✶ जयगुरुदेव : बाबा जी ने फरमाया ✶
47. सत्संगियों! तुम बचो। वचनों को हमेशा याद रखो। भजन में लगे रहो। सुमिरन ध्यान में लगे रहोगे तो बुरी संगत का तुम पर जो असर होगा, वह छूट जाएगा।
48. आपको सच्चा रास्ता मिला है तो लगकर तड़पकर विरह से दरवाजे पर बैठकर थोड़ी मेहनत करो तो पर्दा साफ हो जायेगा। सत्संग तो घण्टे डेढ़ घण्टे होता है, उसके बाद जब समय मिले भजन करो ताकि तुम्हें छुटकार मिले। इसमें निकाला उसमें बन्द कर दिया यह तो उसके लिए साधारण खेल है। आप रोते रहो उससे क्या होगा।
49. काल सबको पीट रहा है। तुम्हारे कर्मों का हिसाब ले रहा है। कर्म कर्जा जो ले रहा है या जो दे रहा है दोनों को यह पता नहीं कि किस जन्म के कर्जे का ये भुगतान हो रहा है। सब इसी कर्जे के लेने देने में फंसे हुए हैं। जब पूरे गुरु की कृपा हो, उनकी दया हो, वो नाम के साथ जोड़ दें, तभी तुम्हारी बचत है।
50. गुरु सुरतों की सम्हाल करते हैं। शरीर तो नाशवान है यह तो जायेगा ही। जब मैं तुमसे कहता हूं कि शरीर नाशवान है इसे छोड़ना पड़ेगा तो मैं भी तो इसी शरीर में हूं। मैंने कोई रहने का पट्टा तो नहीं लिखा रखा है। तो जब अच्छे दिन हैं तो कमाई कर लो, भजन कर लो। भजन में लगे रहोगे तो खराब दिन भी निकल जायेंगे लेकिन भजन नहीं किया अच्छे दिन निकल गए तो बुरे दिन में फंस जाओगे तो क्या भजन करोगे ?
51. महात्माओं के पास तो ऐसे लोग आए जो पीछे खड़े रहते, सबकी जूतियां पोंछते। लोग कहते हैं कि आप बड़े राजा हो, जमींदार हो आगे जाओ। वो कहते हैं कि हम तो यहीं ठीक हैं। बड़ी दया है उनकी। लेकिन जब महात्माओं का जाने का समय हुआ और प्रेमियों ने पूछा कौन सम्हाल करेगा तो उन्होने कहा कि वहीं जो जूतियां पूंछता है।
52. हमारे स्वामी जी कहा करते थे रोने का फल होता है। कहने को यह है कि रोने से कितना लाभ हुआ। गुरु मिले, रास्ता मिला, भजन में लगाया। जिस जिस ने भजन किया सब रोये। जिन पाया तिन रोय। ऐसा प्रेमी होना चाहिए।
53. तुम्हें जो मिला है उसमें सब्र करो। सन्तोष यह नहीं कि और दे दीजिए। मालिक जब खाने पीने को सब दे रहा है देखभाल कर रहा है तो तुम्हें यह सब देखने सुनने को मिलेगा। उस समय तो ऐसा कोई विचार मन में नहीं था कि ये उपदेश करना पड़ेगा। गुरु महाराज की एक एक बात सच थी और आज यह अनुभव करने में आ रहा है।
54. यह पराविद्या का स्कूल है। इसमें अपनी बुद्धि काम नहीं करेगी। जो शरीर के नाके पर बैठी है जीवात्मा वह काम करेगी। उसके लिए आपको महात्माओं के पास जाना होगा। आप उनसे कटे कटे रहोगे, उनको दुश्मन समझोगे तो बताओ रास्ता कहां मिलेगा ?
55. लोगों ने जगह जगह मसाला तैयार कर रखा है। जरा सी बुद्धि ऊक चूक हुई कि उसको छोड़ देंगे और विनाश हो जायेगा। बस चिनगारी लगने की देर हे।
56. आपने अपनी भेष-भूषा, खान-पान, बात-व्यवहार सब छोड़ दिया। दूसरों की नकल करने लगे। पहले पगड़ी को लोग अपनी इज्जत समझते थे। खुले सिर कोई बाहर नहीं जाता था लोग पगड़ी बांधते थे। उसका बड़ा सम्मान था। सब लोगों ने अच्छी शिक्षा को छोड़ दिया अपनी परम्पराओं को छोड़ दिया। इसीलिए शहर गांव, मोहल्ला घर परिवार सब दुखी हो गए।
57. वायु मण्डल अपना काम करता है, जमीन अपना काम करती है, महात्मा अपना काम करते हैं। तुम सबसे बुरा समझते हो वह सबसे अच्छा बन जाय। तुम अपना भाव ठीक रखो। अपना भाव खराब करोगे तो तुम्हारे ही भजन में बाधा होगी।
58. तुम्हें रास्ता भी मिल जाय, सच्चे गुरु भी मिल जायं फिर भी तुम्हें होश न आये ऐसे ही बैठे रहो और रास्ता भी छूट जाय। इससे मालूम होता है कि तुममें संसार की चाहें हिलोरें ले रही हैं परमार्थ की चाह नहीं।
59. चण्डी घूम रही है। जीवात्मा की आंख खुले तभी दिखाई पड़ेगी यानी तीसरी आंख खुलने पर ही नजर आयेगी। बड़े बड़े राष्ट्रपतियों, प्रधानमन्त्रियों के मस्तक पर जब बैठ जायेगी तो उनका मस्तक खराब हो जायेगा फिर लड़ जायेंगे।
60. यह पराया देश है। जीवात्मा का अपना देश सत्तलोक है। तुम भजन करके काल के देश से निकल चलो, तुम्हें सच्चा सुख और आनन्द मिलेगा।
61. बुरे वक्त को काटना चाहिए। राजाओ को भी बुरा वक्त काटना पड़ा, राजा हरिश्चंद्र ने भी वक्त को काटा। उनका इतिहास सामने है।
62. तुम कहते हो भजन करने का समय नहीं मिलता। समय सबके पास है। गप-शप करते रहते हो। भजन सुमिरन करने की आदत जब बन जायेगी। तब समय मिलने लगेगा।
63. जीवात्मा जन्म जन्मांतरों के पर्दे में आकर बहुत छोटी हो गई। आचरण ठीक रहे फिर घाट पर बैठो तो रास्ता मिलेगा। जीवात्मा पर लदी गन्दगी हटेगी तब सुरत विशाल होती चली जायेगी।
64. महात्मा सीधा डमरु जब बजाते हैं तब भीड़ इकट्ठी होती है। वे उल्टा डमरु भी बजाना जानते हैं और जो परमार्थी होते हैं वही टिक पाते हैं।
65. तुम हर रोज सोचों कि तुम्हारी आयु दिन उम्र घट रही है और घटती जा रही है। जिस दिन, जिस क्षण तुम्हारी आखरी सांस निकलेगी उसी पल तुम्हारा शरीर जमीन पर गिर जायेगा। फिर जीवन में कुछ भी तुमने अच्छा बुरा किया है उसका इन्साफ होगा। वो कचहरी जहां मरने के बाद जीवात्माओं का इंसाफ होता है वो इस आसमान के ऊपर है। किसी अनुभवी महापुरुष की तलाश करो जो उस कचहरी में आते जाते हैं। वे ही तुम्हारे मददगार होंगे।
66. मेहनत और ईमानदारी से कर्म करोगे तो उसका भार नहीं लगेगा क्योंकि आपने शरीर और परिवार के भरण पोषण के लिए मेहनत की है। पर अगर चोरी ओर ठगी करके लाओगे तो उसका अपराध लगेगा।
67. तुम एकाएक चले आते हो कि नामदान मिल जाय तो नामदान तो मिलेगा पर पहले सत्संग सुनो फिर तुम्हारी समझ में आयेगा तब नामदान लोगे तब कुछ करोगे। एक दिन आकर बैठ गए, नामदान ले लिया और चले गये। कुछ किया नहीं ऐसे ही समय निकल गया।
68. प्रत्येक मनुष्य को निश्चित सांसें मिलती हैं। जल्दी खर्च करोगे कम उम्र होगी, देर में खर्च करोगे उम्र लम्बी हो जाएगी।
69. कंजूस नहीं होना चाहिए। जो कंजूस धन और सामान इकट्ठा करते हैं और खर्च नहीं करते उससे मालिक की दया और बरक्कत चली जाती है, खत्म हो जाती है। घर में कमी होने लगती है। कितना भी जमा करो, किसी को कुछ भी खाने को न दो और तुम्हारे घर जो भी आये और भूखा चला जाये तो मालिक की दया चली जाती है। जितना भी धन जमा करके रखा है उसमें कमी आ जायेगी।
70. तुमने पहले जो कर्म किया उससे तुम्हारा प्रारब्ध बना। जो तुम्हारे प्रारब्ध में है वह तुमको मिलेगा। अब जो करते हो वो आगे के लिए। इसलिए महात्मा समझाते हैं कि कर्म अच्छे करो, आगे का प्रारब्ध अच्छा हो, क्योंकि तुम्हें कर्म करने का अधिकार है। कर्म फल देने का अधिकार उसने अपने हाथ में रखा है। अच्छे बुरे कर्मों से छूटना चाहते हो तो महात्माओं के पास जाओ वो जो कहें वो करो। महात्माओं की एक-एक बात को पूरा समझना है।
71. मसाले तो सब तैयार हो चुके हैं बस महात्मा बीच में फंसे हैं इसे आप क्या जानो। महात्मा जरा सा हट जायं तो एकदम फट से पता नहीं क्या से क्या हो जाय। अब पहले की लड़ाई तो है नहीं। अब तो बटन युद्ध है। एक बटन दबा पता नहीं कहां तक विनाश हो जाय। बटन न भी दबे शार्ट सर्किट हो जाय तो ?
सूरदास ने कहा है-
परजा बहुत मरेगी जग में समझ ली जिए। आपने रूपये दो रूपये चार रूपये दे दिए होंगे और सोचते होंगे कि हमने सब दे दिया पर ऐसा नहीं है। तन मन दे दो। जब तन मन दे दोगे तब कोई गल्ती होने वाली नहीं। तन मन भेंट चढ़ाना मतलब यह है कि जो आप कहेंगे वही करुंगा। गुरु कहते हैं कि भजन करो तो तुम भजन करोगे, तन मन भेंट में चढ़ाकर घाट पर बैठोगे तो यहां सच्ची आरती होगी।
72. महात्मा की जरा जरा सी बात पकड़नी है। परखनी है। एक एक बात पकड़े रहोगे याद करते रहोगे तो पता नहीं कौन सी बात तुम्हारे काम आ जाय और किस बात की कब वो तुम्हारा इम्तहान ले लें।
73. संसार से मुड़ना कोई आसान काम नहीं। यह समुद्र है पूरा दल दल है। तुम खुद निकलो यह बल तुममें तो है नहीं। अब कोई ऐसा हो जो तुमको निकाले। उसका सहारा ले लो, अपने विकार निकालते चलो। विकार निकालेंगे तो विवेक होगा। जब विवेक होगा तब आत्मा में बल आएगा।
74. तकलीफ जो आई हैं वह भजन करने से ही जायेंगी। तुम भजन करते नहीं हो और चिल्लाते हो कि तकलीफ चली जाय। भजन करना है तो संयम से रहो। खाने पीने का संयम, बोलने चालने का संयम, रहने सहने का संयम और सत्संग में आते जाते रहो।
75. महापुरुष किसी के बन्धन में नहीं रहते। जमीन जायदाद किसी भी तरह का कोई बन्धन नही है। आश्रम चाहे छोटा हो या बड़ा हो अगर तुमने भजन में कमी की, जमीन ज्यादाद में फंसे तो वो वहां से चले जायेंगे। कहीं भी जाकर बैठ जायेंगे और वहां भजन करेंगे।
76. हम पहले से ही लोगों से कहते रहे कि आगे बहुत तकलीफें आयेंगी तुम यहीं रुक जाओ और भजन कर लो पर उस समय तुम्हारी समझ में नहीं आया क्योंकि सब हजार से लाख और लाख से करोड़ों के चक्कर में लगे रहे। सब लोग पछता रहे हैं और देखना अबकि कितने लोग आयेंगे और पश्चाताप करेंगे कि हमने समय बर्बाद कर दिया। तो अब क्या अब तो बुढ़ापा आ गया करोगे क्या ? हमेशा समय से काम करना चाहिए।
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