वक्त सतगुरु परम पूज्य परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज की अपार दया मौज की बरसात हम सभी सतसंगी प्रेमियों पर हो रही है। परम पूज्य हुजूर महाराज जी अपने सतसंग वचनों में बार-बार सेवा पर जोर दे रहे हैं। परमार्थ के तीन आधार बतलाये गये हैं, सतसंग सेवा और भजन।
अब जो सतसंगी प्रेमी वचनों को पकड़ लिया करते हैं, वे सेवा में लग जाते हैं और अपना सब कुछ त्याग देते हैं। वो सिर्फ और सिर्फ सेवा देखते हैं, जो भी सेवा का आदेश हो जाये, प्राण प्रण से लग जाते हैं।
इसी सेवा के संदर्भ में एक सेवादार उज्जैन आश्रम पर बहुत समय पहले से सेवा में लगे हुए। लम्बे समय तक सेवा करने के बाद एक बार उन्होंने परम पूज्य हुजूर महाराज जी से अपने घर जाने की अनुमति मांगी।
मना कर दिया गया, अनुमति नहीं मिली। अब ठीक है जो आदेश। फिर से सेवा में लग गये।
काफी लम्बे समय के बाद पुनः मालिक के सामने अर्जी लगाई, अपने घर जाने के लिए। फिर से मना हो गया, अपने घर जाने की अनुमति नहीं मिली। ठीक है जो आदेश, कुल मालिक की रजा में राजी। फिर से सेवा में लग गये।
तीसरी बार उन्होंने अपनी जगह किसी अन्य सेवादार भाई की व्यवस्था करके मालिक के सामने अपने घर जाने की पुनः अर्जी लगाई।
फिर मना कर दिया गया, अर्जी मंजूर नहीं हुई, घर जाने की। अब घर जाने की बार-बार अर्जी लगाने और उसके मंजूर न होने पर विचार कर लिया की अब नहीं पूछेगें।
पड़े रहो दरबार में, धक्का धनी का खाये।
काफी समय बीता फिर खबर आई की धर्मपत्नी ने शरीर त्याग दिया है। पुनः खबर मालिक तक पहुंचाई लेकिन अर्जी नामंजूर हुई, घर नहीं जाने दिया।
इसी तरह सेवा में लगे रहे और समय बीतता रहा। कभी खुशी कभी गम की खबरें आईं, लेकिन आश्रम छोड़ कर घर नहीं गये क्योंकि घर जाने का आदेश ही नहीं।
उज्जैन आश्रम पर साधना स्थल बाबा जयगुरुदेव मंदिर में चौबीसों घंटे सेवा में लगे रहते। अभी कुछ दिन पूर्व तबीयत थोड़ी खराब हुई, डॉक्टर को दिखाया, जांच करवाई, मर्ज क्या है? कुछ समझ में नहीं आ रहा।
एक दिन कहते कि, अब हम घर जा रहे हैं।
साथी सेवादारों ने पूछा, घर जा रहे हो?
बोले, हाँ! अपने घर जा रहे हैं। अब तो हम अपने घर जा रहे हैं।
सभी को लगा कि तबीयत ठीक नहीं है, बुढापा है इसलिए दिमागी हालत भी ठीक नहीं लग रही है। सिर में बुखार चढ़ गया लगता है।
पूछा, अच्छा! कौन आया है लेने? किसके साथ अपने घर जाओगे?
तब कहने लगे कि, वो बाबा उमाकान्त जी महाराज आ गये हैं। वो देखो! मालिक आ गए हैं। अब मालिक के साथ हम अपने घर जा रहे हैं।
थोड़ी देर बाद उज्जैन आश्रम के अस्पताल में उन बुजुर्ग सेवादार ने अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया और अपने असली घर चले गए, बाबा उमाकान्त जी महाराज के साथ।
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वक्त सतगुरु परम पूज्य परम संत बाबा उमाकान्त जी महाराज हम सभी को इसी जन्म में अपने असली घर, अपने वतन ले जायेंगे। वे तो तैयार हैं लेकिन हमें ही अपने आप पर विश्वास नहीं हो रहा है। हम सभी इसी क्षण भंगुर भंगार कबाडखाने को अपना असला घर समझने की भूल कर रहे हैं ...।।
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सतगुरु चाहें तो पल भर में दया की बरसात कर दें।
शेष क्रमशः अगली पोस्ट 33. में पढ़ें ...
★ जयगुरुदेव ★
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Jaigurudev