रात को 12 बजे की यात्रा अच्छी नहीं होती है
रात को 12 बजे से 2 बजे के बीच का समय खराब होता है । उस समय दिल दिमाग आदमी का बदल जाता है। उस समय आसुरी शक्तियां तेज हो जाती हैं । अक्सर देखो जहां पर दुर्घटनाएं होती हैं, वहीं पर दुर्घटना होती रहती है। वहीं पर भ्रम हो जाता है, स्टीयरिंग गलत घूम जाती है, सोच नहीं पाते कि किधर जा रही हैं, क्या है, ऐसी जगहों पर दुर्घटनाएं होती हैं ।
क्योंकि अकाल मृत्यु वाली जीवात्माएं जो प्रेत योनि में चली जाती हैं, वो वहीं पर बैठी रहती हैं । तो वे अपनी टीम बनाती हैं और दुर्घटनाएं वहां अक्सर होती रहती हैं। सरकार को भी उन स्थानों पर 'एक्सीडेंटल जोन' यानी 'दुर्घटना क्षेत्र' लिखना पड़ता है ।
सतसंगी की अकाल मृत्यु हो जाए तो
सतसंगियों की अकाल मृत्यु अगर हो जाए तो उनकी रूह, जीवात्मा को निकाल कर ऊपरी लोकों में कहीं छोड़ देते हैं और कुछ समय विश्राम दिला देते हैं। उसके बाद तब उनको मृत्यु लोक में भेजते हैं। जन्मने और मरने की पीड़ा उनको भी झेलनी पड़ती है। इधर आना होता है, दया इतनी हो जाती है; किसके ऊपर, जो सतसंगी होते हैं।
आप लोग नामदान लेकर कहते हो कि हम सतसंगी हैं, सतसंगी नहीं हो। जो सत्य का संग करने में लगे रहते हैं वे सतसंगी होते हैं सुमिरन ध्यान भजन करते रहते हैं वे सतसंगी होते हैं ऐसे की मदद हो जाती है, रक्षा हो जाती है ।
16 मई को प्रातः काल की बेला में परम संत बाबा उमाकान्त जी महाराज ने सतसंग सुनाते हुए कहा कि -
सुख इस दुनिया संसार में है ही नहीं
आनंद और सुख नाम की तो इस दुनिया संसार में चीज ही नहीं है। वो तो इससे परे की चीज है, ऊपर की चीज है। जैसे कुत्ता हड्डी को चबाता है, बूसता है तो वो हड्डी कुत्ते के जबड़े में घुसती है। उससे खून निकलता है। और उस खून को फिर वो पीता है।
खून का उसको टेस्ट मिलता है। तो कुत्ता यह समझता है कि हड्डी से ही खून निकल रहा है। तो उस हड्डी को छोड़ता नहीं है और उसी लालच में, उसी स्वार्थ में अपने जबड़े को काट देता है। ऐसे ही आदमी इस जगत के निभ्या जिभ्या के स्वाद में फंसा हुआ है, बिना किसी समरथ गुरु के जगत जाल से निकलना मुश्किल हो रहा है।
भारत आध्यात्मिक देश हमेशा से रहा है और आगे भी रहेगा
भारत आध्यात्मिक देश हमेशा से रहा है और आगे भी रहेगा। संतों के संस्कार हैं, संतों के बीज हैं, वो खत्म नहीं होंगे। जड़ जल्दी खत्म नहीं होती है। पेड़ का तना काट लो, पत्ता काट लो, फल तोड़ लो लेकिन जड़ पड़ी रहती है। ऐसी ही यह आध्यात्म की जड़ है, आध्यात्म की बेल यहीं से फैली है। भारत संतों की भूमि रही है और संतमत सबसे ऊँचा मत है । जो नजदीक में गया वही समझ पाया ।
जब समरथ गुरु मिल जाएँ तो उनको हमेशा सिर पर रखो
