✪ सतसंग की पाठशाला
एक सेवक ने अपने गुरु को अरदास की, जी मैं सत्सँग भी सुनता हूँ, सेवा भी करता हूँ, मग़र फिर भी मुझे कोई फल नहीं मिला।
सतगुरु ने प्यार से पूछा, बेटा तुम्हे क्या चाहिए ?
सेवक बोला- मैं तो बहुत ही ग़रीब हूँ दाता।
सतगुरु ने हँस कर पूछा, बेटा तुम्हें कितने पैसों की ज़रूरत है ?
सेवक ने अर्ज की, सच्चे पातशाह, बस इतना बख्श दो, कि सिर पर छत हो, समाज में पत हो।
गुरु ने पूछा और ज़्यादा की भूख तो नहीं है बेटा ?
सेवक हाथ जोड़ के बोला नहीं जी, बस इतना ही बहुत है ।
गुरु ने उसे चार मोमबत्तियां दीं और कहा मोमबत्ती जला के पूरब दिशा में जाओ, जहाँ ये बुझ जाये, वहाँ खुदाई करके खूब सारा धन निकाल लेना,,
अगर कोई इच्छा बाकी हो तो दूसरी मोमबत्ती जला कर पश्चिम में जाना,,
और चाहिए तो उत्तर दिशा में जाना,,
लेकिन सावधान, दक्षिण दिशा में कभी मत जाना, वर्ना बहुत भारी मुसीबत में फँस जाओगे ।
सेवक बहुत खुश हो कर चल पड़ा,,
जहाँ मोमबत्ती बुझ गई, वहाँ खोदा, तो सोने का भरा हुआ घड़ा मिला,,
थोड़ी देर बाद, सोचा, थोड़ा और धन माल मिल जाये, फिर आराम से घर जा कर ऐश करूँगा,,
मोमबत्ती जलाई पश्चिम की ओर चल पड़ा हीरे मोती मिल गये ।
तीसरी मोमबत्ती जलाई और उत्तर दिशा में चला वहाँ से भी बेशुमार धन मिल गया।
सोचने लगा के चौथी मोमबत्ती और दक्षिण दिशा के लिये गुरु ने मना किया था,
सोचा, शायद वहाँ से भी क़ोई अनमोल चीज़ मिलेगी ।
मोमबत्ती जलाई और चला दक्षिण दिशा की ओर, जैसे ही मोमबत्ती बुझी वो जल्दी से ख़ुदाई करने लगा।
खुदाई की तो एक दरवाजा दिखाई दिया, दरवाजा खोल के अंदर चला गया।
अँधेरे कमरे में उसने देखा, एक आदमी चक्की चला रहा है।
सेवक ने पूछा भाई तुम कौन हो ?
चक्की चलाने वाला बहुत खुश हो कर बोला, ओह ! आप आ गये ?
यह कह कर उसने वो चक्की गुरु के सेवक के आगे कर दी।
सेवक ने पूछा भाई तुम कहाँ जा रहे हो ? अपनी चक्की सम्भालो।
आदमी ने कहा, मैने भी अपने सतगुरु का हुक्म नहीं माना था, और लालच के मारे यहाँ फँस गया था, बहुत रोया, गिड़गिड़ाया, तब मेरे सतगुरु ने मुझे दर्शन दिये और कहा था, बेटा जब कोई तुमसे भी बड़ा लालची यहाँ आयेगा, तभी तुम्हारी जान छूटेगी।
आज तुमने भी अपने गुरु की हुक्म अदूली की है, अब भुगतो...!
सेवक बहुत शर्मसार हुआ और रोते रोते चक्की चलाने लगा....!!
सीख :
हमेशा सतगुरु की रज़ा में राज़ी रहना चाहिए। सतगुरु को सब कुछ पता है, कि उनके बच्चों को, कब और क्या चाहिए। जितना भी सतगुरु ने हमें बख्शा है, हमारी औकात से भी ज़्यादा है, बस अब सब्र करो और प्रेम से भजन करो।
कल तो क्या एक पल का भी भरोसा नहीं है जी, आज मौका है, कुछ कर लो, नहीं तो बहुत पछताओगे।
गुरु प्यारी साध संगत सभी सतसंगी भाई बहनों को हाथ जोड़ कर प्यार भरा सादर जयगुरुदेव
जयगुरुदेव
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev