाई साधु, 
उलटि खोज कर लायो तू।।


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*प्रार्थना 62.*
Bhakti dan guru dijiye
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भक्ति दान गुरु दीजिए,
देवन के देवा हो।
चरण कंवल विसरे नहीं,
करिहौ पद सेवा हो।।

सुख सम्पत्ति परिवार धन,
सुन्दर वर नारी हो।
सुपनेहु इच्छा न उठे,
गुरु आन तुम्हारी हो।।

धर्म दास की विनती,
साहब सुन लीजौ हो।
दरस देहु पट खोलकर,
अपना कर लीजै हो।।


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*प्रार्थना 63.*
Me to aaya sharan
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मैं तो आया शरण तुमसे लागि लगन,
सतगुरु प्यारे। मेरी नैया है तेरे सहारे।।

चाह मन में दरश की लगी है,
ध्यान में तेरी सूरत बसी है।
मेरी धीर बंधाओ, मन की प्यास बुझाओ,
सतगुरु प्यारे। होके व्याकुल तुम्ही को पुकारें।।

जाल खुद ही बुना फँस रहे हैं,
फन्द काटे नहीं कट रहे हैं।
माया वरन सताये मन काबू न आये।
सतगुरु प्यारे। काटो संसारी बन्धन हमारे।।

कोई अपना नहीं है यहाँ पर,
हाल जिससे कहूं अपना जाकर।
सब ही स्वारथ दिखायें सारे रिश्ते सताएं।
सतगुरु प्यारे। पाप कर्मों से मुझको बचा रे।।

मुझको अंतर में रूप दिखा दो,
शब्द से अब सुरत को मिला दो।
निज धाम लखाना, मुझको मुक्ति दिलाना।
सतगुरु प्यारे। होके व्याकुल तुम्ही को पुकारें।।


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जयगुरुदेव ★
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Baba Jaigurudev ji Maharaj

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