*उस प्रभु दाता से मांगते रहना चाहिए, कभी तो देगा, सुमिरन ध्यान भजन का दर नहीं छोड़ना चाहिए*

जयगुरुदेव

20.07.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)

*उस प्रभु दाता से मांगते रहना चाहिए, कभी तो देगा, सुमिरन ध्यान भजन का दर नहीं छोड़ना चाहिए*

*सन्तमत की प्रार्थनाओं का लोगों पर असर पड़ता है*


गुरु से कैसा प्रेम किया जाए कि वो खुश हो जाए, ये बताने समझाने वाले, जिनसे देने वाले भी पूछ कर ही देते हैं, ऐसे सब कुछ सब जीवों की दाता, प्रभु की दया लेने का तरीका सिखाने वाले, लोगों का मन बदल कर अच्छे काम में लगाने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, लोकतंत्र सेनानी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 23 दिसंबर 2017 सायं उज्जैन आश्रम  में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

बरसात के महीने में स्वाति नक्षत्र आता है तो उस बूंद का अलग-अलग असर होता है। हाथी के कान में गिर जाए तो गर्भमुक्ता हो जाए और सीप में गिर जाए तो मोती बन जाए। ऐसे ही उसका बड़ा महत्व होता है। तो (पपीहा) उसी पानी को पीता है। कबीर साहब जा रहे थे। तो देखा पपीहा नदी में गिर गया, प्यास से तड़प रहा है लेकिन नदी का पानी नहीं पिया, इंतजार कर रहा। इतना प्रेम है स्वाति की बूंद से। तो समझ लो, प्रेम होना चाहिए गुरु से। और जब प्रेम किसी से किसी को हो जाता है तब उसका चेहरा नजरों में बस जाता है, उसकी बातें बराबर याद आती रहती है, बराबर उससे मिलने की इच्छा तड़प होती रहती है। ऐसा प्रेम गुरु के प्रति बनाना, बढ़ाना चाहिए।


*दाता से मांगते रहना चाहिए*

बाब उमाकान्त जी ने 6 दिसंबर 2017 धारु हेड़ाखेड़ा (हरियाणा) में बताया कि प्रेमियों, साधकों को मालिक की मौज पर रहना चाहिए, दरवाजे पर बैठते, मांगते रहना चाहिए क्योंकि वह दाता हैं। दाता हमेशा देता ही है। अब लेने का तरीका जिसको मालूम हो जाता है, वह ले लेता है। कोई ज्यादा ले लेता है, कोई कम लेता है। देखो दो बच्चे होते हैं, एक बड़ा जिद्दी, हमको देओ देओ देओ। तो देगा तो थोड़ा-थोड़ा देगा और गुस्सा जाएगा तो नहीं देगा। और एक बच्चा बड़े प्यार से ले लेता है। 

ऐसे ही लेने का तरीका जब मालूम हो जाता है तो उसको ज्यादा मिल जाता है। तो वह तो दाता है। तो मांगते रहना चाहिए लेकिन दुनिया की चीज नहीं मांगनी चाहिए। दुनिया की चीज मांगोगे तो इसमें फंसते चले जाओगे क्योंकि इस चीज को हमेशा याद रखो, न तो कोई चीज लेकर के आए हो और न कोई चीज आप उधर ले जाओगे। खाली हाथ आए हो और खाली हाथ जाना पड़ेगा। 


तो अब आप इस दु:ख के संसार में और दु:ख क्यों पैदा करते हो? नहीं मिलता है तब रोते हो, मांगते हो। और मिल जाता है तो नुकसान हो जाता है, सड़ गल जाता है, चोर ले जाता है, गिर जाता है, इधर-उधर चला जाता है तो रोते हो। तो रोने-धोने का काम क्यों करते हो? मालिक पर ही क्यों न भरोसा करो, आपकी जैसी मौज हो, जैसी आपकी रजा हो, उसके हिसाब से हमको रहना है। हम तो आपके गुलाम हैं। आप हमको जो खिलाओगे, हम खाएंगे और जो पहनाओगे, हम पहनेंगे और जैसे रखोगे, हम रहेंगे। हम तो आपके गुलाम हैं। गुलाम की कोई ख्वाहिश, इच्छा नहीं होती है। आप मेरे दाता हो और मैं आपका भिखारी हूं। आपको मेरे लिए जो जरूरत हो, वह चीज आप हमको दे दो। ऐसा भाव सतसंगी को अपने अंदर बनाने की जरूरत है, साधकों को बनाने की जरूरत है।


