10. आहार का मन पर प्रभाव पड़ता है

जयगुरुदेव
मनुष्य के भोजन का उद्देश्य 

भोजन से मनुष्य का उद्देश्य मात्र उदरपूर्ति, स्वास्थ्य प्राप्ति अथवा स्वाद की पूर्ति ही नहीं है अपितु मानसिक व चारित्रिक विकास करना भी है। आहार का हमारे आचार, विचार व व्यवहार से गहरा संबंध है। प्राचीन कहावत है- ‘जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन’ आज भी उतनी ही सत्य है। 

मनुष्य की विभिन्न प्रकार के भोजन के प्रति रुचि उसके आचरण व चरित्र की पहचान कराती है। अतः हमारा भोजन से उद्देश्य उन पदार्थों का सेवन करना  है जो शारिरिक, नैतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक उन्नति करने वाले व स्नेह, प्रेम, दया, अहिंसा, शांति आदि गुणों को देने वाले हों। 


अशुद्ध आहार का कुप्रभाव-

बाबा उमाकांत जी महाराज ने नववर्ष सतसंग उज्जैन आश्रम पर बताया कि संग का दोष भी होता है। जैसा खाये अन्न, वैसा होये मन। जैसा पिये पानी, वैसी होये वानी। 

बुद्धि बदलने में देर नहीं लगती। जो चोरी करके लाया, लूट के लाया उसका अन्न खाओगे तो समझ लो कि भाव भक्ति सब खतम। मांसाहारी मानव प्रत्यक्ष राक्षस अंग इनकी संगत जो करे पड़े भजन में भंग।

मांसाहारी के घर का खा लिया तुरंत असर आता है, आखों में आंखें मिल गई तुरंत असर आता है। 83 %  अपराध तो आंखों से ही होते हैं। कर्मों का लेना देना आंखों में देखने से ही होता है कर्म आ जाते हैं तो उसी तरह की बुद्धि हो जाती है। 


अन्य दोष

रावण कितना बलवान धनवान था। सोने की लंका में रहता था। इतना बलवान था कि स्वर्ग तक सीढ़ी लगाने की बात करता था। लेकिन शराब और मांस का सेवन करता था दूसरी औरत को बुरी नजर से देखता था बहन बेटी को बुरी नजर से देखने के कारण सर्वनाश हो गया। एक लाख पूत सवा लाख नाती ता रावण घर दिया ना बाती।

25-10-2021 उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज, धार मध्यप्रदेश 

(शेष क्रमशः अगली पोस्ट 11. में...)👇🏽



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