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अब मन आतुर दरस पुकारे।
कल नहिं पकड़े धीर न धारे ।
दम दम छिन छिन दर्द दिवानी।
सोऊं न जागूं अन्न न पानी।।
बेकल तड़पूं पिया तुम कारण।
डस डस खावत चिंता नागिन।
कौन उपाय करूं अब सजनी।
भवजल से अब काहे को तरनी।।
यही सोच में दिन दिन जलती।
कोई न सम्हाले पल पल गलती।
पिया तो बसे मेरे लोक चतुर में।
मैं तो पड़ी आय मृत्यु नगर में।।
बिन मिलाप प्रीतम दुख भारी।
राह चलूँ नहि जात चला री।
घाट बाट जहं अति अंधियारी।
कोई न सुने मेरी बहुत पुकारी।।
जतन न सूझे हिम्मत हारी।
अपने पिया की मैं ना हुई प्यारी।
जो पिया चाहें तो दम में बुलावें।
शब्द डोर दे अभी चढ़ावें।
भाग्यहीन मैं धुन नहीं पकड़ी।
काम क्रोध माया रही जकड़ी।।
सुरत शब्द मारग जो पाया।
सो भी मुझसे गया न कमाया।
मैं तो सब विधि हीन अधीनी।
मन नहीं निर्मल सुरत मलीनी।।
तुम समरथ स्वामी अति परवीना।
मैं तड़पूँ जैसे जल बिन मीना।
काज करो मेरा आज सम्हारी।
तुम्हरी शरण स्वामी मैं बलिहारी।।
हार पड़ी अब तुम्हरे द्वारे।
तुम बिन अब मोहिं कौन निहारे।
तब स्वामी बोले अस बानी।
मौज निहारो रहो चुप ठानी।।
धीरज धरो करो विश्वासा।
अब करूं पूरन तुम्हरी आशा।
सुनत वचन अब शीतल भई।
चरण शरण स्वामी निश्चल गही।।
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Jaigurudev