सिर का मतलब सामने रखना चाहिए, हमेशा उनको याद करते रहना चाहिए । जब पावरफुल गुरु मिल जाएंगे, शक्तिवान गुरु मिल जाएंगे तब उनकी शक्ति के आगे, पावर के आगे कोई टिकता नहीं है, नजदीक में आ नहीं सकता है । जैसे अब भी देखो जो ज्यादा पावर के लोग हैं जैसे मंत्री, मिनिस्टर, सरपंच, प्रधान, उनके दरवाजे पर जल्दी कोई पहुँच नहीं पाता है कि सजा न मिल जाए। इसी तरह से काल का प्रभाव उनके (संतों के) जीवों पर नहीं पड़ता है ।
साधना में गुरु आकर खड़े हो जाते हैं तो तकलीफ टिक नहीं पाती
साधना के रास्ते में जहाँ रुकावट होती है, गुरु आकर खड़े ही हो गए तो तकलीफ चली जाती है, रास्ता साफ हो जाता है, सजा हट जाती है और गुरु के पीछे जब वो जीव चल देता है तो कोई रोक-टोक नहीं होती है ।
क्योंकि गुरु जब नामदान देते हैं, संत जब नामदान देते हैं तो जीवों की डोर को अपने हाथ में ले लेते हैं, पकड़ लेते हैं। जैसे औरत का हाथ पुरुष पकड़ लेता है, सगाई-शादी कर लेता है, ऐसे ही जीवात्मा की डोर सन्त पकड़ लेते हैं।
भक्ति दो तरह की होती है- आंतरिक और बाह्य भक्ति
बाह्य भक्ति का मतलब जो आदेश हो जाए उसका पालन किया जाए। जैसे कहते हैं न मनसा, वाचा और कर्मणा । मन लगाकर बोलकर और हाथ-पैर, आँख कान आदि शरीर के अंगों से, जहाँ जैसी जरूरत हो, आदेश का पालन करो और एक भक्ति अंतर की भक्ति होती है जो जीवात्मा को निजात दिलाने का, इसके कल्याण के लिए सुमिरन, ध्यान, भजन बताया जाता है, यह आतंरिक भक्ति होती है। भक्ति से ही मिल जाती है मुक्ति और भक्ति अगर पूरी हो जाती है तो कहते हैं भक्त के पैर के नीचे भगवान का हाथ हुआ करता है। फिर सारा संकट खतम, सुख कदम चूमता है।
बाबा उमाकांत जी महाराज क्यों जगह-जगह नामदान लुटा रहे हैं ?
कभी ऐसा भी होता है कि संयोग ही नहीं बनता है। अभी कह दूँ कि शाम को नामदान मिल जाएगा, शाम को आ जाना, आ ही नहीं पाओगे। इसलिए जबरदस्ती भी झोली में डाल दिया जाता है।
'इहिं आस अटक्यो रहो. अली गुलाब के मूल ।
अइहैं फेरि बसंत रितु इन डारन में फूल ।।'
भंवरा सूखे गुलाब की डालों पर लटका रहता है कि किसी दिन जब अच्छी कलियाँ आएँगी, फूल आएंगे तब हम उसका रस लेंगे। ऐसे ही जो समझदार जानकार होते हैं. डाल देते है झोले में, नाम सुना देते हैं।
आज अगर न भी कोई करे, न भी समझ पा रहा है, पहली बार आया है, नीरस लग रहा है लेकिन कल अगर किसी ने समझा दिया और करने लग गया तो उसको रस आनंद आ जाएगा जैसे मैने आपको बताया कि जगत जाल से फिर दोबारा निकलना बड़ा मुश्किल होता है, वो तो संस्कार होता है, संस्कार जब खींचते हैं तब जीव यहाँ (सतसंग मे नामदान लेने पहुंच पाता है।
बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के समय का प्रसंग