*दया मांगनी चाहिए कि आज हम कुछ न कुछ हासिल करके उठेंगे*

बाब उमाकान्त जी ने 28 दिसंबर 2017 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि पड़ा रहे दरबार में, धक्का धनी का खाए, कभी तो गरीब नवाजे जो दर छाड़ न जाये। दर पर अगर बैठते रहोगे तो किसी न किसी दिन उनकी दया हो जाएगी। दर नहीं छोड़ना है। दर कौन सा है? यह सिमरन, ध्यान ,भजन का। बराबर आशा बनाए रखना चाहिए और बैठते समय संकल्प बनाना और गुरु से दया मांगना चाहिए कि आज हम कुछ न कुछ हासिल करके उठेंगे। उम्मीद बहुत बड़ी चीज होती है। 

उम्मीद नहीं छोड़ना चाहिए। जो उम्मीद छोड़ देता है, परिस्थितियों के कारण वह आगे नहीं बढ़ पाता है। अब यह जरूर है कि यह ऐसा रास्ता है जिसमें धुलाई सफाई होती है। जैसे कपड़ा गंदा होता है तो धोबी उसको पटक-पटक के धोता है। और ज्यादा गंदा होता है तो उसको रगड़-रगड़ के साफ़ करता है, दाग छुड़ाता है। धोबी का काम क्या है? गंदगी साफ करना। अगर गंदगी ही साफ नहीं होगी तो समझ लो उसकी कीमत कैसे बढ़ेगी? ऐसे ही अंत:करण जो कर्मों की वजह से गंदा हो गया, जो झूठ बोले, बेईमानी चोरी चकारी किया, मांस मछली अंडा खाया, उसको जो बेमेल खून बना वह रग-रग में रम रहा है, जब तक वह खून नहीं जलेगा, जब तक इन खाई गंदी चीजों का असर खत्म नहीं होगा तब तक कैसे आपका मन लगेगा।


*सन्तमत की प्रार्थनाओं का लोगों पर असर पड़ता है*

बाब उमाकान्त जी ने 21 अक्टूबर 2020 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि सन्तमत की प्रार्थनाओं का भी असर पड़ता है। जब आदमी का ध्यान जाता है उन लाइनों पर, उनको जब सुनता है तो फिर बात समझ में आने लगती है। बहुत कुछ तो प्रार्थनाओं के माध्यम से ही लोगों को समझा देते हैं। आप जो प्रचारक लोग गांव में प्रचार करने जाते हो, प्रार्थना बोलते हो और प्रार्थना सुनकर के लोग आ जाते हैं। 

फिर आपकी बातों को सुन लेते हैं। प्रार्थना दो-तीन अगर (पहले) बोल दोगे तो प्रार्थना को सुनकर के ही समझ जाएंगे कि यह क्या कहना चाहते हैं, बाकियों से अलग प्रार्थना है तो यह है कौन लोग? तो चला जाए, इनकी बातों को सुना जाए। आप देखो सतसंग ध्यान भजन से पहले भी प्रार्थनाएं बोली जाती हैं कि कम से कम आदमी का भाव तो बने, आदमी दुनिया को तो (कुछ समय के लिए) भूले, उसका ध्यान इधर तो आवे तब तो ध्यान भजन सतसंग सुनने में मन लगाएगा। तो प्रार्थना तड़प विरह प्रभावी हो, भाव भक्ति जगाने वाली हो तो याद करो और प्रार्थनाएं बराबर बोलते रहो।








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