उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज केसत्संग वचनों के वीडियो क्लिप (मात्र 60 सेकंड में कुछ नया सुनें) 63.

जयगुरुदेव 
परम् पूज्य परम् सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज के जनहितकारी परमार्थी वचन :-

1777.  भूतों का स्वभाव।

1778. आपके दान से अपराध हुआ तो आपको ही सजा मिलेगी।

1779. जिस चीज की प्राप्ति के लिए दुनियादारी छोड़ी, वोही काम खूब करिए।


1780. गोपिकाएं अन्तर में कृष्ण का दर्शन करती थीं।

1781. भजन क्यों जरूरी है ?

1782. सन्तों ने भजन पर ज्यादा जोर दिया है।

1783. गुरु के शरीर से प्रेम क्यों करना पड़ता है ?

1784. अंतर में करोड़ों लोगों को गुरु एक साथ दिखाई पड़ते हैं।

1785. कोई गारंटी नहीं है कि सिर्फ नामदान लेने से या सतसंगों में आने जाने से मुक्ति हो ही जाएगी।

1786. जब कोई काम करेगा तभी कोई मदद भी करेगा।

1787. सन्त,महात्मा,फकीर, त्रिकालदर्शियों का काम क्या रहा है ?

1788. सन्तमत वाले आगाह करते हैं।

1789. बहुत से बच्चे इलेक्शन के बाद बर्बाद हो जाते हैं।

1790. पाप कर्म की ही सब सजा भोग रहे हैं।

1791. पाप कर्म कैसे खत्म होंगे ?

1792. खुशबूमय वो दुनिया है।

1793. साहब से सेवक बड़ा।

1794. गुरु भक्ति कैसे दृढ़ होती है ?

1795. जीवन सार्थक कैसे होगा ?

1796. हराम का जो खाता है उसकी बुद्धि सही नहीं रहती है।

1797. ऐश आराम में वह मालिक नहीं मिलता है।

1798. किनका शरीर दुबला हो जाता है ?

1799. महात्मा किसी का घर नहीं छुड़ाते हैं।

1800. आलस्य करने वाला कामयाब नहीं होगा।

1801. महात्माओं को जीवों की भलाई के काम में लगे रहना चाहिए।


1802. ऊपरी (अन्दर) की आवाज में ही सतसंग की बातें मिलती हैं।

1803. आत्मा को खुराक मिलने पर मन ढीला पड़ जाता है।

1804. जब कोई मददगार ना हो तब जयगुरुदेव नाम बोलकर देख लेना चाहिए।

1805. सन्त सतगुरु के न मिलने के कारण आत्म कल्याण की जानकारी नहीं मिल पाती है।


1806. सच्चे गुरु के बगैर माला जपना या दान पुण्य करना सब बेकार जाता है।

1807. महापुरुष की पहचान मनुष्य शरीर में नहीं होती है, पहचान अन्तर में होती है।

1808. जो निजधाम पहुंचाने का ठेका ले रहे हैं उनके गुरु के शरीर से ही प्रेम कर लो।


छोटे बड़े तमाम संकट टालने के उपाय बताने वाले
बाबा उमाकांत जी महाराज 

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