एक आदमी आया और कहा कि गुरु महाराज से दया दिलाओ। अभी वो आदमी मौजूद है। काम करता था छोटा-मोटा तो कहा कि गुरु महाराज की दया हो जाए ट्रक खरीद लें। कहा कि सेवा उसमें निकालते रहेंगे, आमदनी का 25 प्रतिशत निकाल देंगे। गुरु महाराज के पास में (बाबा उमाकांत जी महाराज) ले गया और कहा सरकार यह ट्रक खरीदना चाहते हैं। गुरु महाराज ने सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी। ट्रक खरीद लिया और सेवा निकालता रहा। ट्रक खूब चलता रहा और पैसा थोड़ा इकट्ठा हो गया तो दूसरा ट्रक ले लिया।
दूसरा ट्रक जब लिया और लालच बढ़ी, जब देखा तो कहा कि इसकी आमदनी अब इकठ्ठा करते जाएंगे और तीसरा ट्रक जब हो जाएगा तो ज्यादा इकट्ठा हो जाएगा पैसा, तब फिर गुरु महाराज को देंगे। ट्रक लड़ गया और महीना, दो महीना खड़ा रहा, और इन्शुरेंस भी भरना पड़ा, ड्राइवर की तनख्वाह भी देनी पड़ी और किश्त भी। इसलिए लालच में आकर गुरु से कपट नहीं करना चाहिए । संकल्प पूरा करना चाहिए।
कोई मछली खा लिया तो समझ लो सब गंदगी खा लिया
मछली तालाब की सफाई करती है। कोई भी गन्दी चीज डाल दो तो मछली खा जाती है। कोई कहे हम गाय नहीं खाए, कोई कहे हम सूकर नहीं खाये, कोई कहे हम मुर्दा नहीं खाए कोई मकोड़ा नहीं खाये, लेकिन केवल मछली खाए तो समझ लो सब खा गए। मछली के अंदर सब का तत्व आ गया क्योंकि सब चीज खा करके उसका खून बना, इसलिए रग-रग उसका गन्दा है। तभी तो कहा कबीर साहब ने कि-
तिल भर मच्छी खाए के, कोटि गऊ दे दान |
काशी करवट ले मरे. तबहुँ न नर्क निदान ।।
16 मई को सायं काल की बेला में परम पूज्य बाबा जी महाराज ने सतसंग सुनाते हुए कहा कि
बाबा जयगुरुदेव जी महाराज शक्ति छुपाए हुए थे।
गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी महाराज) एक विलक्षण महापुरुष थे। इतनी बड़ी शक्ति लेकर के इस धरती पर आज तक कोई आया ही नहीं बहुत बड़ी शक्ति थी गुरु महाराज में लेकिन वो छुपाए हुए थे। जैसे कहा भक्ति छुपा कर रखते हैं, ऐसे महापुरुष शक्ति छुपाए रखते हैं। आप समझो अभी अगर घोषणा हो जाए आप किसी के लिए कि यह भगवान है तो आपको चलने फिरने देंगे, कोई काम करने देंगे ? अरे टूट पड़ेंगे। अभी कह दो कि यह भगवान है इनका पैर छू लो तो पैर छूना तो क्या, पैर के न तो पैर और न पैर के एक भी रोये शेष बचेंगे और न खाल बचेगी, न हड्डी बचेगी। टूट पड़ेंगे, तोड़ डालेंगे।
रबड़, चमड़े और तेल की बुद्धि
बुद्धि तीन तरह की होती है। एक बुद्धि ऐसी होती है रबड़ की बुद्धि । रबड़ के अंदर अगर आप सुई डालो तो जितनी देर डालोगे उतनी देर उसमें सुराख रहेगा. निकाल दो तो फिर भर जाएगा। एक होती है चमड़े की बुद्धि, जितना सुराख बना दोगे उतना बना रहेगा, उससे ज्यादा नहीं। एक होती है. तेल की बुद्धि। बाल्टी में पानी भर दो, परात में पानी भर दो, थाली में पानी रख दो और एक बूँद तेल डाल दो तो पूरे थाली के पानी में फल जाता है। तो उसको क्या कहते हैं, क्रीम ब्रेन।
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