मनु स्मृति ग्रंथ के अनुसार-
मांस भक्षण प्रसंग में आठ प्रकार के पापियों की गणना की गयी है -
अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी।
संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः।। 51।। 12
(अनुमन्ता) मारने की आज्ञा देने वाला (विशसिता) मांस को काटने वाला (निहन्ता) पशु को मारने वाला (क्रयविक्रयी) पशुओं को मारने के लिये मोल लेने और बेचने वाला (संस्कर्ता) पकाने वाला (उपहर्ता) परोसने वाला (च) और (खादकाः) खाने वाला (इति घातकाः) ये सब हत्यारे और पापी हैं।।51।।
जो व्यक्ति दूसरों के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे बढ़कर नीच और निर्दयी मनुष्य दूसरा कोई नहीं है।
जो व्यक्ति मांस का त्याग कर देता है, वह सब प्राणियों में आदरणीय, सब जीवों का विश्वसनीय और सदा साधुओं से सम्मानित होता है।
मांस न तो घास से, न लकड़ी से या फिर ना तो पत्थर से पैदा होता है। मांस प्राणी की हत्या करने पर ही मिलता है। इसलिये मांस खाने में दोष है।
महाभारत के अनुसार
भगवत गीता में भोजन की तीन श्रेणियां हैं।
प्रथम सात्विक- जैसे फल, सब्जी, अनाज, दूध, मक्खन आदि जो बल, बुद्धि, आयु, सुख, शान्ति, दयाभाव, अहिंसा बढ़ाने वाला है।
दूसरा राजसिक- जो कि गर्म, तीखा, कड़वे, खट्टे मिर्च मसाले वाला भोजन जो कि दुख रोग चिंता वाला है।
तीसरा तामसिक- जो कि बासी, दुर्गंध, सड़े अपवित्र नशीले पदार्थ, मांस इत्यादि जो कि इंसान को कु संस्कार की ओर ले जाने वाला, बुद्धि भ्रष्ट करने वाला, रोग आदि दुर्गुण बढ़ाने वाला है। जिसको नहीं करना चाहिये।
जैन धर्म में
अहिंसा जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त हैं। जैन ग्रंथों में हिंसा के 108 भेद किये गये हैं। भाव हिंसा, स्वयं हिंसा करना, दूसरों के द्वारा करवाना अथवा सहमति प्रकट करके हिंसा करवाना सब वर्जित है।
जैन धर्म में जानवरों को बांधना, दुख पहुचाना, मारना उन पर अधिक भार तक पाप माना जाता है। वहां मांसाहार का तो प्रश्न ही पैदा नही होता है।
बौद्ध धर्म में पंचशील अर्थात सदाचार के पांच नियम हैं। प्रथम व प्रमुख नियम किसी भी प्राणी को दुख न पहुचाना ही अहिंसा है। पांचवे नियम मेें शराब आदि नशीले पदार्थ से परहेज की शिक्षा दी गई है।
पारसी धर्म में मांस खाना, जीव हिंसा करना तथा मदिरा सेवन करने को आत्महत्या कहा है।
सिख धर्मः गुरुवाणी गुरुमुखी के लिये अन्न पानी थोड़ा खाया का आदर्श रखती है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने गहरी खोज के बाद जो गुरु साहिब के निशान तथा हुकुमनामा पुस्तक छपाई है उनमें हुकुमनामा के अनुसार मांस, मछली प्याज नशीले पदार्थ शराब इत्यादि की मनाही की गई है। सभी गुरुद्वारों में, लंगर में शाकाहार भोजन ही बनता है।
ईसाई धर्म में: ईसामसीह के गुरु दी वेब टीस्ट थे, जो मांसाहार के सख्त विरोधी थे। ईसामसीह की शिक्षा के दो प्रमुख सिद्धांत हैं। 1. Thou shall not kill तुम जीव हत्या नही करोगे और 2. Love thy neighbour अपने ही पडोसी से प्यार करो.
इस्लाम को मानने वाले सभी सूफी संतो ने नेकी दया गरीबी व सादा भोजन खाने व मांस ना खाने पर बहुत जोर दिया है. प्रसिद्ध संत मीरदाद का कहना था कि जिस जीव का मांस काट कर खाते है उसका बदला अपने मांस से देना पडेगा दूसरों के बहाये गये खून की प्रत्येक बूंद का हिसाब अपने खून से चुकाना पडेगा क्योकि यही अटल कानून है।
इस्लाम को मानाने वाले जुनेद बगदादी ने शिष्य के हाथ में पक्षी देकर कहा कि इसे वहां मारकर लाओं जहां कोई ना देखता हो एक चेला पक्षी लौटा लाया बोला मुझे कोई ऐसी जगह नही मिली जहां खुदा ना देखता हो अतः हम देखते है कि प्रत्येक धर्म में सभी जीवों में प्रभु निवास माना है व अहिंसा दया आदि की शिक्षा दी है व मांसाहार की मनाही की है।
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